आज अजय ६० वर्ष के हो गये ! कभी जन्माष्टमी से पहले कभी बाद में शिफ्ट होता था तुम्हारा जन्मदिन , और फिर सितम्बर में दोनों बच्चों का --भादों से अश्विन हमारे घर में त्यौहार ही त्यौहार बसते थे !क्या हुआ जो तुम मेरे पास नहीं हो तो ,कान्हा भी तो मेरे मन में ही हैं न ,और मैं तो तुम्हारी टाइमलाइन को ही संभाल रही हूँ '' बच्चों के आग्रह पे'' ; शून्य में होने पे भी इस जगह पे आती ही हूँ ,यहां तुम्हारा नाम जुड़ा है न । तुम हो हमारे साथ अजय ;आज भी कल भी हमेशा , मन के झरोंखों से झांकते ,हर सुख में खिलखिलाते हर दुःख में गले लगाते हुये। देख तो पाते हो तुम हमें ऊपर से ,बस हम ही ढूंढते रह जाते है तुम्हें।श्रधान्जली अजय ! जन्मदिन की बधाई ! तुम तो कान्हा के पास चले गये मेरी भी अर्जी आई है उसे भी देख लेना ---
( हर क्षण सपना ;सपने में बस तुम )
***************************************
सपनों के उपवन में जब भी तुमसे मिलती हूँ ,
किसलय के अधरों की आभा सी बन खिलती हूँ .
सपनो के मनहर झुरमुट ,सघन वन ये मानस मेरा,
यादों के ढहते पर्वत , नयनों से झरते झरने।
मैं जीवन से हार रही या मन निर्मल होना चाहे ,
आत्म हवन अविरल अकम्पित ,
श्रृंगार शून्य तन ,दुःख व्रती मन।
पर ,नहीं हारती ;सूने पथ की राही हूँ ,
मैं रोती नहीं !वारती -मानस मोती हूँ। ----ये पिछले वर्ष के उदगार हैं --आज भी कुछ लिखा तुम्हें अर्पण ----
<><><> मैं चिर चंचल ,विह्वल ,विरल ,
अचल ,अविचल ,अंजस , अनूक
क्रूर नियति के लेखों का फल
करुणा संवृत ,संध्या की सखि ;
मैं अनित्य , अव्यय अशेष
उषा निशा की मिलन स्थली
करुणा संवृत -संध्या की सखि
नियति के हाथो से फिसली ;
तोड़ क्षितज सीमांत बंधन
वो बवंडर आँधियों का ,
ले चला था , सब कुछ उड़ा के
हूँ उसी की धूलि का कण ;
उड़ रही नभ में धरा से !
नियति क्या औ ठौर क्या है ?
व्यथित मैं ,पर सहज भी हूँ
धूलि का फिर मोल क्या हो !
तम को जलाने -दृग दीप खोलूं
मोम की मैं करुण बाती
स्वर्ण सी ज्योती बिखेरूं
विश्वास की अनमोल थाती ;
मेघ के भीतर घटा बन
आज मैं फिर झर चली रे !
चाँद का टीका सजाये
आज फिर मैं मानिनी रे !
हवन यादों का पुनश्च:
अश्रु के स्नेह से है
औ उठा जो धूम अंबर
मधु कामना वो जन्म की है
श्रधान्जलि मम हृदय की है।। -आभा।। ..... ..... .... तिथि के अनुसार अजय का जन्म हड़तालिका तीज को होता है ,हमारे गढ़वाल में करवाचौथ जैसी ही मान्यता है हड़तालिका की। निर्जल व्रत होता है पर सीधी -साधी संस्कारी गढ़वाली महिलायें सजना सँवरना और दिखावा नही जानती थीं पहले [अब तो बाजार की दस्तक हर घर में है ] बहुत कठिन होता है हड़तालिका का व्रत , मैंने भी सारे व्रत किये हड़तालिका ,करवाचौथ ,वटसावित्री ,सोमवार ,गौरातीज ---पर जिसकी जितनी साँसें होती है उसे ये व्रत नही बढा सकते ,न ही कोई चमत्कार होता है ---हाँ ये व्रत आपको आत्मबल देते है ये मेरा मानना है --बाकी तो जीवन पानी में लिखी लिखाई ही है ,कब लहर आके मिटा दे ये संयोग है ---------------
( हर क्षण सपना ;सपने में बस तुम )
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सपनों के उपवन में जब भी तुमसे मिलती हूँ ,
किसलय के अधरों की आभा सी बन खिलती हूँ .
सपनो के मनहर झुरमुट ,सघन वन ये मानस मेरा,
यादों के ढहते पर्वत , नयनों से झरते झरने।
मैं जीवन से हार रही या मन निर्मल होना चाहे ,
आत्म हवन अविरल अकम्पित ,
श्रृंगार शून्य तन ,दुःख व्रती मन।
पर ,नहीं हारती ;सूने पथ की राही हूँ ,
मैं रोती नहीं !वारती -मानस मोती हूँ। ----ये पिछले वर्ष के उदगार हैं --आज भी कुछ लिखा तुम्हें अर्पण ----
<><><> मैं चिर चंचल ,विह्वल ,विरल ,
अचल ,अविचल ,अंजस , अनूक
क्रूर नियति के लेखों का फल
करुणा संवृत ,संध्या की सखि ;
मैं अनित्य , अव्यय अशेष
उषा निशा की मिलन स्थली
करुणा संवृत -संध्या की सखि
नियति के हाथो से फिसली ;
तोड़ क्षितज सीमांत बंधन
वो बवंडर आँधियों का ,
ले चला था , सब कुछ उड़ा के
हूँ उसी की धूलि का कण ;
उड़ रही नभ में धरा से !
नियति क्या औ ठौर क्या है ?
व्यथित मैं ,पर सहज भी हूँ
धूलि का फिर मोल क्या हो !
तम को जलाने -दृग दीप खोलूं
मोम की मैं करुण बाती
स्वर्ण सी ज्योती बिखेरूं
विश्वास की अनमोल थाती ;
मेघ के भीतर घटा बन
आज मैं फिर झर चली रे !
चाँद का टीका सजाये
आज फिर मैं मानिनी रे !
हवन यादों का पुनश्च:
अश्रु के स्नेह से है
औ उठा जो धूम अंबर
मधु कामना वो जन्म की है
श्रधान्जलि मम हृदय की है।। -आभा।। ..... ..... .... तिथि के अनुसार अजय का जन्म हड़तालिका तीज को होता है ,हमारे गढ़वाल में करवाचौथ जैसी ही मान्यता है हड़तालिका की। निर्जल व्रत होता है पर सीधी -साधी संस्कारी गढ़वाली महिलायें सजना सँवरना और दिखावा नही जानती थीं पहले [अब तो बाजार की दस्तक हर घर में है ] बहुत कठिन होता है हड़तालिका का व्रत , मैंने भी सारे व्रत किये हड़तालिका ,करवाचौथ ,वटसावित्री ,सोमवार ,गौरातीज ---पर जिसकी जितनी साँसें होती है उसे ये व्रत नही बढा सकते ,न ही कोई चमत्कार होता है ---हाँ ये व्रत आपको आत्मबल देते है ये मेरा मानना है --बाकी तो जीवन पानी में लिखी लिखाई ही है ,कब लहर आके मिटा दे ये संयोग है ---------------