शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर --एक व्यंग -(लेखिका का पूरा खानदान शिक्षक बिरादरी को बिलोंग करता *************************है सो माफ़ी नामा कोई नहीं )*******************************
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आज अख़बार में पढ़ा ,''मशीनी युग में घट रहे मवेशी '' उपयोग में न आने के कारण गधों की जनसंख्या घटी | तब से सोच रही हूँ कि हमारे बचपन में गधे का बच्चा अधिकतर बुजुर्गों और मास्साबों का तकिया कलाम हुआ करता था|शायद ! तब की बात और थी सही के गधे प्रचुर मात्रा में थे , घर -स्कूलों के बाहर गधे चरते रहते थे , गधों की बहुत पूछ थी ,यहाँ तक कि कृष्णचन्द्र की "एक गधे की आत्म कथा और एक गधे की वापसी " तो आज की कई बेस्ट-सेलर से कई गुना ज्यादा बिकी और पढ़ी गयी (तब १००० कॉपी बिकने पे बेस्ट =सेलर का रिवाज नहीं था न ) ,"मेरा गधा गधों का लीडर" गाना चार्ट -बस्टर हुआ ,"इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं " ओम प्रकाशजी की ये कविता तो हर बच्चे का मंच -भय ( stage phobia ya stage fright ) से उबरने में मददगार होती थी |और तो और संगीत की कक्षा में जरा सा स्वर से इधर-उधर होने पे हमारे अंधे गुरूजी ( तब सरकारी स्कूलों में संगीत के मास्साब प्रज्ञा चक्षु ही हुआ करते थे ) सरे आम डांट लगाते थे क्या गरधब राग अलाप रही हो ढेंचू-ढेंचू और हमारे स्वर को सुन के कई बार तो बाहर चरते गधे ढेंचू-ढेंचू रेंकने भी लगते थे | शायद बुजुर्गों और मास्साबों का ये तकिया कलाम उन फ़ील्ड में चरते गधों को इतना पसंद आया कि उन्होंने परमपिता-परमेश्वर को अर्जी दी कि प्रभु ये मनुष्य नाम का प्राणी ,गधे के बच्चों को बहुत सम्मान देता है , इस स्कूल में तो मास्साब अक्सर ही बच्चों को गधे का बच्चा बोलते हैं ,कई बार तो हम खिड़की से अंदर झांकते हैं कहीं हमारा बच्चा सही में तो स्कूल में नहीं घुस गया |बड़े लोग अक्सर पीछे से एक - दूसरे को गधे का बच्चा बोलते हैं , पुस्तकों में हमें नेता की उपाधि मिल गयी है और तो और प्रभु अब तो कोई अपनी बात मनवाना चाहे तो लोग ये भी कहते हैं कि "भाई मर्जी तो गधे की होती है "( स्टिंग ओपरेशन की सी डी भी प्रभु को दिखा दी गयी इन सब बातो के प्रूफ के रूप में ) !तो हे नयी देह देने वाले स्वामी! जब राग गरधब ,मर्जी गधे कि ,बच्चा गधे का ,नेता गधा -अभिनेता गधा तो आप क्यूँ न हमारे बच्चों को ही इंसानी चोला देके इनके घर भेज देते ,कम से कम आत्मा को तो ये सुकून रहेगा की हाँ मैं तो गधा ही हूँ ,प्रभु गीता में कहा हैं आपने कि आत्मसाक्षात्कार ही मोक्ष का मार्ग है ,तो यदि हम इन्सान बन गये तो अपने को पहचान भी सकेंगे ,| बात सोलह-आने सच थी ,तो भई अर्जी मंजूर हो गयी |इधर असली गधों की आबादी घटी ,उधर सबके घरों में कमोबेश एक गधा या गधी पैदा होना शुरू हुआ | भाइयों और बहनों जो आजकल इतने ज्यादा स्टबबर्न लोग सड़कों