" फकत मैं "
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माटी की काया की ये चाहत
सात रंग मुझमें भी दीखें।
दौड़ अंधी राह पे
पाने की भी -खोने की भी.
कुछ बन चलूँ कुछ कर चलूँ "मैं "
इंद्रधनु सा सजे -- जीवन ,
मोह माया अनुराग के
इच्छा आकांक्षाओं के जंगल,
शर्म हया नैतिकता
सभ्यता संस्कारों की जकड़न,
"मैं " मेरा अभिमान लेके
उड़ चला "मैं " गगन छूने
मानव बना उसने था भेजा
"मैं "बना "मैं "उसे भूला ,
होम कर दी जिंदगानी -
समिधा "मैं" ने स्वयं की दी।आभा।
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