बैठेठाले
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(Sally Of Mind -(दिमागी कूद या कुलेल )
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यादेवीसर्वभूतेषु --नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
देवी का आह्वान किया गया उन्हें नमस्कार -कर से नमन करके -
कर से नमन कैसे होगा --केवल हाथ जोड़ के मंदिर में "नमस्तस्यै नमस्तस्यै गाने से नहीं -अपितु अपने अपने कर्मों का सम्यक निर्वहन करने से -
सुबह-सवेरे मंदिर में या देवता की मूर्ति के सामने नमस्तस्यै नमो नम:का गान तो पूरे दिन भर के कोरे पन्ने को भरने की कार्य सूची का स्मरण मात्र है और है चेतन ऊर्जा का संकलन।
नवरात्रि में अधिकाँश लोग यादेवीसर्वभूतेषु -प्रार्थना पढ़ते ही हैं
यदि हम इसे ऐसे पढ़ें तो --
विष्णुमायेति संस्थिता --जो विष्णु की माया है या विष्णु को भी मोहित करने में सक्षम है
चेतनेत्यभिधीयते ---जो विष्णु को मोहित कर लेगी वो प्रखर चेतना ही होगी और धीयते - धी -बुद्धि चेतना -- धी का एक अर्थ बेटी भी ---होगी -प्रारम्भ में ही कन्या की धारणा वो देवी --बुद्धि है -
बुद्धिरूपेण संस्थिता
बुद्धि है तो मस्तिष्क चलेगा -चलेगा तो उसे आराम भी चाहिये और मस्तिष्क को आराम ,निद्रा की गोद में ही मिलेगा -तो वो
निद्रारूपेण संस्थिता हो गयी -
निद्रा देवी है तो जागने पे हम नव ऊर्जा से युक्त होंगे।
अब निद्रा में चयपचय की क्रिया से मानव की ऊर्जा का क्षय हुआ तो भूख लगेगी - देवी
क्षुधारूपेण संस्थिता हो गयी -
क्षुधा में देवी का आवाहन -हम भक्ष्य अभक्ष्य न खाएं -सम्यक खाएं पर प्रसाद समझ के खाएं।
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता ---
अब इसके भी मैं दो अर्थ लगाती हूँ -एक तो क्षुधा पूर्ति के बाद कुछ समय छाया में सुस्ता लो या फिर अपनी छाया में रहने वाले (जिनके पालन पोषण का भार आपके ऊपर है )-या जरूरतमंदों की -यथाशक्ति क्षुधा पूर्ति करो। क्यूंकि क्षुधा भी देवी है तो पूजा जैसा ही लाभ मिलेगा।
ऐसे ही मैं सम्पूर्ण प्रार्थना को अपने मन में विश्लेषित कर जीने के लिए अनुशासन बद्ध पाठ मान के ही चलती हूँ -क्षुधा शांत करने को खाना खाया -खाने से शक्ति आयी --
शक्तिरूपेण संस्थिता।
शक्ति आयी तो प्रदर्शन की चाह जगी --
तृष्णारूपेण संस्थिता
शक्ति और तृष्णा के साथ ही क्षमा होना आवश्यक है अन्यथा विध्वंस निश्चित है -तो अब
क्षांतिरूपेण संस्थिता।
अब शक्ति के साथ ही कर्म भी आ गया -प्रत्येक कर्म के लिए कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता होगी -तो आवश्यकतानुसार उन्हें समूहों में बाँट दिया जाए --
जातिरूपेण संस्थिता -
समूह के अपने नियम होंगे जहां लज्जा -यानि -प्रदर्शन और दिखावे की अति की मनाही भी होगी --
लज्जारूपेण संस्थिता।
अब जितने कर्म उतने समूह ,उतनी जातियां -फिर संघर्ष का भय तो देवी अब तू इस समाज में शांति बन के प्रतिष्ठापित हो -
शान्तिरूपेण संस्थिता।
कार्य कुशलता ,नियम से चलना ,संघर्ष का न होना -क्षांति का अनुसरण करने वाले समाज में सदैव ही शांति का निवास होगा --
जहां शांती होगी वहां प्राणियों में परस्पर सामंजस्य होगा प्रकृति से प्यार होगा और होगी सभी के प्रति श्रद्धा -श्रद्धारूपेण संस्थिता।
ऐसे समाज में व्यष्टि -समष्टि कांति से दैदीप्यमान होगा -
-कान्तिरूपेण संस्थिता।
और जहां इतना सब होगा लक्ष्मी वहीं अपना निवास बनाएगी --ल
क्ष्मीरूपेण संस्थिता।
लक्ष्मी प्रचुरमात्रा में होगी तो वृत्तियाँ (व्यापार -उद्योग )भी बढ़ेंगीं -श्री-समृद्धि में वृद्धि होगी -
वृत्तिरूपेण संस्थिता।
स्मृति व्यापार की आवश्यकता -तो
स्मृतिरूपेण संस्थिता।
बढ़ते व्यापार और बढ़ती समृद्धि के साथ ही समाज में --प्राणिमात्र के लिए ममता की भावना बहुत आवश्यक है -तो अब देवी
दयारूपेण संस्थिता।
समाज के वंचित वर्ग ,पशुपक्षी प्रकृति के लिए मन में दया ममता होना --और कुछ सार्थक करना संतोष और तुष्टि का कारक होगा पर उस करने में अहंकारी न हो जाएँ अत: तुष्टि में भी देवी का आवाहन -
तुष्टिरूपेण संस्थिता।
सृष्टि की रचयिता ,जननी -जिसके होने से संसार है --जो आदि भी है अनंत भी है --उसको नमन-माँ से बड़ी देवी कोई नहीं तो माँ को देवी मानने का संकल्प -
मातृरूपेण संस्थिता।
पर स्त्री माँ के साथ ही और कई रूपों में भी प्रस्तुत होती है -भ्रान्ति न फैले -इसलिएदेवी को भ्रान्ति में भी स्थापित कर दिया गया -
भ्रान्तिरूपेण संस्थिता -
से समस्त इन्द्रियों में देवी की स्थापना -इन्द्रियाणामधिष्ठात्री ---वो अखिल विश्व की चेतना है। जगत के चित में चेतना रूपी जो तत्व है वो देवी का ही रूप है वही विष्णु की चेतना है ,वही शव को शिव बनाती है --चितिरूपेण ---इस तरह से विष्णु रूप में देवी का आवाहन कर उसे -गुणों में गुणों को बरतते हुए प्रत्येक इंद्री और गुण की अधिष्ठात्री कहा गया.--इस तरह से ये प्रार्थना याद भी बहुत शीघ्र हो जाती है --कि किस गुण के बाद कौन सा आएगा तथा मानवीय संवेदनाओं को भी संरक्षित और संवर्धित करती है।
शास्त्रोक्त विधानों को परम्परा की लाठी से पीटने की जगह हम तर्कों के आधार पे उनको अपनाएँ तो आनंद की अनुभूति होती है। पूजा प्रार्थना को विक्रमबेताल की तरह ढोने की मजबूरी नहीं होनी चाहिए ये मेरी सोच।
---Sally Of Mind -(दिमागी कूद या कुलेल )आभा।।