Wednesday, 30 April 2014

    " रुख हवाओं का जिधर है उधर के हम हैं "
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पतझर के पात को हवा जिधर उड़ा ले चले उधर ही उड़ चलता है | ऐसे ही हवा के संग -संग बह रही हूँ मैं भी, देखने ; क्या सच में सबै भूमि गोपाल की ही है और तामे वही समाय का अहसास होता है या ?
    पहली बार इंटरनेशनल फ्लाईट पे अकेले जाना ,मेरे सिवा सब ही हल्की सी चिंता में थे |बच्चे भाई बहन सब ही सिखा पढ़ा रहे थे |ये तैयारी वो तैयारी पर मैं तो कान्हा के भरोसे हूँ सो निश्चिंत थी ,जो वो करवा रहा है सब ठीक ही होगा हम सोच के भी क्या कर लेंगे ,जिस राह पे जिस मोड़ पे चलने का इशारा कर देता है चल देती हूँ |
मेरी तरह की ही कई प्रौढ़ायें  भी थी एयर-पोर्ट में |अधिकतर के घरवालों ने उन्हें व्हील चेयर पे बैठा दिया था ताकि सफ़र में मदद मिलती रहे | कई पति-पत्नी पहली बार जा रहे थे उम्र के अंतिम पड़ाव में अपना देश छोड़ना और भाषा न समझ आना , उनके असमंजस का अनुमान उन्हें देख के ही लगाया जा सकता है |भाग-दौड़ तो है ही एयर-पोर्ट में चौक्कना रहना और सारे एनाउन्समेंट को सुनना तो पड़ता ही है ,पर साथ ही कुछ ऐसे सहयात्री भी है जो काफी डरे हुए हैं उन्हें भी हौसला देना और समझाना ---हालाँकि घर से सख्त हिदायत थी कि हर किसी से मत बोलना पर हम भी आदत से लाचार हैं लाख दिल को मारतेहैं ओंठ दबाते हैं मगर किसी को असमंजस में देख के मुहं खुल ही जाता है उसे सही रास्ता बताने के लिए वो कहते हैं  न --
  '' हर चंद अपने शौक को रोका किया वेले -
    एक आध हर्फ प्यार का मुहं से निकल ही गया  |''
शायद न समझने वालों को समझाना मेरे चारों ओर सकारात्मक घेरा सा बना रहा था | (खैर हर कोई इसे ना अपनाये क्यूंकि न जाने किस भेष में बाबा मिल जाए नटवरलाल रे -ये कलयुग है मेरे भाई ) | और लो सेक्युरिटी चेक के दूसरे राउंड में मशीन खराब हो गयी ( ओ डार्लिंग ये है इण्डिया ) तीन-तीन  बार खूबसूरत बालाओं ने आके हाथ जोड़ के कहा-'' क्षमा चाहते है  मशीन में कुछ खराबी हो गयी है पन्द्रह -बीस मिनट लगेंगे आप तब तक घूम फिर सकते हैं '' | इतनी लम्बी लाइन ,इतनी दूरी तय करके आये हैं अब कौन हिले, हम एक सवा घंटे यूँ ही खड़े रहे ,जैसे -तैसे मन्युअल चेकिंग शुरू हुई और जाने कैसे अफरातफरी का फायदा उठा के  एक-एक व्हील चेयर वाले या वाली के साथ दस -दस लोग चले आये ( जुगाडू तो यहाँ अधिकतर लोग होते ही है और हम चंद लोग जो लाइन में सबसे आगे थे सबसे पीछे हो गये | खैर नो टेंशन की तर्ज में खड़े रहे आखिर प्लेन हमें छोड़ के थोड़े ही उड़ जाएगा --और तब तक मशीन भी ठीक हो गयी |
अपने लिए ही जीने की प्रवृति यदि देखनी हो तो ये जगह और ये समय  बहुत माकूल है |हर व्यक्ति केवल अपने में लीन |बस  मैं चेकइन से निकल जाऊं दुनिया जाए भाड़ में मुझे क्या पड़ी ___'ऊपर से गुड़िया हँसे अंदर पोलमपोल' वाली हालत ,हर हंसी; मशीनी और परेशानहाल |