में घूम रहे हैं वो गधे हमारे बुजुर्गों और मास्साबों के आशीर्वाद का ही प्रतिफल हैं | असल में गाली और आशीर्वाद दोनों ही फलीभूत होते हैं ,आशीर्वाद ? कोई हाथ जोड़े- पाँव छुए तो मजबूरी है , पर गाली तो मन और दिल से निकलती है और फट से लग जाती है ,अस्तु अवचेतन मन से ,अज्ञानता वश या मजाक में भी बुजुर्गों को अपनी अगली पीढ़ी को वो नहीं बोलना चाहिये जो वो उसे नहीं देखना चाहते हैं |आज के समाज में हर जगह बैठे ,सोचते ,चरते ,गरियाते ,लिखते, छपते गधों की फ़ौज का पूरा-पूरा उत्तरदायित्व गधे का बच्चा वाली गाली को ही है चाहे वो प्यार से दी गयी हो या गुस्से से | तो भाई जानवर घटे नहीं हैं वो बस चोला बदल के आ गये है |इधर की आबादी उधर | एक गधे का छोटा सा प्यारा सा बच्चा जो ,अपनी मर्जी का मालिक है ,थोड़ा सा स्टबबर्न थोडा सा जिद्दी है , कठिन परिस्थितियों का बोझा ढोता ,दिन रात काम के बोझ तले दबा ,सुबह निकला शाम को घर आता है हम सभी के भीतर है जिसे लोटने के लिए हरी घास का मैदान या धूल भरी पगडंडी भी नसीब नहीं है ,और लोटा वो तो अब घरों से ऐसे नदारत है जैसे गधे के सर से सींग |
जंतु-प्रेमी (ऐनिमल-लवर ) होने के कारण मेरी ये प्रार्थना है कि असली गधे का बच्चा भी संरक्षित हो ,ताकि आने वाली पीढ़ी को ये तो पता चले कि गधे का बच्चा कितना प्यारा दिखाई देता था | स्वर्ग में तो देवी ने गधे अपने पास संरक्षित कर ही रखे है "शीतला माता के वाहन के रूप में " पर पृथ्वी लोक में भी असली गधे संरक्षित होने ही चाहिएं ,वरना असली नकली में भेद कैसे होगा | |आभा ||
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आज अख़बार में पढ़ा ,''मशीनी युग में घट रहे मवेशी '' उपयोग में न आने के कारण गधों की जनसंख्या घटी | तब से सोच रही हूँ कि हमारे बचपन में गधे का बच्चा अधिकतर बुजुर्गों और मास्साबों का तकिया कलाम हुआ करता था|शायद ! तब की बात और थी सही के गधे प्रचुर मात्रा में थे , घर -स्कूलों के बाहर गधे चरते रहते थे , गधों की बहुत पूछ थी ,यहाँ तक कि कृष्णचन्द्र की "एक गधे की आत्म कथा और एक गधे की वापसी " तो आज की कई बेस्ट-सेलर से कई गुना ज्यादा बिकी और पढ़ी गयी (तब १००० कॉपी बिकने पे बेस्ट =सेलर का रिवाज नहीं था न ) ,"मेरा गधा गधों का लीडर" गाना चार्ट -बस्टर हुआ ,"इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं " ओम प्रकाशजी की ये कविता तो हर बच्चे का मंच -भय ( stage phobia ya stage fright ) से उबरने में मददगार होती थी |और तो और संगीत की कक्षा में जरा सा स्वर से इधर-उधर होने पे हमारे अंधे गुरूजी ( तब सरकारी स्कूलों में संगीत के मास्साब प्रज्ञा चक्षु ही हुआ करते थे ) सरे आम डांट लगाते थे क्या गरधब राग अलाप रही हो ढेंचू-ढेंचू और हमारे स्वर को सुन के कई बार तो बाहर चरते गधे ढेंचू-ढेंचू रेंकने भी लगते थे | शायद बुजुर्गों और मास्साबों का ये तकिया कलाम उन फ़ील्ड में चरते