ठाली बैठे -सुधियों के जलधि में गोता लगाना -
'समय '
=====
पग- समय के,
छाया की मानिंद
पथ में ,चलते हैं साथ -
सृष्टि के।
न आवाज ,
न आकृति
पारदर्शी -
समय की पदचाप ,
सुनाई नहीं देती -
न आपको न मुझे।
पर हैं सभी -
इसी पथ पे,
फना होना - नियति।
जग से बंधन
कुछ निष्ठुर क्षणों के ,
मन की परतें खोलते -
बोलते -लिखते
पर ----
मज्जा से परत दर परत
अस्थि होती देह -
विषाद में जाएगा मन ,
सो न ----
देखने की जिद्द -
उपेक्षा
या फिर प्रकृति की
अवहेलना !
छीजती देह -
समय संग -
करती कदमताल ,
कब होजाती
कंकाल ?
अब सभी एक से !
न रूप न रंग
समय के पारदर्शी
रंग में रंगे।
देख कुछ कंकालों को
सुधियाँ करने लगीं
अट्टहास -----
सदियां कौंध गयी
मन में----
बोल !शब्द ! सब
खामोश -आभा -
'समय '
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पग- समय के,
छाया की मानिंद
पथ में ,चलते हैं साथ -
सृष्टि के।
न आवाज ,
न आकृति
पारदर्शी -
समय की पदचाप ,
सुनाई नहीं देती -
न आपको न मुझे।
पर हैं सभी -
इसी पथ पे,
फना होना - नियति।
जग से बंधन
कुछ निष्ठुर क्षणों के ,
मन की परतें खोलते -
बोलते -लिखते
पर ----
मज्जा से परत दर परत
अस्थि होती देह -
विषाद में जाएगा मन ,
सो न ----
देखने की जिद्द -
उपेक्षा
या फिर प्रकृति की
अवहेलना !
छीजती देह -
समय संग -
करती कदमताल ,
कब होजाती
कंकाल ?
अब सभी एक से !
न रूप न रंग
समय के पारदर्शी
रंग में रंगे।
देख कुछ कंकालों को
सुधियाँ करने लगीं
अट्टहास -----
सदियां कौंध गयी
मन में----
बोल !शब्द ! सब
खामोश -आभा -