काम वाली लड़की ---दीदी आपकी किचन में सिल बट्टा है इसे फेंक दो अभी के अभी।
मैं --क्यूँ भई ?
मेड ---अरे सुने नहीं हैं ये रात को भूत -भूतनी बन जा रहा है और उधमवौ मचा रहा है।
मैं --क्या बकवास है ,तू तो पढ़ी लिखी है इन बातों में मत आ।
मेड ---अरे दीदी आप को नहीं पता सुबह से कई फोन आ गए हैं ,गुड़गांव फरीदाबाद में सभी जनि फेंक आई हैं। आप अकेली हो भइया भी नहीं हैं ,रात को कुछ हो गया तो ?
मैंने बहुत समझाया ये सब अफवाहें हैं ,वो मानी न मानी --तो मैंने कहा चल मुझे डर नहीं लगता और भूत कैसे होते हैं ये जानने को तो दुनिया बेताब है , यदि सच में दिखाई दे गये तो मैं उनसे बात करूंगी ,उनकी फोटो लूंगी मजा आ जाएगा। बेचारी दीदी का तो दिमाग ही खराब हो गया है और कुछ दिनों तक लगातार डरती रही आके रोज सबसे पहले मेरे सिलबट्टे को ही देखती रही।
गणेश जी दूध पी रहे हैं ,शाम तक आते न आते इतनी गालियां पड़ गयीं पड़ोसियों से ,जानने वालों से ,जो भी फोन करे वो ही धमकादे ,हम क्यूँ नही जा रहे दूध पिलाने ,वैसे तो बहुत भगवान पे विशवास रखती है ,आज जब भगवान दूध पी रहे हैं तो नहीं जा रही है ,फिर माँ का भी फोन आ गया ,वो अपने तरीके से बोलीं --मैं तो बहू के साथ हो आयी मंदिर --तू भी देख आ --कम से कम पता तो चले झूठ सच का [माँ को पता होता है ,उसे क्या कहना है ताकि बच्चे बात न टालें ,और कहीं भगवान का आशीर्वाद लेने से चूक न जाएँ ]--चले साहब हम भी कटोरी चम्मच में दूध लिये ---पर तब तक गणपति दूध पीते -पीते थक चुके थे ,पेट फुल था सो हमारे हाथ से नहीं पिया ,पर वहां खड़े सभी लोग कह रहे थे कि उन्होंने तो पूरी कटोरी पिलायी और गणेशा गटागट पी गये। हमें वहां ऐसे देखा जा रहा था मानों हम निकृष्ट कोटि के जिनावर हों ,जिन्हें बप्पा ने अस्वीकार कर दिया।
-----अब आज मैं एक सच्ची बात बताऊँ ---मैं भोर के धुंधलके में बालकनी में खड़ी सुबह धुंध में उड़ते पक्षियों को देख रही थी अचानक एक सतरंगी उड़नतश्तरी मेरे सामने ही उत्तर गयी। ठीक वैसी ही जैसी प्लेट हम कभी discus throw में फेंकते थे। मैं जब तक नीचे देखूं की किसी ने discus throw किया है --और डांट लगाने को अपने को तैयार करूँ --उस तश्तरी का दरवाजा खुला और उसमे से छोटे छोटे एलियंस निकले। बोले कितना धुंआ है ,ये पराली जल रही है लगता है आसपास ,सांस भी नहीं ली जारही ,भद्रे ! पानी पिलाओगी। मुझ पे तो जैसे जादू चल गया ,पानी लाई और चम्मच से उन्हें पिलाया ,वो बोले भद्रे ! दो बूँद गंगाजल भी डालदो। गंगाजल पी के उन्होंने कहा --इतने प्रदूषण में हमारा जी मिचलाने लगा है ,रजनीगंधा या पानपराग है क्या ; खालें तो तबियत सुधर जाये। अब मेरे घर में तो ये सब था नहीं तो मैंने इलायची और विटामिन सी को पीस के इन नन्हें मेहमानों को चटा दिया ---चटकारे लेते हुए ये जा और वो जा ---अब सोच रही थी किसे बताऊँ मैंने आज एलियंस से बात की है --फिर सोचा fb पे लिख देती हूँ कहां और कितने फोन खड़काऊँगी ,बार-बार दोहरानी पड़ेगी कहानी।
अफवाह ------जी असहिष्णुता फ़ैल रही है ---ये सबसे नयी अफवाह है। बिलकुल गणेशजी दूध पी रहे हैं ,मदर मेरी की मूर्ति की आँखों से खून निकल रहा है ,पानी निकल रहा है जैसे ही असहिष्णुता भी फ़ैल रही है।
झूठ के पाँव नहीं होते वो प्रकाश की गति से फैलता है ,हवाओं में चिंदी-चिंदी उड़ता है और एक कान -से दूसरे कान के रास्ते आगे बढ़ता है। झूठ पहली बारी 2 % बात और बाकी बकवास होता है पर जैसे जैसे आगे बढ़ता है 2 % बकवास और बाकी बात हो जाता है। ईन मीन फत्ते की कहानी जैसा ,अकेला चला था जानिबे मंजिल ,लोग मिलते गये कारवां बढ़ता गया। एक झूठ को बार -बार बोला जाये तो वो सच का आभास देने लगता है।
अफवाह में बहुत ताकत होती है ,आधे इधर जाओ ,आधे उधर जाओ ,और बाकी मेरे साथ --पर वहां तो कोई बचता ही नहीं --आप अकेले ही रहते हैं --और सही व्यक्ति अकेला ही 100 झूठों को धूल चटाने की ताकत रखता है ---फिर हमारे जैसे कितने ही बाकी मेरे साथ मिल के देश बनाएंगे --वाले के पीछे हैं ---मैं आशावादी हूँ ----
मैं --क्यूँ भई ?
