Saturday, 30 December 2017



खोया-पाया -आभा -चक्कलस की इंतिहा --
 श्रीमदफ़ेसबुकम नाम आधुनिक पुराणं लोकविश्रुतम्।
श्रृणुयच्छ्र द्ध्या युक्तो मम सन्तोषकारणम्।।
-----जी आधुनिक पुराण फेसबुक में एक दूसरे की खिड़कियों से ताकझांक करना या चौपाल बना गुफ्तगू करना आज का सबसे बड़ा सैटिस्फैक्शन है--
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=====कलैण्डरी साल का आखिरी पड़ाव ओर  चहुंओर धुनकी की रूई सी उड़ती चक्कलसियां -क्या खोया क्या पाया जो लक्ष्य निर्धारित किया था उस पर कहां तक पहुंचे !
अपना तो हाल गढ़वाली के एक मुहावरे " चल भाग बल सबमें आग (आगे )" जैसा ही है --परेशानी ने खूब नचाया छूटते-छूटते फिर से दामन थाम लिया पर खैर ये तो जिंदगी है यूँ  चलती है -एक जिंदगी अब फेसबुक की दुनिया में भी जीने लगे हैं हम जैसे लोग -और आज इस फेसबुकी  दिमागी चक्कलस में मैंने भी डुबकी लगाने की सोची == यहां मैंने क्या खोया क्या पाया ये सोचने लगी। ( असल में यहां आने पे कुछ देर को ही सही अपनी निजी परेशानियों से आभासी छुटकारा तो मिल ही जाता है )-
==आभासी दुनिया का ये नीला पटल इस वर्ष बहुत कुछ दे गया मुझे। कुछ बहुत प्यारी सी बहनों जैसी सखियाँ जो शायद मैं यहां न आती तो न मिलतीं -धन्यवाद ,शुक्रिया thanks फेसबुक --आँचल भर प्यार मिला मुझे।
कुछस्नेही  मित्र-प्यारी सखियाँ  मिलीं  जो मेरी पोस्ट को पढ़के लाइक करते हैं,  टिप्पणी करके मेरा मान भी बढ़ाते है --जी भर के धन्यवाद आप सभी का -आप सभी मेरी ऊर्जा हैं मैं आप सभी को पढ़ के ही लिखना सीख रही हूँ।
कुछ मित्र जो पिछले वर्षों में खूब टिप्पणी करते थे अब दूर से ही देखके कन्नी काटने  लगे हाँ बात होने पे या मैसेज में लिख-कह देते हैं कि उन्होंने पोस्ट पढ़ी -अब आप पूछेंगे ये भी कोई बात हुई ऐसे मित्रों ने इग्नोर करना क्यों शुरू किया --तो बात "न्यु " है कि मैं भारत के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र दामोदर मोदी जी की नीतियों की प्रसंशक हूँ और मेरे अधिकतर बुद्धिमान मित्र उनके कट्टर शत्रु ---उस पर  मेरा दोष ये कि मैं ऐसे स्नेहिल मित्रों की वाल पे हक से अपनी बात लिख आती हूँ ---एक तो नारी ="जो कभी भी अरी नहीं हो सकती "=ऊपर से बेबाक अपनी राय लिखने वाली बेचारों ने मेरी चौपाल को दूर से ही झाँक के गुजरना ठीक समझा -ठीक भी है ---यहां तो सब बहस भी अपने मन मुताबिक़ ही चाहते हैं।
कुछ बुद्धिमान आदरणीय बुजुर्ग -जिनको गुरु का दर्जा प्राप्त है फेसबुक में -उनकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहती है पढ़ती भी हूँ पर अपने को अभी उस श्रेणी में नहीं पाती कि टिप्पणी करूं ,अपनी इस गलती का अहसास है मुझे पर क्या करूं -
कुछ अति - बुद्धिमान मित्र हैं जो क्या लिखते हैं समझ ही नहीं आता और कभी मेरी वाल पे नहीं आते पर शिकायतें करते हैं मैंने उनके लिखे पे टिप्पणी नहीं की -अब सोचिये कितनी बड़ी दुकष्टि  है
कुछ महिला - पुरुष - मित्र जिन्होंने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट क्यों भेजी मुझे कभी  भी समझ नहीं आया -वो केवल अपनी फोटो डालते -डालती हैं और फोटो पे शेर सवाशेर ही लिखते -लिखती रहते-रहती  हैं  -अब इनको मैं वाह ,खूब ,सुंदर कितनी बार तो लिखूं -बस अनफ्रैंड इसलिये नहीं करती --कि क्या जाने इस आभासी दुनिया में मेरे किसी अन्य जन्म की आभासी दुनिया के बचपन या बुढ़ापे के मित्र हों
एक झोला भर पत्रकार भाई ,जिनमे से कुछ तो इतने विद्वान हैं कि मैं डर के मारे उनकी पोस्ट पे केवल लाइक ही करती हूँ --ये सोच के कुछ लिख ही नहीं पाती कि  न जाने मैं अज्ञानी अपना असली चेहरा ही न दिखा बैठूं !बड़ी मुश्किल  से  दीदी वाला रूतबा मिला है।
,स्नेहिल ,ढीठ ,मसखरे ,बुद्धिमान ,तथाकथित बुद्धिमान  ,इग्नोरी,एरोगेंट -  खूब सारे मित्र और मित्राणियाँ - कुछ जलकुकड़े ,कुछ घमंडी ,कुछ नकचढ़े रिश्तेदार -कुछ सचमें प्यार करने वाले रिश्तेदार -जो वैसे कभी न पूछें पर फेसबुक में पूछ लेते हैं -  पोटली भर -खूबसूरत प्यारी बेटियां और हैंडसम बेटे ,और आंचलभर प्यारी सखियाँ ----वाह ! ये तो पाया ही पाया की चक्कलस हो गयी -
आभासी दुनिया में खोने को कुछ होता भी तो नहीं है ---
 ----नित्यं फेसबुकम् यस्तु पुराणं पठते नर:|
प्रत्यक्षरं लिखेत्तस्य आत्ममुग्धं फलं लभेत।।
----आते रहना स्नेही मित्रों इस चौपाल में --
मुझे आशीष है विष्णु जी का की जो मेरी चौपाल पे आता रहेगा उसे --कलियुग परेशान नहीं करेगा
"आस्फोटयन्ति वल्गन्ति तेषां प्रीतो भवाम्यहम् ''--सच में -कल रात ही सपने में मुझसे  आकाशवाणी ने कहा था -ऐसे लोग जो मेरी चौपाल पे आएंगे वो कलि के प्रभाव से निडर होक ताल ठोकें उनपर कलयुग का प्रभाव नहीं होगा।
अथ श्रीमदफ़ेसबुके पुराणे -२०१७ रेवाखण्डे संक्षिप्त कथा ---चक्कलस अध्याय: समाप्त:-आभा।