Tuesday, 26 February 2013


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Wednesday, 13 February 2013


बसंत पंचमी बसंत के आने का आगाज ,दूर तक फैले सरसों के खेतों की मादकता में बहता मन ,मंजरी से लदे आम के वृक्ष ,और चहुँ और फैली मंजरी की मादक सुगंध ,नीम क्र वृक्ष पर छोटे -छोटे सितारों से उग आये असंख्यों धवल पुष्प ,अमरुद ,सेब ,खुबानी ,बादाम,की सफ़ेद, गुलाबी फूलों से लदी डालियाँ ,सुदूर तक फैली हरियाली ,आम पे कूकती कोयल ,शहतूत के पेड़ पर नई कोमल -कोपलों को खाते खंजन पक्षी ,पारिजात के श्वेत-नारंगी फूलों की चादर जो सुबह सवेरे आगन में बिछी हुई मिलती है ,चमेली और रातकीरानी से मह- मह -महकता घर आंगन ,कचनार पे लदे गुलाबी फूल और कलियाँ ,लाल ,पीले कनेर के दमकते वृक्ष ,वसंत -मालती और बेला की फूलों से लदी लताओं से महकता बाग़ ,लीची के बौर ,बेलके वृक्ष के नवीन कोमल पत्ते ,पीपल ,जामुन ,आंवला ,हरितिका ,बहेड़ा ,रुद्राक्ष सभी पे नव- नवीन हरी कोंपलें ,नींबू के फूलों की महक ,तेजपात और अशोक के वृक्षों के लाल हरे कोंपल ,बांस के झुरमुट साथ में छोटी -2 क्यारियों में फ्लोक्स ,पोपी .डहेलिया गेंदा गुलाब और तरह -2 के रंग बिरंगे पुष्प ,स्वीट पी की झालरें ,गुलमोहर अमलतास ,घर क्या था छोटा सा जंगल ही था जिसमे हमने हर वृक्ष को अपने हाथों से लगाया था ,तितलियाँ भँवरे ,मधुमक्खियाँ ,कई तरह के पक्षी यों को घोंसला बनाते देखना ,तोतों ka भांग का बीज खाकर-नाचना ,,,सही में होता था बसंत का आगाज .आज भी बसंत की वे यादें रोमांचित कर देती हैं ,बच्चों की तरह हर फूल और कली को देख कर हम खुश हो जाते थे .अब कंक्रीट के इस जंगल में अपनी बालकनी के चार बिरवों में ही मैं बसंत ढूँढती हूँ .
यही है जिंदगी ...कवियों ने बसंत को ऋतुओं का राजा ,और कामदेव का सखा का सम्मान दिया है .
बसंत में हर सुमन में होता है संकेत प्रकृति की चेतनता का ,, मिलन और वियोग को उद्दीप्त करने के लिए कवियों ने बसंत का ही सहारा लिया है .सत्य है दिग दिगंत में दीप्ती व्याप्त हो जाती है वसंत के आते ही .
शरद में अलसाई प्रकृति मा नो अंगड़ाई लेकर उठ खड़ी होती है ,नवीन चेतना के साथ ,असल में प्रकृति मनुष्य को संकेत देती है संकेत देती है चेतनता का ...बसंत तो अनादि - काल से ही वसंतोत्सव की मादकता लिए महका किया है ,ये नव चेतना की ऋतू है ,इस ऋतु में ,सुबह की सैर ,प्राणायाम ,हल्का फुलका व्यायाम ,और सही आहार मानव को वर्ष -भर निरोगी रखता है बसंत पंचमी , आह्लाद की ऋतु का आगाज है तो समाज में फैले कोहरे को मिटाने के लिए बुद्धि ,विद्या की देवी ----माँ सरस्वती की अराधना का दिवस भी है माँ की अराधना हमारे जीवन में ,समाज में ,फैले अंधकार को ,कुहासे को दूर करके ,हमारे और राष्ट्र के जीवन को उपयोगी और मधुर बनाए यही मेरी शुभेच्छा है आप सब को बसंत -पंचमी की शुभ- कामनाएं ..........
वर दे वीणा वादिनी वर दे !
प्रिय स्वन्त्र रव ,अमृत मन्त्र नव ,
भारत में भर दे ,वर दे ------------!
काट अंध उर के बंधन स्तर ,
बहा जननी !ज्योतिर्मय निर्झर ,
कलुष -भेद तम हर ,प्रकाश भर ,
जग -मग -जग कर दे .
वर दे ------------------!
नव गति, नव लय,ताल छंद नव ,
नवल कंठ ,नव् जलद मंद्र नव .
नव नभ के नव विहग वृन्द को
नव पर नव सुर दे वर दे वीणा वादिनी वर दे ,.......वसंत पंचमी हम सब के जीवन में वसंत का आगाज हो .................आभा .............................

Tuesday, 5 February 2013

                                    बादल से जुडी तेरी यादे 
        बादल  नहीं  ये आसमां पर,ये मेरे सपने हैं अपने ,
              आज भू पर बरसते हैं !...
         गर्जन जो है ये आसमां पर ,सपनों का मेरे बांकपन है ,
       कह रहे हैं कहानी ,मन की मेरे अपनी धुनक में ,
         और बिजली की चमक ये ,तड़प है तुझ से मिलन की 
         आज न रोको मुझे तुम ,मै चली हूँ देश तेरे .
           लड़ियाँ जो बूंदों की बनी हैं ,हार मेरे आंसुओं का ,
           भीगती हूँ मैं भी इसमें ,भीगता है तू भी इसमें ,
          अहसास ये जो सर्द सा है ,छू रही हूँ ख़त मैं! जो तूने, लिखे थे ,
           आज बा दल ये जो छाये आसमां  पर ,
           ये मेरे सपने ,मेरी आँखों से निकल कर ,
           उमड़ -घुमड़ नाजो-अदा से बरसते हैं देश तेरे ...
.......................आभा .....................................