Friday, 25 May 2018



“तपता सूरज -तपती धरती”

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चढ़ा सूर्य को तेज बुखार,
मचा जगत में हाहाकार
दिन पर दिन वो तपता जाये ,
हो बेचैन हांफता जाये
मैया -मैया ; शोर मचाये ,
न कुछ पीये न कुछ खाये
छोड़- छाड़ कर सारे काम ,
मैया दौड़ी -दौड़ी आयी
बड़े लाड से गोद बिठाया ,
मुख चूमा , सिर सहलाया
बच्चे का मुहं लाल हो रहा ,
तपता जलता माथा ,अकुलाहट
बेचैनी से नींद  न आती ,
सांस उखड़ -उखड़ सी जाती
मेरा चंदा तड़प रहा है ,
ज्वर-ताप से झुलस रहा है
मैया ? मैया ही होती ,
लाड़-लाड़ में;
सूरज को भी चंदा कहती!
अरे! कोई तो वैद बुलाओ ,
मुन्ने का ज्वर ताप भगाओ
मेरा मुन्ना जग का पालक ,
ये यूँ  ही तपता जायेगा-
तो !
जीव जन्तु सब जल जाएंगे ,
चातक- कोकिल कुम्हलायेंगे
आसमान की परियों जाओ ,
वैदराज को ढूंढ के लाओ
परियों ने फिर ढूंढ मचाई ,
पवन वैद को संग में  लायीं
सर -सर ,फर-फर हवा चली ,
पल में ,लू में वो बदली
पास पवन आता जाता ,
मौसम और बिगड़ता जाता
धरती पे  भी लू चली  ,
पशु-पक्षी जन-जन अकुलाते
ताल -तलैया सूखे जाते ,
वन -उपवन सब ही मुरझाये-
सूरज मुन्ना व्याकुल होकर ,
मैया- मैया शोर मचाये
ना डर मेरे प्यारे मुन्ने
मैया संग -संग ही है तेरे।
क्रोधित हो मैया ने तब ,
पवन वैद को भगा दिया
परियों को आदेश हुआ ,
दौड़ो-- दूजा वैद ले आओ
अमलतास -गुलमोहर ने तब ,
परियों को है पास बुलाया
फूलों के कालीन बना,
देश-देश उनको पहुंचाया।
कोई वैद न कोई भेषज ,
कलयुग में '' महावीर ''कहाँ ?
लाडेसर बोला मैया से ,

मैया ! बादल मेरा प्रिय सखा है
बादल संग खेलूंगा तो
तापशाप सब गायब होगा
बादल - मैं  लंगोटिया यार -
तूने ही कहा सौ बार।
लुका - छिपी ,आइस -पाइस ,
स्टेपू और पकड़म-पकड़ाई
संग-संग जब हम खेलें कूदें,
कभी ताप ज्वर ना होता है।
तू भी व्यर्थ न अकुलाती है ,
जग सगरा चैन से रहता।
गयी बादलों को हुंकार ,
आओ-आओ सूरज द्वार
परियां ढूंढें घाट -घाट ,
जंगल- जंगल औ चौबाट।
पर बादल तो लुप्त हो गए ,

बेमौसम बरस  ! सुप्त हो गये
मचा सकल जग हाहाकार ,
सूरज का क्यूँकर , हटे बुखार !
पेड़ नहीं -कैसे बादल ,
जंगल कटे -नदियाँ सूखीं
हिम जगती की पिघल रही है ,
बादल!
कैसे बने; कहाँ से आयें ?
गईया -बछिया सोच रही हैं ,
धरती मइया सोच रही हैं
ये मानव मेरी ही संतान !
क्यूँ ब्रह्माण्ड को किया हैरान ?आभा।।

Tuesday, 8 May 2018


दो भाई थे। एक की उम्र 8 साल दूसरे की 10 साल।दोनों बड़े ही शरारती थे।
उनकी शैतानियों से पूरा मोहल्ला तंग आया हुआ था। माता-पिता रात दिन
इसी चिन्ता में डूबे रहते कि आज पता नहीं वे दोनों क्या करें। एक दिन गांव में एक साधु आया। लोगों का कहना था कि बड़े ही पहुंचे हुये महात्मा है।
जिसको आशीर्वाद दे दें उसका कल्याण हो जाये। पड़ोसन ने बच्चों की मां को सलाह दी कि तुम अपने बच्चों को इन साधु के पास ले जाओ। शायद उनके
आशीर्वाद से उनकी बुध्दि कुछ ठीक हो जाये। मां को पड़ोसन की बात ठीक लगी। पड़ोसन ने यह भी कहा कि दोनों को एक साथ मत ले जाना नहीं तो क्या पता दोनों मिलकर वहीं कुछ शरारत कर दें और साधु नाराज हो जाये।
अगले ही दिन मां छोटे बच्चे को लेकर साधु के पास पहुंची। साधु ने बच्चे को अपने सामने बैठा लिया और मां से बाहर जाकर इंतजार करने को कहा ।
साधु ने बच्चे से पूछा – ”बेटे, तुम भगवान को जानते हो न ?
बताओ, भगवान कहां है ?” बच्चा कुछ नहीं बोला बस मुंह बाए साधु की ओर
देखता रहा। साधु ने फिर अपना प्रश्न दोहराया । पर बच्चा फिर भी कुछ नहीं बोला। अब साधु थोड़ी नाराजगी प्रकट करते हुये कहा – ”मैं क्या पूछ रहा हूं..? भगवान कहां है ?” बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुंह बाए साधु की ओर हैरानी भरी नजरों से देखता रहा। अचानक जैसे बच्चे की चेतना लौटी। वह उठा और तेजी से बाहर की ओर भागा। साधु ने आवाज दी पर वह रूका नहीं सीधा घर जाकर अपने कमरे में पलंग के नीचे छुप गया। बड़ा भाई, जो घर पर ही था,ने उसे छुपते हुये देखा तो पूछा – ”क्या हुआ ? छुप क्यों रहे हो ?”
”भैया, तुम भी जल्दी से कहीं छुप जाओ” बच्चे ने घबराये हुयेस्वर में कहा।
”पर हुआ क्या ?” बड़े भाई ने भी पलंग के नीचे घुसने की कोशिश करते हुये पूछा। ”अबकी बार हम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गये हैं। भगवान कहीं गुम हो गया है और लोग समझ रहेहैं कि इसमें हमारा हाथ है!------------

यही है मासूम बचपन -काश फिर लौट आये -