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कालिदास का मूर्ख से विद्वान बनना , वो भी संस्कृत के महा पंडित ,कवि ,नाटककार ,कहानी कार और महाकाव्य के रचयिता के रूप में , महज कुछ ही वर्षों के अंतराल में ! मेरी मूर्खता ये कभी भी नहीं पचा पाती है| तब भी नहीं जब मैं पढ़ते हुए ,कालिदास को अपने रगों में बहते हुए महसूस कर सकती हूँ | विद्योत्मा को नीचा दिखाने के लिए, पंडितों की कुचाल के कारण, कालिदास जैसे मूर्ख (जो जिस डाल पे बैठा था उसे ही काट रहा था ) का प्रादुर्भाव साहित्य जगत में हुआ | जो शादी के बाद मूर्खता का भेद खुल जाने और लताड़े जाने पे विद्वान् बनने चल दिया | स्त्री द्वारा लताड़े जाने पे तो सूर और तुलसी भी प्रसिद्ध हुए पर वे जन्मजात मूर्ख नहीं थे | कलिदास ठहरे निपट मूर्ख फिर उम्र के इस पड़ाव पे आके कुछ गिने चुने सालों में इतने विद्वान कैसे हो गये ! क्या विद्योत्मा ने ही किसी खूबसूरत से अंडरग्राऊंड महल में कालिदास को छिपा दिया कुछ समय के लिए ,और ओवरहालिंग करके पंडित सा दिखने लायक बनादिया जैसे आजकल कई संस्थानों में पुस्तक की सहायता से मन्त्र पढ़ के शादी ब्याह ,हवन और कथा करवाने वाले पंडित हो जाते हैं ,और हम इन मूर्ख भाड़े के पंडितों के पैर छू के आशीर्वाद भी लेते हैं , जो हमे धोखा दे रहे हैं ! पर प्रश्न ये उठता है कि केवल काम चलाऊ पंडित बने कालिदास तो इस अतुलनीय साहित्य का रचयिता कौन था ? क्या सही में ऐसे चमत्कारों का काल था वो कि निपट मूर्ख ( जैसा कि उनको दिखाया गया था पंडितों से मिलने से पहले ) कुछ ही समय में प्रकांड पंडित बन महाकाव्यों का रचयिता बन जन -जन के मन पे छा जाए |या फिर ये भी हो सकता है कि कालिदास विद्वान हों और उन्होंने विद्योत्मा के समीप जाने के लिए मूर्ख होने का स्वांग रच के उस वक्त के प्रकांड पंडितों को मूर्ख बनाया हो | या फिर , एक बार शादी होने पे और पती की मूर्खता का भांडा फूटने पे बदनामी के डर से और पंडितों को नीचा दिखाने के लिए कालीदास के कहीं चले जाने की अफवाह उड़ाकर ,उनको पंडित बनाकर पेश किया गया और उनके नाम से कई ग्रन्थों की रचना विद्योत्मा ने ही की , नेपथ्य में रह के | राजघराने में विदूषी स्त्री सब कुछ करने में सक्षम थी ! बात कुछ भी रही हो पर हमें तो मेघदूत ,रघुवंशम ,अभिज्ञानशाकुन्तलम,विक्रमोर्यवशियम्,मालविकाग्निमित्र,कुमारसंभव ,ऋतुसंहार जैसे महाकाव्य ,खंडकाव्य ,नाटक ,कविता और कहानियाँ मिलीं और साथ ही मिला पुरुरवा - उर्वशी यक्ष ,शकुन्तला ,अलकापुरी जैसे नामो का सानिध्य जो मन के किसी कोने में हमेशा के लिए अंकित हो गये | मेघ और यक्ष के वार्तालाप में जंगल ,नदी पर्वत सागर गाँव ,पनघट शहर के ऊपर उड़ते बादल को सही दिशाबोध करवाना शायद अपने तरह का सबसे पहला टूरिस्ट -गाइड या नक्शा रहा होगा जो गूगल मैप से भी अधिक पारदर्शी है| एक ओर पनघट पे आयी सुमुखियों के भी दर्शन करता चलता है तो दूसरी ओरदिशा और दूरी का सही आकलन करवाता है | पर प्रश्न यही है कि एक निपट मूर्ख इतना विद्वान कैसे बन गया या उस कालखण्ड में भी आज के नेताओं की तरह अपने को बुद्धिजीवी और विद्वत दिखाने की ललक में राजवंश भाड़े के लेखक और साहित्यकार रखा करते थे लेकिन दूसरे की रचना में वो आत्मा की शुद्धता और अहसासों की गहराई कैसे हो सकती है | कैसे बिना अपने अनुभव के कोई इतना महान साहित्य दे सकता है और फिर वही ' इंगणी-मिगणि मेरा बाखरा की तिन्नी सिंगणि ' कोई निपट मूर्ख कैसे कूछ समय में इतना विद्वान् हो सकता है ,चाहे कितना भी परिश्रम कर ले -एक निश्चित स्तर तक ही सफलता मिलेगी | ये सही में शोध का विषय है | बचपन से सोचते -सोचते मैं तो इसी निर्णय पे पहुंची हूँ कि कालीदास मूर्ख नहीं थे | --- मेरी ये रचना केवल उन साहित्य प्रेमियों को समर्पित जो कालिदास की रचनाओं की बारिश में भीग चुके हैं और समय -समय पे उनका स्नेह लेते रहते है ,क्यूंकि वही मेरे प्रश्न का मर्म समझ पायेंगे |-----मेघदूत और बाल्मीकि रामायण में बहुत समानतायें हैं प्रस्तुत है एक छोटी सी बानगी ------मेघदूत में यक्ष ने यक्षणी के नेत्रों को मछली के उछलने से हिलते, नील कमल के सदृश उपमा दी है यथा '' त्वय्यासन्ने नयनमुपरिस्पन्दि शङ्के मृगाक्ष्या ,मीनक्षोभाच्चलकुवलय श्रीतुलामेष्यतीति॥'' यही उपमान वाल्मीकि ने रामायण में विरह विधुरा सीता के लिए प्रस्तुत करवाया है यथा ___ 'प्रास्पन्दतैकं नयनं सुकेश्या मीनाहतं पद्मममिवातिताम्रम।'' ___दोनों एक ही कोटि के कवि थे | लेकिन दोनों के उत्थान की कहानी का विरोध भास शायद जन मानस को भ्रमित करने के लिए ही है क्यूंकि वाल्मीकिजी ने अपने परिचय में ,अपने को प्रचेताओं का पुत्र बताया है ,तो डाकू वाली कथा ख़ारिज हुई और कालिदास तो मूर्ख हो ही नहीं सकते ये मेरा मानना है | इति शुभम | कभी कभी जासूसी पिक्चर देख के साहित्य में घुस के जासूसी करने का मन होता है तो मैं मन को नहीं मारती हूँ क्यूँ कि अनर्गल प्रलाप करने वालों के कारण ही तो मनोविज्ञान और मनोवैज्ञानिक का जन्म हुआ || आभा ||
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