गधों को इतना पसंद आया कि उन्होंने परमपिता-परमेश्वर को अर्जी दी कि प्रभु ये मनुष्य नाम का प्राणी ,गधे के बच्चों को बहुत सम्मान देता है , इस स्कूल में तो मास्साब अक्सर ही बच्चों को गधे का बच्चा बोलते हैं ,कई बार तो हम खिड़की से अंदर झांकते हैं कहीं हमारा बच्चा सही में तो स्कूल में नहीं घुस गया |बड़े लोग अक्सर पीछे से एक - दूसरे को गधे का बच्चा बोलते हैं , पुस्तकों में हमें नेता की उपाधि मिल गयी है और तो और प्रभु अब तो कोई अपनी बात मनवाना चाहे तो लोग ये भी कहते हैं कि "भाई मर्जी तो गधे की होती है "( स्टिंग ओपरेशन की सी डी भी प्रभु को दिखा दी गयी इन सब बातो के प्रूफ के रूप में ) !तो हे नयी देह देने वाले स्वामी! जब राग गरधब ,मर्जी गधे कि ,बच्चा गधे का ,नेता गधा -अभिनेता गधा तो आप क्यूँ न हमारे बच्चों को ही इंसानी चोला देके इनके घर भेज देते ,कम से कम आत्मा को तो ये सुकून रहेगा की हाँ मैं तो गधा ही हूँ ,प्रभु गीता में कहा हैं आपने कि आत्मसाक्षात्कार ही मोक्ष का मार्ग है ,तो यदि हम इन्सान बन गये तो अपने को पहचान भी सकेंगे ,| बात सोलह-आने सच थी ,तो भई अर्जी मंजूर हो गयी |इधर असली गधों की आबादी घटी ,उधर सबके घरों में कमोबेश एक गधा या गधी पैदा होना शुरू हुआ | भाइयों और बहनों जो आजकल इतने ज्यादा स्टबबर्न लोग सड़कों में घूम रहे हैं वो गधे हमारे बुजुर्गों और मास्साबों के आशीर्वाद का ही प्रतिफल हैं | असल में गाली और आशीर्वाद दोनों ही फलीभूत होते हैं ,आशीर्वाद ? कोई हाथ जोड़े- पाँव छुए तो मजबूरी है , पर गाली तो मन और दिल से निकलती है और फट से लग जाती है ,अस्तु अवचेतन मन से ,अज्ञानता वश या मजाक में भी बुजुर्गों को अपनी अगली पीढ़ी को वो नहीं बोलना चाहिये जो वो उसे नहीं देखना चाहते हैं |आज के समाज में हर जगह बैठे ,सोचते ,चरते ,गरियाते ,लिखते, छपते गधों की फ़ौज का पूरा-पूरा उत्तरदायित्व गधे का बच्चा वाली गाली को ही है चाहे वो प्यार से दी गयी हो या गुस्से से | तो भाई जानवर घटे नहीं हैं वो बस चोला बदल के आ गये है |इधर की आबादी उधर | एक गधे का छोटा सा प्यारा सा बच्चा जो ,अपनी मर्जी का मालिक है ,थोड़ा सा स्टबबर्न थोडा सा जिद्दी है , कठिन परिस्थितियों का बोझा ढोता ,दिन रात काम के बोझ तले दबा ,सुबह निकला शाम को घर आता है हम सभी के भीतर है जिसे लोटने के लिए हरी घास का मैदान या धूल भरी पगडंडी भी नसीब नहीं है ,और लोटा वो तो अब घरों से ऐसे नदारत है जैसे गधे के सर से सींग |
जंतु-प्रेमी (ऐनिमल-लवर ) होने के कारण मेरी ये प्रार्थना है कि असली गधे का बच्चा भी संरक्षित हो ,ताकि आने वाली पीढ़ी को ये तो पता चले कि गधे का बच्चा कितना प्यारा दिखाई देता था | स्वर्ग में तो देवी ने गधे अपने पास संरक्षित कर ही रखे है "शीतला माता के वाहन के रूप में " पर पृथ्वी लोक में भी असली गधे संरक्षित होने ही चाहिएं ,वरना असली नकली में भेद कैसे होगा | |आभा ||