---- 13 अगस्त 2014 को लिखा आलेख --आज फिर
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13 के अंक को खतरनाक क्यों कहते हैं ये समझ आया ------:-) मैं पड़ोसिन जैसी खतरनाक सुंदरियों पे लिखने का साहस जो कर बैठी ---आज भी तेरा वो ही तेरह ,मेरी बहना ,तू मेरी है मेरी ही रहना -- और आज एक बार फिर ----............................................
अब तो बार- बार बदलता पड़ोस और पड़ोसन ---मिलती हूँ नई पड़ोसनों से कब कहां यहाँ क्या और कैसी मिलेगी यही धुक -धुक --अब अजय नही हैं तो सभी की नसीहत --यही है जिन्दगी ,जीना तो है ही ,भूलना पड़ेगा ,भूल कहाँ पाते हैं ,बस समय काटना है -जैसे जुमले तो कहेंगी ही सभी ---
{(पड़ोसन)}
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***एक बेहद जरुरी ,व्यर्थ सी चर्चा | पड़ोसन; पती की भाभीजी -पत्नीकी मुंहबोली बहन ( कभी छोटी, कभी बड़ी ) | पड़ोसन ; गोलगप्पे के खट्टे -मीठे पानी के चटकारे सी कभी तीखी ,कभी मीठी महसूस होती हुई |पड़ोसन ;जो घर की बगिया से बेधडक हरी सब्जी तोड़ले और आपके पती भी इस कार्य में उसका योगदान दे के अपने के खुशनसीब समझें | पड़ोसन ; कभी जी को जलाती कभी खुश करती हुई सी बिलकुल सोलह साल की उम्र की भांति जो अपनी होते हुए भी कभी अपनी नहीं होती पर सब से प्रिय होती है | पड़ोसन ;दरवाजों और खिडकियों के पीछे से झांकता एक पवित्र और आवश्यक रिश्ता |
***पड़ोसन ;पत्नी द्वारा एप्रूवड वो सुन्दरी जिसके आने से घर की नैतिक ईंटें खिसक जायेंगी ये डर किसी पत्नी को नहीं होता |
***कान से समाचार जानने की कस्बाई संस्कृति अब समाप्त हो चुकी है अब तो टीवी है सोसियल मीडिया है पर फिर भी पड़ोसन ने इस संस्कृति को गंवई-गाँव से लेकर शहरों और महानगरों की बड़ी सोसाइटियों में भी सहेज के रखा है | पड़ोसन ;जो चौबीस घंटे में किसी भी समय आपके घर की घंटी बजा सकती है और यदि दरवाजा उढ़का हुआ है तो धडल्ले से खोल के भीतर आ सकती है |मेरी पड़ोसनें ,मेरी सखी से अधिक मेरे पती की भाभीजी रही हैं | अपने घर परिवार की अन्तरंग बातें और समस्याओं के समाधान सब अपने इस देवर से ही मिलते थे इनको ,मैं तो केवल चाय पिलाने तक ही सिमित थी |वैसे हमारे घरो की ये पुरानी परम्परा और संस्कार हैं की पड़ोसन को पूरा सम्मान देना है | पड़ोसनों की उम्र या रूप रंग नहीं देखे जाते ,इनके तो कानों और इनके शब्दों से ही इनकी पहचान होती है | जितने बड़े और स्वस्थ कान होंगे उतनी ही खबरें झरेंगी मुंह से |मेरी एक पड़ोसन तो बहुत ही निराली थीं ---कुछ ऊंचा सुनती थीं - मध्यम स्वर में बोलती थीं पर जाने कैसे जमाने भर के घरों की अन्तरंग बातें उन्हें मालूम होती थीं | मुझे बहुत -बहुत गर्व रहा कि मैं उनकी पड़ोसन रही |
***पर कुछ पड़ोसनें मेरी तरह की भी होती हैं जिन्हें किसी के घर की अन्तरंग बातों में कोई- कोई रूचि नहीं होती ,किसी के घर में घुसने की आदत नहीं होती ,जिन्हें किसी की बातें सुनके भी उनके बीच में छिपा अर्थ समझ नहीं आता और जिनके लिए इशारे तो काला अक्षर भैंस बराबर होती हैं | ऐसी पड़ोसन की