What's on your mind -----आजकल तो गर्मी का प्रकोप ,जोक भी सारे सूरज पे ,बेचारे को दोषी ठहरा के अपने कुकृत्यों के छुट्टी --सारे जंगल काट के कंक्रीट के बेतरतीब जंगल उगा दिये ,नदी नाले तालाब सब गंदे नाले बन गए ,भूजल के अति - दोहन से धरती को बंजर बना दिया पर दोष सूरज पे वो ज्यादा गर्म हो रहा है ,अरे वो तो सदैव ही इतना गर्म है। मैंने देखा सूरज पे धरती के वातावरण का क्या असर पड़ा ,--वो भी परेशानी में है --देखा तो लिखा कुछ बच्चों के लिए -----
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''चढ़ा सूर्य को तेज बुखार ''
चढ़ा सूर्य को तेज बुखार
दिन पर दिन वो तपता जाये ,हो बेचैन हांफता जाये
मैया -मैया ; शोर मचाये , न कुछ पीये न कुछ खाये।
छोड़- छाड़ कर सारे काम ,मैया दौड़ी -दौड़ी आयी ---
बड़े लाड से गोद बिठाया ,मुख चूमा और सिर सहलाया।
बच्चे का मुहं लाल हो रहा ,उस पर तपता जलता माथा ,अकुलाहट
-बेचैनी से बच्चे को निंद्रा न आती ,सांस उखड़ -उखड़ सी जाती।
मेरा चंदा तड़प रहा है , ज्वर-ताप से झुलस रहा है
[(मैया ? मैया ही होती ,लाड़-लाड़ में; सूरज को भी चंदा कहती! )]
अरे! कोई तो वैद बुलाओ , मुन्ने का ज्वर ताप भगाओ।
मेरा मुन्ना जग का पालक ,गर ये ही तपता जायेगा
जीव जन्तु सब जल जाएंगे ,चातक- कोकिल कुम्हलायेंगे
आसमान की परियों जाओ ,वैदराज को ढूंढ के लाओ
परियों ने फिर ढूंढ मचाई ,पवन वैद को संग-संग लायीं।
सर -सर ,फर-फर हवा चली , पल में ,लू में वो बदली
पास पवन आता जाता औ मौसम और बिगड़ता जाता।
धरती पे भी लू चलने पे ,पशु-पक्षी जन-जन अकुलाये
ताल -तलैया सूखे सारे ,वन -उपवन सब ही मुरझाये।
सूरज मुन्ना व्याकुल होकर ,मैया- मैया शोर मचाये
ना डर मेरे प्यारे मुन्ने मैया संग -संग ही है तेरे। ---
क्रोधित हो मैया ने तब ,पवन वैद को भगा दिया है
परियों को आदेश हुआ ,दौड़ो-- दूजा वैद ले आओ।
अमलतास -गुलमोहर ने तब ,परियों को है पास बुलाया ,
फूलों के कालीन बना, देश-देश उनको पहुंचाया।
कोई वैद न कोई भेषज ,कलयुग में '' महावीर ''कहाँ ?
लाडेसर बोला मैया से ,जो तू खुश हो मैं, बादल संग खेलूं ?
लुका - छिपी ,आइस -पाइस ,स्टेपू, पकड़म-पकड़ाई
बादल औ मैं ; सखा बचपन के तू कहती थी , लंगोटिया भाई।
संग-संग जब हम खेलें कूदें, कभी ताप ज्वर ना होता
तू भी व्यर्थ न अकुलाती है ,सारा जगत चैन से रहता।
गयी बादलों को हुंकार
आओ-आओ सूरज द्वार
परियां ढूंढें घाट -घाट
जंगल जंगल औ चौबाट।
पर बादल तो लुप्त हो गए ,
बरस बेमौसम ! सुप्त हो गये
मचा सकल जग हाहाकार
सूरज का क्यूँकर हटे बुखार !
पेड़नहीं -कैसे बादल ?
