“तपता सूरज -तपती धरती”
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चढ़ा सूर्य को तेज बुखार,
मचा जगत में हाहाकार
दिन पर दिन वो तपता जाये ,
हो बेचैन हांफता जाये
मैया -मैया ; शोर मचाये ,
न कुछ पीये न कुछ खाये
छोड़- छाड़ कर सारे काम ,
मैया दौड़ी -दौड़ी आयी
बड़े लाड से गोद बिठाया ,
मुख चूमा , सिर सहलाया
बच्चे का मुहं लाल हो रहा ,
तपता जलता माथा ,अकुलाहट
बेचैनी से नींद न आती ,
सांस उखड़ -उखड़ सी जाती
मेरा चंदा तड़प रहा है ,
ज्वर-ताप से झुलस रहा है
मैया ? मैया ही होती ,
लाड़-लाड़ में;
सूरज को भी चंदा कहती!
अरे! कोई तो वैद बुलाओ ,
मुन्ने का ज्वर ताप भगाओ
मेरा मुन्ना जग का पालक ,
ये यूँ ही तपता जायेगा-
तो !
जीव जन्तु सब जल जाएंगे ,
चातक- कोकिल कुम्हलायेंगे
आसमान की परियों जाओ ,
वैदराज को ढूंढ के लाओ
परियों ने फिर ढूंढ मचाई ,
पवन वैद को संग में लायीं
सर -सर ,फर-फर हवा चली ,
पल में ,लू में वो बदली
पास पवन आता जाता ,
मौसम और बिगड़ता जाता
धरती पे भी लू चली ,
पशु-पक्षी जन-जन अकुलाते
ताल -तलैया सूखे जाते ,
वन -उपवन सब ही मुरझाये-
सूरज मुन्ना व्याकुल होकर ,
मैया- मैया शोर मचाये
ना डर मेरे प्यारे मुन्ने
मैया संग -संग ही है तेरे।
क्रोधित हो मैया ने तब ,
पवन वैद को भगा दिया
परियों को आदेश हुआ ,
दौड़ो-- दूजा वैद ले आओ
अमलतास -गुलमोहर ने तब ,
परियों को है पास बुलाया
फूलों के कालीन बना,
देश-देश उनको पहुंचाया।
कोई वैद न कोई भेषज ,
कलयुग में '' महावीर ''कहाँ ?
लाडेसर बोला मैया से ,
मैया ! बादल मेरा प्रिय सखा है
बादल संग खेलूंगा तो
तापशाप सब गायब होगा
बादल - मैं लंगोटिया यार -
तूने ही कहा सौ बार।
लुका - छिपी ,आइस -पाइस ,
स्टेपू और पकड़म-पकड़ाई
संग-संग जब हम खेलें कूदें,
कभी ताप ज्वर ना होता है।
तू भी व्यर्थ न अकुलाती है ,
जग सगरा चैन से रहता।
गयी बादलों को हुंकार ,
आओ-आओ सूरज द्वार
परियां ढूंढें घाट -घाट ,
जंगल- जंगल औ चौबाट।
पर बादल तो लुप्त हो गए ,
बेमौसम बरस ! सुप्त हो गये
मचा सकल जग हाहाकार ,
सूरज का क्यूँकर , हटे बुखार !
पेड़ नहीं -कैसे बादल ,
जंगल कटे -नदियाँ सूखीं
हिम जगती की पिघल रही है ,
बादल!
कैसे बने; कहाँ से आयें ?
गईया -बछिया सोच रही हैं ,
धरती मइया सोच रही हैं
ये मानव मेरी ही संतान !
क्यूँ ब्रह्माण्ड को किया हैरान ?आभा।।