" रुख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं "
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पतझर के पात को हवा जिधर उड़ा ले चले उधर ही उड़ चलता है | ऐसे ही हवा के संग -संग बह रही हूँ मैं भी, देखने ; क्या सच में सबै भूमि गोपाल की ही है और तामे वही समाय का अहसास होता है या ?
पहली बार इंटरनेशनल फ्लाईट पे अकेले जाना ,मेरे सिवा सब ही हल्की सी चिंता में थे |बच्चे भाई बहन सब ही सिखा पढ़ा रहे थे |ये तैयारी वो तैयारी पर मैं तो कान्हा के भरोसे हूँ सो निश्चिंत थी ,जो वो करवा रहा है सब ठीक ही होगा हम सोच के भी क्या कर लेंगे ,जिस राह पे जिस मोड़ पे चलने का इशारा कर देता है चल देती हूँ |
मेरी तरह की ही कई प्रौढ़ायें भी थी एयर-पोर्ट में |अधिकतर के घरवालों ने उन्हें व्हील चेयर पे बैठा दिया था ताकि सफ़र में मदद मिलती रहे | कई पति-पत्नी पहली बार जा रहे थे उम्र के अंतिम पड़ाव में अपना देश छोड़ना और भाषा न समझ आना , उनके असमंजस का अनुमान उन्हें देख के ही लगाया जा सकता है |भाग-दौड़ तो है ही एयर-पोर्ट में चौक्कना रहना और सारे एनाउन्समेंट को सुनना तो पड़ता ही है ,पर साथ ही कुछ ऐसे सहयात्री भी है जो काफी डरे हुए हैं उन्हें भी हौसला देना और समझाना ---हालाँकि घर से सख्त हिदायत थी कि हर किसी से मत बोलना पर हम भी आदत से लाचार हैं लाख दिल को मारतेहैं ओंठ दबाते हैं मगर किसी को असमंजस में देख के मुहं खुल ही जाता है उसे सही रास्ता बताने के लिए वो कहते हैं न --
'' हर चंद अपने शौक को रोका किया वेले -
एक आध हर्फ प्यार का मुहं से निकल ही गया |''
शायद न समझने वालों को समझाना मेरे चारों ओर सकारात्मक घेरा सा बना रहा था | (खैर हर कोई इसे ना अपनाये क्यूंकि न जाने किस भेष में बाबा मिल जाए नटवरलाल रे -ये कलयुग है मेरे भाई ) | और लो सेक्युरिटी चेक के दूसरे राउंड में मशीन खराब हो गयी ( ओ डार्लिंग ये है इण्डिया ) तीन-तीन बार खूबसूरत बालाओं ने आके हाथ जोड़ के कहा-'' क्षमा चाहते है मशीन में कुछ खराबी हो गयी है पन्द्रह -बीस मिनट लगेंगे आप तब तक घूम फिर सकते हैं '' | इतनी लम्बी लाइन ,इतनी दूरी तय करके आये हैं अब कौन हिले, हम एक सवा घंटे यूँ ही खड़े रहे ,जैसे -तैसे मन्युअल चेकिंग शुरू हुई और जाने कैसे अफरातफरी का फायदा उठा के एक-एक व्हील चेयर वाले या वाली के साथ दस -दस लोग चले आये ( जुगाडू तो यहाँ अधिकतर लोग होते ही है और हम चंद लोग जो लाइन में सबसे आगे थे सबसे पीछे हो गये | खैर नो टेंशन की तर्ज में खड़े रहे आखिर प्लेन हमें छोड़ के थोड़े ही उड़ जाएगा --और तब तक मशीन भी ठीक हो गयी |
अपने लिए ही जीने की प्रवृति यदि देखनी हो तो ये जगह और ये समय बहुत माकूल है |हर व्यक्ति केवल अपने में लीन |बस मैं चेकइन से निकल जाऊं दुनिया जाए भाड़ में मुझे क्या पड़ी ___'ऊपर से गुड़िया हँसे अंदर पोलमपोल' वाली हालत ,हर हंसी; मशीनी और परेशानहाल |
और लो अचानक पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी ! ऊंचाई पे जाने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है -- पन्द्रह घंटे के सफर के लिए कुछ किताबें तो रखी ही थी वही तो मेरे जीवन की सच्ची साथी है ,पर कहते हैं जाकी रही भावना जैसी --मेरे साथ की दोनों सीटों पे दो लडकियाँ अपने दो छोटे -छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रहीं थीं | अकेली माँ का दो छोटे-बच्चों के साथ का सफर कितना मुश्किलों भरा होता है बस उन्हें मदद करने में और स्वाध्याय में समय का भान