"विरह का जलजात जीवन "
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चिर वेदना की गर्म स्याही
वाष्प बन ऊपर उठी जब
मन के अंगने में -घिराये
कज्जल सघन जलधर दुःखों के
सह न पाते भार जब दृग
अश्रु बन मधुमरंद के कन
बरसें बनायें मन को सरोवर -
नीलम से झलमल जल में जिसके
विरह के जलजात खिलते
विगलित दुःखों का सार लेके
गुंजरित होती हवाएं
मन भ्रमर बन नृत्य करता
नियति का वंदन नमन कर
जीवन ये जीने को मचलता -
है यही सबकी कहानी
कुछ की नई कुछ की पुरानी।।आभा।।
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चिर वेदना की गर्म स्याही
वाष्प बन ऊपर उठी जब
मन के अंगने में -घिराये
कज्जल सघन जलधर दुःखों के
सह न पाते भार जब दृग
अश्रु बन मधुमरंद के कन
बरसें बनायें मन को सरोवर -
नीलम से झलमल जल में जिसके
विरह के जलजात खिलते
विगलित दुःखों का सार लेके
गुंजरित होती हवाएं
मन भ्रमर बन नृत्य करता
नियति का वंदन नमन कर
जीवन ये जीने को मचलता -
है यही सबकी कहानी
कुछ की नई कुछ की पुरानी।।आभा।।
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