और लो अचानक पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी ! ऊंचाई पे जाने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है -- पन्द्रह घंटे के  सफर के लिए  कुछ किताबें तो रखी ही थी वही तो मेरे जीवन की सच्ची साथी है ,पर कहते हैं जाकी रही भावना जैसी --मेरे साथ की दोनों सीटों पे दो लडकियाँ अपने दो छोटे -छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रहीं थीं | अकेली माँ का दो छोटे-बच्चों के साथ का सफर कितना मुश्किलों भरा होता है बस उन्हें मदद करने में और स्वाध्याय में  समय का भान ही न हुआ | ये भी कान्हा कृपा थी   लग तो  रहा था मैं उनकी  मदद कर रही हूँ पर मुझे भी अपरोक्ष रूप से सफर की दुश्वारियों और उबाऊ पन से निज़ात मिली |सामने स्क्रीन पे नक़्शे पे अपने प्लेन से 9500mi की दूरी पे आते शहर ,नदियाँ, सागर ,खाड़ी पर्वत इत्यादि देखना एक रोमांच ही है ,घंटों आप पानी के ही ऊपर उड़ते है ,जमीन का नाम ही नहीं |और लो पहुँच ही गये निवार्क, फिर कनेक्टिंग फ्लाईट की भागमभाग ,सामान लेना , सिक्युरिटी चेक ,ऐन वक्त पे गेट का चेंज हो जाना ,'ममा कम हियर ,गो दियर , ममा यू स्वीट ,मेक फ़ास्ट ,हैप्पी जरनी ममा | सीक्युरिटी चेक के दौरान ममा यू फिनिश (आपका हो गया ) मैं बोली कनी फूटी कपाली यू  फिनिश बोलणी ,तेरा घिच्चा बल ढुंगा पड्यो ,व्हाट ममा ,मैं बोली ओह आई ऍम ब्लेसिंग यू  हनी !,वो बेचारी खुश | और जमीन कब आ गयी पैरों के नीचे भान ही न हुआ |अनजानी धरती पर , अनजाना जैसा तो कुछ भी नहीं है ,वही धरती ,वही आकाश ,वही हरियाली ,वही बारिश ,वही सूरज --और बिटिया से सालभर बाद मिलने की वही ख़ुशी , उसने एयर-पोर्ट में पैर छुए तो आस-पास के चेहरों पर भी वही ख़ुशी --आर्जुओं की एक दुनियाँ सी बसी है _________
  मौसिमे अब्र है -बादल भी है ,
गुल है -गुलशन भी है -पर तू नहीं है ,
तेरे जाने के बाद जो हम जीते हैं ,
उम्र ने हम से बेवफाई की है | अहसास भी वही !
डेलास बहुत ही खूबसूरती से बसाया गया शहर है ,साफ सुथरा ,शांत , हर आने जाने वाला आपको देख के अपनी भाषा में राम राम करता है ,(  हनी हाउ आर यू ,गुड डे ,) और एक जीवंत सी मुस्कान तो अवश्य ही देता है ,जैसे कभी हमारे गाँव में हुआ करता था |  सबै भूमि गोपाल की ही है ,  अहसास भी वही हैं ,बस दिल्ली से आने पे यूँ लगता है कि किसी भीड़ भरे मेले ठेले से निकल के आये हों ....आभा ..

Wednesday, 2 April 2014

   ''तव च का किल न स्तुतिरम्बिके !''
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यस्या स्वरूपं ब्रह्मादयो न जानन्ति तस्मादुच्यते अग्येंया |----हाँ स्त्री अग्येंय ही तो है | दुर्गम भी और सरल भी ,कठोर भी तो ममतामयी भी ,शीतलता और अग्नि एक साथ | स्त्री के मन की थाह पाना दुस्तर ही नहीं असम्भव भी है |
   क्यूँ होता है एकस्नेहशील-प्यार की मूरत को समझना इतना कठिन इसका उत्तरदुर्गा शप्तशती में  मिलजाता है |जब महिषासुर नामक दैत्य ने देवताओं {माँ के दर्शन से लौटते हुए तन -निढाल औ  मन प्रफ़ुल्लित"}   को पराजित कर उनकी नाक में दम कर दिया      ******************************************* तो सारे देवता ब्रह्माजी की अगुवाई में भगवान शंकर और विष्णुजी की शरण में गये | शायद देवाधिदेव और परमपिता किसी अन्य मन्त्रणा में व्यस्त थे सो उन्होंने  महिषासुर वध के लिए अपना तेज देवताओं को दे दिया | ये तेज एक स्त्री रूप में था , ये स्त्री उनकी सखी ही रही होगी या कोई कलीग होगी जो उनके समान ही शक्ति संपन्न और प्रखर बुद्धि की स्वामिनी  होगी |   अब ऊपर से आये रिसोर्स की सबने जम के आवभगत की और अपनी अपनी विधा में उसे पारंगत किया--{भाई देवाधिदेव  महादेव शिव और परमपिता परमात्मा  विष्णु भगवान , की निगाह में तो सबको