ही न हुआ | ये भी कान्हा कृपा थी लग तो रहा था मैं उनकी मदद कर रही हूँ पर मुझे भी अपरोक्ष रूप से सफर की दुश्वारियों और उबाऊ पन से निज़ात मिली |सामने स्क्रीन पे नक़्शे पे अपने प्लेन से 9500mi की दूरी पे आते शहर ,नदियाँ, सागर ,खाड़ी पर्वत इत्यादि देखना एक रोमांच ही है ,घंटों आप पानी के ही ऊपर उड़ते है ,जमीन का नाम ही नहीं |और लो पहुँच ही गये निवार्क, फिर कनेक्टिंग फ्लाईट की भागमभाग ,सामान लेना , सिक्युरिटी चेक ,ऐन वक्त पे गेट का चेंज हो जाना ,'ममा कम हियर ,गो दियर , ममा यू स्वीट ,मेक फ़ास्ट ,हैप्पी जरनी ममा | सीक्युरिटी चेक के दौरान ममा यू फिनिश (आपका हो गया ) मैं बोली कनी फूटी कपाली यू फिनिश बोलणी ,तेरा घिच्चा बल ढुंगा पड्यो ,व्हाट ममा ,मैं बोली ओह आई ऍम ब्लेसिंग यू हनी !,वो बेचारी खुश | और जमीन कब आ गयी पैरों के नीचे भान ही न हुआ |अनजानी धरती पर , अनजाना जैसा तो कुछ भी नहीं है ,वही धरती ,वही आकाश ,वही हरियाली ,वही बारिश ,वही सूरज --और बिटिया से सालभर बाद मिलने की वही ख़ुशी , उसने एयर-पोर्ट में पैर छुए तो आस-पास के चेहरों पर भी वही ख़ुशी --आर्जुओं की एक दुनियाँ सी बसी है _________
मौसिमे अब्र है -बादल भी है ,
गुल है -गुलशन भी है -पर तू नहीं है ,
तेरे जाने के बाद जो हम जीते हैं ,
उम्र ने हम से बेवफाई की है | अहसास भी वही !
डेलास बहुत ही खूबसूरती से बसाया गया शहर है ,साफ सुथरा ,शांत , हर आने जाने वाला आपको देख के अपनी भाषा में राम राम करता है ,( हनी हाउ आर यू ,गुड डे ,) और एक जीवंत सी मुस्कान तो अवश्य ही देता है ,जैसे कभी हमारे गाँव में हुआ करता था | सबै भूमि गोपाल की ही है , अहसास भी वही हैं ,बस दिल्ली से आने पे यूँ लगता है कि किसी भीड़ भरे मेले ठेले से निकल के आये हों ....आभा ..
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पतझर के पात को हवा जिधर उड़ा ले चले उधर ही उड़ चलता है | ऐसे ही हवा के संग -संग बह रही हूँ मैं भी, देखने ; क्या सच में सबै भूमि गोपाल की ही है और तामे वही समाय का अहसास होता है या ?
पहली बार इंटरनेशनल फ्लाईट पे अकेले जाना ,मेरे सिवा सब ही हल्की सी चिंता में थे |बच्चे भाई बहन सब ही सिखा पढ़ा रहे थे |ये तैयारी वो तैयारी पर मैं तो कान्हा के भरोसे हूँ सो निश्चिंत थी ,जो वो करवा रहा है सब ठीक ही होगा हम सोच के भी क्या कर लेंगे ,जिस राह पे जिस मोड़ पे चलने का इशारा कर देता है चल देती हूँ |
मेरी तरह की ही कई प्रौढ़ायें भी थी एयर-पोर्ट में |अधिकतर के घरवालों ने उन्हें व्हील चेयर पे बैठा दिया था ताकि सफ़र में मदद मिलती रहे | कई पति-पत्नी पहली बार जा रहे थे उम्र के अंतिम पड़ाव में अपना देश छोड़ना और भाषा न समझ आना , उनके असमंजस का अनुमान उन्हें देख के ही लगाया जा सकता है |भाग-दौड़ तो है ही एयर-पोर्ट में चौक्कना रहना और सारे एनाउन्समेंट को सुनना तो पड़ता ही है ,पर साथ ही कुछ ऐसे सहयात्री भी है जो काफी डरे हुए हैं उन्हें भी हौसला देना और समझाना ---हालाँकि घर से सख्त हिदायत थी कि हर किसी से मत बोलना पर हम भी आदत से लाचार हैं लाख दिल को मारतेहैं ओंठ दबाते हैं मगर किसी को असमंजस में देख के मुहं खुल ही जाता है उसे सही रास्ता बताने के लिए वो कहते हैं न --
'' हर चंद अपने शौक को रोका किया वेले -
एक आध हर्फ प्यार का मुहं से निकल ही गया |''