मेड ---अरे सुने नहीं हैं ये रात को भूत -भूतनी बन जा रहा है और उधमवौ मचा रहा है।
मैं --क्या बकवास है ,तू तो पढ़ी लिखी है इन बातों में मत आ।
मेड ---अरे दीदी आप को नहीं पता सुबह से कई फोन आ गए हैं ,गुड़गांव फरीदाबाद में सभी जनि फेंक आई हैं। आप अकेली हो भइया भी नहीं हैं ,रात को कुछ हो गया तो ?
मैंने बहुत समझाया ये सब अफवाहें हैं ,वो मानी न मानी --तो मैंने कहा चल मुझे डर नहीं लगता और भूत कैसे होते हैं ये जानने को तो दुनिया बेताब है , यदि सच में दिखाई दे गये तो मैं उनसे बात करूंगी ,उनकी फोटो लूंगी मजा आ जाएगा। बेचारी दीदी का तो दिमाग ही खराब हो गया है और कुछ दिनों तक लगातार डरती रही आके रोज सबसे पहले मेरे सिलबट्टे को ही देखती रही।
गणेश जी दूध पी रहे हैं ,शाम तक आते न आते इतनी गालियां पड़ गयीं पड़ोसियों से ,जानने वालों से ,जो भी फोन करे वो ही धमकादे ,हम क्यूँ नही जा रहे दूध पिलाने ,वैसे तो बहुत भगवान पे विशवास रखती है ,आज जब भगवान दूध पी रहे हैं तो नहीं जा रही है ,फिर माँ का भी फोन आ गया ,वो अपने तरीके से बोलीं --मैं तो बहू के साथ हो आयी मंदिर --तू भी देख आ --कम से कम पता तो चले झूठ सच का [माँ को पता होता है ,उसे क्या कहना है ताकि बच्चे बात न टालें ,और कहीं भगवान का आशीर्वाद लेने से चूक न जाएँ ]--चले साहब हम भी कटोरी चम्मच में दूध लिये ---पर तब तक गणपति दूध पीते -पीते थक चुके थे ,पेट फुल था सो हमारे हाथ से नहीं पिया ,पर वहां खड़े सभी लोग कह रहे थे कि उन्होंने तो पूरी कटोरी पिलायी और गणेशा गटागट पी गये। हमें वहां ऐसे देखा जा रहा था मानों हम निकृष्ट कोटि के जिनावर हों ,जिन्हें बप्पा ने अस्वीकार कर दिया।
-----अब आज मैं एक सच्ची बात बताऊँ ---मैं भोर के धुंधलके में बालकनी में खड़ी सुबह धुंध में उड़ते पक्षियों को देख रही थी अचानक एक सतरंगी उड़नतश्तरी मेरे सामने ही उत्तर गयी। ठीक वैसी ही जैसी प्लेट हम कभी discus throw में फेंकते थे। मैं जब तक नीचे देखूं की किसी ने discus throw किया है --और डांट लगाने को अपने को तैयार करूँ --उस तश्तरी का दरवाजा खुला और उसमे से छोटे छोटे एलियंस निकले। बोले कितना धुंआ है ,ये पराली जल रही है लगता है आसपास ,सांस भी नहीं ली जारही ,भद्रे ! पानी पिलाओगी। मुझ पे तो जैसे जादू चल गया ,पानी लाई और चम्मच से उन्हें पिलाया ,वो बोले भद्रे ! दो बूँद गंगाजल भी डालदो। गंगाजल पी के उन्होंने कहा --इतने प्रदूषण में हमारा जी मिचलाने लगा है ,रजनीगंधा या पानपराग है क्या ; खालें तो तबियत सुधर जाये। अब मेरे घर में तो ये सब था नहीं तो मैंने इलायची और विटामिन सी को पीस के इन नन्हें मेहमानों को चटा दिया ---चटकारे लेते हुए ये जा और वो जा ---अब सोच रही थी किसे बताऊँ मैंने आज एलियंस से बात की है --फिर सोचा fb पे लिख देती हूँ कहां और कितने फोन खड़काऊँगी ,बार-बार दोहरानी पड़ेगी कहानी।
अफवाह ------जी असहिष्णुता फ़ैल रही है ---ये सबसे नयी अफवाह है। बिलकुल गणेशजी दूध पी रहे हैं ,मदर मेरी की मूर्ति की आँखों से खून निकल रहा है ,पानी निकल रहा है जैसे ही असहिष्णुता भी फ़ैल रही है।
झूठ के पाँव नहीं होते वो प्रकाश की गति से फैलता है ,हवाओं में चिंदी-चिंदी उड़ता है और एक कान -से दूसरे कान के रास्ते आगे बढ़ता है। झूठ पहली बारी 2 % बात और बाकी बकवास होता है पर जैसे जैसे आगे बढ़ता है 2 % बकवास और बाकी बात हो जाता है। ईन मीन फत्ते की कहानी जैसा ,अकेला चला था जानिबे मंजिल ,लोग मिलते गये कारवां बढ़ता गया। एक झूठ को बार -बार बोला जाये तो वो सच का आभास देने लगता है।
अफवाह में बहुत ताकत होती है ,आधे इधर जाओ ,आधे उधर जाओ ,और बाकी मेरे साथ --पर वहां तो कोई बचता ही नहीं --आप अकेले ही रहते हैं --और सही व्यक्ति अकेला ही 100 झूठों को धूल चटाने की ताकत रखता है ---फिर हमारे जैसे कितने ही बाकी मेरे साथ मिल के देश बनाएंगे --वाले के पीछे हैं ---मैं आशावादी हूँ ----