जंगल कटे औ नदियाँ सूखीं
हिम जगती की पिघल रही है
,बादल!
कैसे बने; कहाँ से आयें ?
गईया -बछिया सोच रही हैं ,
धरती मइया सोच रही हैं
क्या ?
ये मानव मेरी ही संतान !
क्यूँ ब्रह्माण्ड को किया हैरान ?आभा।।
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''चढ़ा सूर्य को तेज बुखार ''
चढ़ा सूर्य को तेज बुखार
दिन पर दिन वो तपता जाये ,हो बेचैन हांफता जाये
मैया -मैया ; शोर मचाये , न कुछ पीये न कुछ खाये।
छोड़- छाड़ कर सारे काम ,मैया दौड़ी -दौड़ी आयी ---
बड़े लाड से गोद बिठाया ,मुख चूमा और सिर सहलाया।
बच्चे का मुहं लाल हो रहा ,उस पर तपता जलता माथा ,अकुलाहट
-बेचैनी से बच्चे को निंद्रा न आती ,सांस उखड़ -उखड़ सी जाती।
मेरा चंदा तड़प रहा है , ज्वर-ताप से झुलस रहा है
[(मैया ? मैया ही होती ,लाड़-लाड़ में; सूरज को भी चंदा कहती! )]
अरे! कोई तो वैद बुलाओ , मुन्ने का ज्वर ताप भगाओ।
मेरा मुन्ना जग का पालक ,गर ये ही तपता जायेगा
जीव जन्तु सब जल जाएंगे ,चातक- कोकिल कुम्हलायेंगे
आसमान की परियों जाओ ,वैदराज को ढूंढ के लाओ
परियों ने फिर ढूंढ मचाई ,पवन वैद को संग-संग लायीं।
सर -सर ,फर-फर हवा चली , पल में ,लू में वो बदली
पास पवन आता जाता औ मौसम और बिगड़ता जाता।
धरती पे भी लू चलने पे ,पशु-पक्षी जन-जन अकुलाये
ताल -तलैया सूखे सारे ,वन -उपवन सब ही मुरझाये।
सूरज मुन्ना व्याकुल होकर ,मैया- मैया शोर मचाये
ना डर मेरे प्यारे मुन्ने मैया संग -संग ही है तेरे। ---
क्रोधित हो मैया ने तब ,पवन वैद को भगा दिया है
परियों को आदेश हुआ ,दौड़ो-- दूजा वैद ले आओ।
अमलतास -गुलमोहर ने तब ,परियों को है पास बुलाया ,
फूलों के कालीन बना, देश-देश उनको पहुंचाया।
कोई वैद न कोई भेषज ,कलयुग में '' महावीर ''कहाँ ?
लाडेसर बोला मैया से ,जो तू खुश हो मैं, बादल संग खेलूं ?
लुका - छिपी ,आइस -पाइस ,स्टेपू, पकड़म-पकड़ाई
बादल औ मैं ; सखा बचपन के तू कहती थी , लंगोटिया भाई।
संग-संग जब हम खेलें कूदें, कभी ताप ज्वर ना होता
तू भी व्यर्थ न अकुलाती है ,सारा जगत चैन से रहता।
गयी बादलों को हुंकार
आओ-आओ सूरज द्वार
परियां ढूंढें घाट -घाट
जंगल जंगल औ चौबाट।
पर बादल तो लुप्त हो गए ,
बरस बेमौसम ! सुप्त हो गये
मचा सकल जग हाहाकार
सूरज का क्यूँकर हटे बुखार !
पेड़नहीं -कैसे बादल ?
जंगल कटे औ नदियाँ सूखीं
हिम जगती की पिघल रही है
,बादल!
कैसे बने; कहाँ से आयें ?
गईया -बछिया सोच रही हैं ,
धरती मइया सोच रही हैं
क्या ?
ये मानव मेरी ही संतान !
क्यूँ ब्रह्माण्ड को किया हैरान ?आभा।।