Friday, 1 February 2019



" फकत मैं "
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माटी की  काया की ये चाहत
सात रंग मुझमें भी दीखें।
दौड़  अंधी    राह   पे
पाने की भी -खोने की भी.
कुछ बन चलूँ कुछ कर चलूँ "मैं "
इंद्रधनु सा सजे -- जीवन ,
मोह   माया    अनुराग के
इच्छा आकांक्षाओं के जंगल,
शर्म  हया  नैतिकता 
सभ्यता संस्कारों की  जकड़न,
"मैं " मेरा   अभिमान लेके
उड़ चला "मैं " गगन छूने
मानव बना उसने था भेजा
"मैं "बना "मैं "उसे भूला ,
होम कर दी जिंदगानी -
समिधा "मैं" ने स्वयं की  दी।आभा। 






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