Friday, 22 August 2014

आज अजय ५८ वर्ष के हो गये ,कल ही तो कान्हा का जन्मोत्सव मनाया था और आज अजय का। क्या हुआ वो मेरे पास नहीं हैं तो ,कान्हा भी तो मेरे मन में ही हैं न। तुम हो हमारे साथ अजय ;आज भी कल भी हमेशा , मन के झरोंखों से झांकते ,हर सुख में खिलखिलाते हर दुःख में गले लगाते ,देख तो पाते हो तुम हमें ऊपर से ,बस हम ही ढूंढते रह जाते है तुम्हें , श्रधान्जली अजय ,जन्मदिन की बधाई ,तुम तो कान्हा के पास चले गये मेरी भी अर्जी आई है उसे भी देख लेना ---
( हर क्षण सपना ;सपने में बस तुम )
***************************************
सपनों के उपवन में जब भी तुमसे मिलती हूँ ,
किसलय के अधरों की आभा सी बन खिलती हूँ .
सपनो के मनहर झुरमुट ,सघन वन ये मानस मेरा,
यादों के ढहते पर्वत , नयनों से झरते झरने।
मैं जीवन से हार रही या मन निर्मल होना चाहे ,
आत्म हवन अविरल अकम्पित ,
श्रृंगार शून्य तन ,दुःख व्रती मन।
पर ,नहीं हारती ;सूने पथ की राही हूँ ,
मैं रोती नहीं !वारती -मानस मोती हूँ।
जब उपवन में दिख जाता है कोई काँटा ,
दुःख दर्द विरह की कसक और बढ़ जाती है ,
चुपके से आकर, कानों में कुछ कह जाते तुम !
अपने प्रांतर में कांटे ही क्यूँ देखूं मैं ?
हर डाली मैं मुस्कान तुम्हारी आली है
हर क्यारी में पद- चिन्ह तुम्हारे दिखते हैं
शीतल शबनम की बूंदें प्यास जगाती हैं .
सवप्न सरित की लचकीली लहरों
 से
मन प्रांगण का उपवन सिंचित हो जाता है
शांत किन्तु गंभीर वह नि:स्वन तेरा ,
भ्रमरों सा गुंजित होता है मन में मेरे ,
बन कली हवा में झूम-झपक इठलाती मैं
तितली सी खिलती औ पंछी सी गाती हूँ।
जो पौध कीचकों की रोपी थी- संग तेरे ,
बंसी की धुन सी बजती है अब उपवन में
अनियंत्रित भावों से हृदय निनादित होता है ,
सपनों के उपवन में मैं जब तुमसे मिलती हूँ।
दृग युगल सींचते हैं मेरी इस बगिया को
अवसादों के पारिजात गलीचा बुनते हैं
मधुर समीर मह- मह महका देता आंगन
वेदना विदग्ध सपनों को बहलाती हूँ।
मेरा प्रेम नहीं सम्मोहन की हाला
ये प्रेम नहीं विरह -कटु -रस का प्याला
मैं चढके नभ की ऊँची चोटी पर ,
व्यथित चित्त को बोध युक्त कर पाती हूँ
मैने आतप हो जान लिया
विरहा में जल ज्ञान लिया
तन -मन का वह पावन नाता
वह अंतिम सच पहचान लिया
मैने आहुती बन कर देखा
यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है
मिलने के पल दो चार यहाँ
तप यज्ञ कल्प तक चलता ह
सपनों के उपवन में मैं ;जब भी तुमसे मिलती हूँ
हर किसलय के अधरों की आभा सी बन कर खिलती हूँ। ------आभा --

No comments:

Post a Comment