श्रधान्जली
शून्य में निश्वाश अपना ही सुनाई दे रहा था ,
आंधियाँ निशब्द थीं ,बिजलियाँ गिरती नहीं
गीत सारे खो चुके थे ,दीप सारे बुझ चुके थे .
आसमा खामोश ,संध्या मौन ,------------
चाँद भी शीतल नहीं था .तारकों की झिलमिलाहट ,
भीरूपन लगती थी उनका .------------------
एक तारे में तभी छाया तुम्हारी दी दिखाई ,
जिन्दगी लय बन गयी तब ,दीप सारे जगमगाये .
स्नेह की सरिता बनी मैं ,रजकणो का पहन आँचल
स्वप्न दृगों में सजाये ,कंटकों को चूमती हूँ .
रजकणो से खेलती हूँ ,--------------------------------
शलभ के झुलसे परों को -------------------------------
आंसुओं से सींचती हूँ ---------
आभा