कहीं कोई पूछ नहीं होती ,जो कोई चुगली ,छुईं न खाती हो ,गप्पी -झप्पी न हो ,तो उसके घर कोई भी पड़ोसन क्यूँ आये ? आएगी जी ,हर पड़ोसन आएगी ! बस हमें कुछ आकर्षण पैदा करना पड़ेगा ,सिलाई ,कढ़ाई,बिनाई ,पाक-कला ,व्रत- त्यौहार ,और गाने बजाने नाचने के गुर सीखने और सिखाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा |नये नये मौसमी और ट्रेडीशनल व्यंजनों से पड़ोसिनों का स्वागत करना पड़ेगा |कुछ धार्मिक ,दार्शनिक और साहित्यिक बातें जो आपको हटके बनायें , सबसे बड़ी ट्रिक -हम जैसे नीरस लोगों को सबकी मदद के लिये हर वक्त तैयार रहना पड़ेगा , पड़ोसन बहनें किसी भी पार्टी या उत्सव के लिए हमारी नयी वाली साडी और ज्वैलरी मांगे तो ख़ुशी -ख़ुशी देने को तैयार रहना पड़ेगा ; तभी, मेरी जैसी नीरस पड़ोसिनों को भी चटखारे वाली पड़ोसिनें मिलेंगी | अन्यथा महानगरों की चाल में तो आप निपट अकेले हो जायेंगे ,कौन पूछेगा आपको | तो ये शब्द जो पड़ोसन कहलाता है बहुत ही सुंदर और उपयोगी रिश्ता है |पर यदि कालचक्र उल्टा घूमे और आपकी ग्रह-चाल ख़राब हो इस रिश्ते के कोप से अपने को बचाना बहुत मुश्किल होता है |आपको अपनी सारी समझदारी उड़ेल देनी पड़ती है वरना तो इस रिश्ते के पास आपके सारे राज होते हैं --- मेरा तो मानना है - पड़ोसन को अपनी प्रिय सखी मानें ,उससे सारी खबरें बड़े मनोयोग से सुनें पर उन्हें पचा जाएँ , अपने कोई भी राज या कमजोरी अपनी इस सखी के हाथ न लगने दें ,वरना तो महिमा घटी समुद्र की रावण बस्यो पडोस !आपको पता है श्रवण -मनन और निविध्यासन द्वारा साक्षात्कार का सामर्थ्य प्राप्त होता है पड़ोसिनों को | ये खबरनवीस आसपास की खबरों का संकलन और संचालन करते -करतेभावातीत अवस्था में रहा करती हैं | अपने स्व को भूल के ,खबरों का अहर्निश जाप करते हुए मधुमय आनन्द को प्राप्त रहती हैं हर वक्त | ऐसी पड़ोसनों को साधने का एक ही गुर ,लो प्रोफाइल , कभी भी उन्हें ये न महसूस होने दो कि तुम उनसे बीस हो हमेशा सोलह ,बारह या दस पे ही दिखाओ अपने को, चाहे- स्त्री सुलभ डाह आपको कितना ही कष्ट क्यूँ न दे ,जरा सी चूक हुई ,सावधानी हटी और दुर्घटना घटी | असल में समय पे तो पडोसी ही काम आता है ,वास्तव में दान ,पुन्य ,यश ,नाम धन सब फीका है एक अच्छी पड़ोसन के आगे | पर पड़ोसन से अपनी रक्षा भी जरुरी है |वो बेचारी आपसे प्रेम करती है ( चाहे दिखावेका ) और खबरची का रोल बड़ी पवित्रता से निभाती है |वह माया का ही एक रूप है ,निर्गुण फांस लिए कर डोले ,बोले मधुरी बानी | कितने मकान बदलने ,कई सोसाइटियों में रिहायश पे कई विभिन्नताओं के मध्य एक ही समानता रही- मिलती जुलती पड़ोसनें |कमोबेश एक जैसे स्वरूप वाली ,समता और न्याय का निरूपण करती सी | जीवन क्षण भंगुर है पर उसमें एक अदद पड़ोसन की सख्त जरूरत है ,तो आज ही खटखटाइये अपने पड़ोस का दरवाजा और जान - पहचान बढाइये अपनी पड़ोसन से |वरना तो आज रिश्ते सड़ी सुपारी की मानिंद हो गये हैं जरा सा सरौता लगा नहीं और कट के गिर पड़े | ***आभा ***
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