शायद न समझने वालों को समझाना मेरे चारों ओर सकारात्मक घेरा सा बना रहा था | (खैर हर कोई इसे ना अपनाये क्यूंकि न जाने किस भेष में बाबा मिल जाए नटवरलाल रे -ये कलयुग है मेरे भाई ) | और लो सेक्युरिटी चेक के दूसरे राउंड में मशीन खराब हो गयी ( ओ डार्लिंग ये है इण्डिया ) तीन-तीन बार खूबसूरत बालाओं ने आके हाथ जोड़ के कहा-'' क्षमा चाहते है मशीन में कुछ खराबी हो गयी है पन्द्रह -बीस मिनट लगेंगे आप तब तक घूम फिर सकते हैं '' | इतनी लम्बी लाइन ,इतनी दूरी तय करके आये हैं अब कौन हिले, हम एक सवा घंटे यूँ ही खड़े रहे ,जैसे -तैसे मन्युअल चेकिंग शुरू हुई और जाने कैसे अफरातफरी का फायदा उठा के एक-एक व्हील चेयर वाले या वाली के साथ दस -दस लोग चले आये ( जुगाडू तो यहाँ अधिकतर लोग होते ही है और हम चंद लोग जो लाइन में सबसे आगे थे सबसे पीछे हो गये | खैर नो टेंशन की तर्ज में खड़े रहे आखिर प्लेन हमें छोड़ के थोड़े ही उड़ जाएगा --और तब तक मशीन भी ठीक हो गयी |
अपने लिए ही जीने की प्रवृति यदि देखनी हो तो ये जगह और ये समय बहुत माकूल है |हर व्यक्ति केवल अपने में लीन |बस मैं चेकइन से निकल जाऊं दुनिया जाए भाड़ में मुझे क्या पड़ी ___'ऊपर से गुड़िया हँसे अंदर पोलमपोल' वाली हालत ,हर हंसी; मशीनी और परेशानहाल |
और लो अचानक पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी ! ऊंचाई पे जाने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है -- पन्द्रह घंटे के सफर के लिए कुछ किताबें तो रखी ही थी वही तो मेरे जीवन की सच्ची साथी है ,पर कहते हैं जाकी रही भावना जैसी --मेरे साथ की दोनों सीटों पे दो लडकियाँ अपने दो छोटे -छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रहीं थीं | अकेली माँ का दो छोटे-बच्चों के साथ का सफर कितना मुश्किलों भरा होता है बस उन्हें मदद करने में और स्वाध्याय में समय का भान ही न हुआ | ये भी कान्हा कृपा थी लग तो रहा था मैं उनकी मदद कर रही हूँ पर मुझे भी अपरोक्ष रूप से सफर की दुश्वारियों और उबाऊ पन से निज़ात मिली |सामने स्क्रीन पे नक़्शे पे अपने प्लेन से 9500mi की दूरी पे आते शहर ,नदियाँ, सागर ,खाड़ी पर्वत इत्यादि देखना एक रोमांच ही है ,घंटों आप पानी के ही ऊपर उड़ते है ,जमीन का नाम ही नहीं |और लो पहुँच ही गये निवार्क, फिर कनेक्टिंग फ्लाईट की भागमभाग ,सामान लेना , सिक्युरिटी चेक ,ऐन वक्त पे गेट का चेंज हो जाना ,'ममा कम हियर ,गो दियर , ममा यू स्वीट ,मेक फ़ास्ट ,हैप्पी जरनी ममा | सीक्युरिटी चेक के दौरान ममा यू फिनिश (आपका हो गया ) मैं बोली कनी फूटी कपाली यू फिनिश बोलणी ,तेरा घिच्चा बल ढुंगा पड्यो ,व्हाट ममा ,मैं बोली ओह आई ऍम ब्लेसिंग यू हनी !,वो बेचारी खुश | और जमीन कब आ गयी पैरों के नीचे भान ही न हुआ |अनजानी धरती पर , अनजाना जैसा तो कुछ भी नहीं है ,वही धरती ,वही आकाश ,वही हरियाली ,वही बारिश ,वही सूरज --और बिटिया से सालभर बाद मिलने की वही ख़ुशी , उसने एयर-पोर्ट में पैर छुए तो आस-पास के चेहरों पर भी वही ख़ुशी --आर्जुओं की एक दुनियाँ सी बसी है _________
मौसिमे अब्र है -बादल भी है ,
गुल है -गुलशन भी है -पर तू नहीं है ,
तेरे जाने के बाद जो हम जीते हैं ,
उम्र ने हम से बेवफाई की है | अहसास भी वही !
डेलास बहुत ही खूबसूरती से बसाया गया शहर है ,साफ सुथरा ,शांत , हर आने जाने वाला आपको देख के अपनी भाषा में राम राम करता है ,( हनी हाउ आर यू ,गुड डे ,) और एक जीवंत सी मुस्कान तो अवश्य ही देता है ,जैसे कभी हमारे गाँव में हुआ करता था | सबै भूमि गोपाल की ही है , अहसास भी वही हैं ,बस दिल्ली से आने पे यूँ लगता है कि किसी भीड़ भरे मेले ठेले से निकल के आये हों ....आभा ..