घोर अंधकार ''में दिव्य प्रकाश के रूप में कृष्ण अवतरित होते हैं ,मानव मन में भी और सृष्टि के लिए भी।
---हे कृष्ण मेरे मन में भी अवतरित होओ ! मैं भी संधि काल में प्रवेश कर चुकी हूँ। निशीथ काल वय के दो भागों का संधि काल है ,मोह -अज्ञान के अन्धकार ने घेर लिया है ,तुम मन के कृष्ण पक्ष में दिव्य प्रकाश बन के उतरो ! अष्टमी तिथि भी पक्ष का संधि काल ,भाद्रपद --भद्र --कल्याणकारी -- वर्षा जल या नयनों का जल ,जंगल बाहर भीतर ऊगा ही देती है वर्षा ---इस अज्ञान रूपी सघन वन को काटने को मेरे मन में उतरो कान्हा --सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा से उदित होओ मेरे मन में और मुझे बांसुरी बन जाने दो -तुम्हारे प्रेम में पगी ,तुम्हारा ही गान गाती हुई योग माया की तरह तुम पे मर मिटने को आतुर --मैं भी कृष्ण हो जाऊं ---
और नन्द के आनन्द भयो --जै कन्हैया लाल की ---कृष्ण का अवतरण हुआ है --कोई साधारण घटना नही है ,काराग्रह से लेकर ,वसुदेव के ,बन्धन खुलने ,द्वारपालों के सोने ,यमुना के बढ़ने ,,शेष नाग के छतरी बनने ,और योगमाया के कंस के हाथ से फिसलने ---हर पल में ,हर घटना का एक मन्तव्य ,एक उद्देश्य ,एक रहस्य ---कृष्ण होने का रहस्य ---और गोपियाँ तो भोली हैं ,,नन्द बाबा के घर पहुंच गयीं आशीष देने ---
'' ता आशीष:प्रयुज्जानाश्चिरं पाहीति बालके।
हरिद्राचूर्णतैलाद्भदी: सिंचनत्यौ जनमुजज्गु:''------भगवन इस बालक की रक्षा करो ये चिरंजीवी हो ,,कह के हल्दी तेल युक्त जल छिड़क रही हैं ---भगवान को आशीष दे रही हैं।
---और मेरा भी आशीष लो प्रभु --आरती गायी है शंख घण्टे के साथ वो तुम्हारे सारे आरत हर ले ,तुम्हारे ऊपर से उतारी आरती ---तुम्हारी किरणों को छू हम तक पहुंची है ,हम भी धन्य हुए ---आशीष दो हम सभी कृष्ण बनें ,,मन वचन कर्म से ---
--हाथी घोड़ा पालकी ,जै कन्हैया लाल की ,हाथी दीने ,घोड़े दीने और दीनी पालकी ,नन्द के आनन्द भयो जै कन्हैया लाल की ---सबही के जीवन में कृष्ण अवतरित हों ---जन्माष्टमी की मंगलकामना ---- आभा।।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम, बालं
मुकुन्दम सिरसा नमामि...।
---हे कृष्ण मेरे मन में भी अवतरित होओ ! मैं भी संधि काल में प्रवेश कर चुकी हूँ। निशीथ काल वय के दो भागों का संधि काल है ,मोह -अज्ञान के अन्धकार ने घेर लिया है ,तुम मन के कृष्ण पक्ष में दिव्य प्रकाश बन के उतरो ! अष्टमी तिथि भी पक्ष का संधि काल ,भाद्रपद --भद्र --कल्याणकारी -- वर्षा जल या नयनों का जल ,जंगल बाहर भीतर ऊगा ही देती है वर्षा ---इस अज्ञान रूपी सघन वन को काटने को मेरे मन में उतरो कान्हा --सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा से उदित होओ मेरे मन में और मुझे बांसुरी बन जाने दो -तुम्हारे प्रेम में पगी ,तुम्हारा ही गान गाती हुई योग माया की तरह तुम पे मर मिटने को आतुर --मैं भी कृष्ण हो जाऊं ---
और नन्द के आनन्द भयो --जै कन्हैया लाल की ---कृष्ण का अवतरण हुआ है --कोई साधारण घटना नही है ,काराग्रह से लेकर ,वसुदेव के ,बन्धन खुलने ,द्वारपालों के सोने ,यमुना के बढ़ने ,,शेष नाग के छतरी बनने ,और योगमाया के कंस के हाथ से फिसलने ---हर पल में ,हर घटना का एक मन्तव्य ,एक उद्देश्य ,एक रहस्य ---कृष्ण होने का रहस्य ---और गोपियाँ तो भोली हैं ,,नन्द बाबा के घर पहुंच गयीं आशीष देने ---
'' ता आशीष:प्रयुज्जानाश्चिरं पाहीति बालके।
हरिद्राचूर्णतैलाद्भदी: सिंचनत्यौ जनमुजज्गु:''------भगवन इस बालक की रक्षा करो ये चिरंजीवी हो ,,कह के हल्दी तेल युक्त जल छिड़क रही हैं ---भगवान को आशीष दे रही हैं।
---और मेरा भी आशीष लो प्रभु --आरती गायी है शंख घण्टे के साथ वो तुम्हारे सारे आरत हर ले ,तुम्हारे ऊपर से उतारी आरती ---तुम्हारी किरणों को छू हम तक पहुंची है ,हम भी धन्य हुए ---आशीष दो हम सभी कृष्ण बनें ,,मन वचन कर्म से ---
--हाथी घोड़ा पालकी ,जै कन्हैया लाल की ,हाथी दीने ,घोड़े दीने और दीनी पालकी ,नन्द के आनन्द भयो जै कन्हैया लाल की ---सबही के जीवन में कृष्ण अवतरित हों ---जन्माष्टमी की मंगलकामना ---- आभा।।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम, बालं
मुकुन्दम सिरसा नमामि...।