Friday, 10 May 2013

                                                       [    अब सुबह नहीं होगी    ]
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           वो एक अमावस की सुबह ,,
  अंधियारा  ,कर गई  जीवन  उषा को ,,
  अपना  अंधियारा    करने को कम  ,
  मेरे चाँद की चाहत तुझ को भी थी ओ री अमावस ,,
   तू खुश होले  पर  ,वो तो अब भी मेरे पास है
    मुझ से दूर नहीं हो सकता , मेरे भीतर समागया .
   हरदम महका करता है ,मेरी सासों में रहता है ,
    प्रिय का अहसास ,नर्मनाजुक ,प्रेम अनुराग ,
    ना पाने की इच्छा ,ना कुछ खोने का डर ,
     स्थूल और आत्मा के मिलन में ,संचारित ,,
     एक सूक्ष्म स्फुरण ,समाहित होकर ,
      मिट जाने की अभिलाषा ,,श्रृष्टि में न मैं न तू ,
     अंतहीन समय , अंतहीन यात्रा ,
      सागर की लहर लहर हिलोरें लेता ,मिटता बनता।
     स्नेहानुराग .......................................
     न मिलने की चाह ,न  बिछोह  का गम .
     एक लहर आवाज दे दूसरी को ,
     खटखटाये ,तो सुनाई न दे ,
     पहली तो मिट चली ,दूसरी मिटने को तैयार ,
    अंतहीन प्रतीक्षा ,मिलना बिछड़ना ,
     सागर में सामना ,स्नेह का दरिया बन जाना .
     प्रेम उलीचना ,महकती हुई यादों से ,
     अमावस सीजिंदगानी को स्वर्णिम यादों के झूले झुलाना ,,
     तेरे जाने के बाद ,पूर्णिमा की चाहत नहीं है ,
  अमावस में ही ढूँढती हूँ तुझको ,,बिना मिलन की चाहत के ................आभा ........

   

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