ही आना था न } | जैसे , ब्रह्मा ,शंकर ,विष्णु इंद्र चन्द्रमा वरुण वासु कुबेर अग्नि संध्या और वायु ने अपना-- तेज -सुन्दरता चपलता -चातुर्य -द्रुतगति -संकल्प शक्ति -नीरक्षीरविवेकी बुद्धि -अनन्य बल और शक्ति उसे प्रदान की | यही नहीं  उसे एक नयनाभिराम सुंदर और अतुलनीय  रूप की स्वामिनी भी बनाया जिसे देखते ही आँखें उस स्वरूप को आत्मसाध कर लें | आजकल भी तो पार्लर में जा के कोई भी अपना काया कल्प करवा सकता है फिर वो तो सुर थे उनके लिए अलौकिक रूप को गढ़ना क्या मुश्किल था |  बाह्याभ्यन्तर इस बालिका को तैयार कर फिर उसे शस्त्रों से लैस किया गया| शंकर ने शूल ,विष्णु ने चक्र ,वरुण ने शंख ,अग्नि ने शक्ति ,वायु ने बाणों सी गति ,इंद्र ने वज्र और घंटा ,यमराज ने दण्ड , काल ने चमकती हुई ढाल  और तलवार ,वरुण ने, पाश , क्षीरसागर ने उज्ज्वल हार , उज्ज्वल वस्त्र साथ ही अपने गर्भ में स्थित रत्नों से बने कुंडल ,कड़े ,हार .नूपुर .केयूर हंसुली  अंगूठी आदि कई दिव्य आभूषण ,विश्वकर्मा ने फरसा और भी कई देवताओं ने अनन्य वस्तुयें  भेंट कीं| हिमालय ने सवारी के लिए सिंह ,कुबेर ने मधुपात्र दिया साथ ही नागों के राजा ने बहुमूल्य मणियों का हार दिया | और भी जितने छोटे -बड़े देवता थे सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए उस स्त्री को अपने गुणों और अस्त्र-शस्त्रों का उपहार दिया | अब बनी वो सर्व गुण संम्पन्न देवी ,जो अजेय थी ,जिसमे कमोबेश सभी बड़े -छोटे देवताओं के गुण और शक्तियाँ निहित थीं | जहाँ एक ही व्यक्तित्व में इतने सारे रूप समाहित हों उसे समझना तो फिर देवताओं के लिए भी संभव नहीं है ,मनुष्य की तो बिसात ही क्या | और इतने सारे रूपों को समाहित करने पे भी एक उसका अपना व्यक्तित्व है जिसके कारण उसे महिषासुर वध का उत्तरदायित्व मिला |उस  अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी , अतुलित बलशाली और विदुषी स्त्री की ही संतानें हैं सबस्त्रियाँ ,तो उन्हें समझ पाना क्या इतना आसान होगा | वो कब अबला है और कब सबला हो जायेगी ,कब प्रेम की शीतल धारा है तो कब अग्नि बाण बन जायेगी ?   जो  इतनी शक्तिशाली और अगम्य हो गयी कि शिव को  भी उसको शांत करने को उसके पैरों पर आना पडा |
  शायद देवताओं ने कभी भी ये नहीं सोचा होगा कि जिसे हम सब अपनी कायरता और कर्महीनता को छुपाने के लिए दैत्यों से लड़ने के लिए भेज रहे हैं कालान्तर में उसे ही समझना हमारे लिए टेढ़ी खीर होगा अन्यथा वो स्वयं ही संयुक्त रूप से दैत्यों से लड़ लेते |
  दुर्गा- शप्तशती  में देवताओं की ये आदत देखते ही बनती है कि वो आमोद प्रमोद में मस्त हैं और जब भी कोई आपदा आती है तो देवी का स्तवन करने लगते हैं और वो दया ,करुणा और ममता की मूरत अपनी परवाह न करते हुए शरणागतों की रक्षा करने को तत्पर रहती है --यही है स्त्री का असली स्वरूप -प्यार के दो बोल से कोई भी उसे छल सकता है |  और तब से वो छली ही जा रही है अष्ट भुजाओं का काम करती हुई घर परिवार,समाज  को संभाल रही हैऔर अपने आप में संतुष्ट रहती है जब तक उसे छेड़ा न जाए |   ये सदैव याद रखाजाना चाहिए कि---
        सौम्य वेष में आये नारी तो उसको कल्याणी समझो ,
        रौद्र -रूप में आये नारी तो उसको काली समझो ,
        नारी तेरे रूप अनेक ,समझ न पाए ऋषि मुनि जिसको ,
              मत उसको अबला समझो ||