Monday, 22 July 2013

{   गुरु पूर्णिमा -----गुरु शिष्य परम्परा को विस्तार देने का पर्व  }
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  कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता:। 
  यच्छ्रेय:स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेअहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम ।।
  अर्जुन की श्री कृष्ण से विनय ----शाधि मां त्वां प्रपन्नम .......गुरु तो शिक्षा देंगे ही ....मार्ग भी दिखायेंगे ...पूरा प्रकाश देंगे -----पर  मार्ग पर चलना तो शिष्य को ही पड़ेगा --------अपना कल्याण तो शिष्य को अपने आप ही करना पड़ेगा ...लेकिन शिष्य अपने कल्याण की जिम्मेवारी अपने ऊपर  क्यूँ उठाये ....क्यूँ न गुरु पर ही छोड़ दे ...जैसे जिस काल में बच्चा माँ के दूध पे निर्भर होता है ,और बीमार पड़ जाता है तो औषध माँ को ही खानी पड़ती है .....यही अर्जुन की अभिलाषा है ...........वो पूरी तरह से कृष्ण पे समर्पित  शरणागत शिष्य बनना चाहता है ............बस यही थी होश आने पे मेरी प्रथम दीक्षा जो मेरी माँ  ने मुझे दी.......................................
               मेरे लिए मेरे प्रथम गुरु पूजनीय  माता -पिता ही हैं । शायद सबके लिए ही होते हैं । मेरा नमन श्री चरणों में। .... जीवन में'' ॐ नम:सिद्धम'' के बाद जब बाहरी परिवेश में कदम रखा तब से आज तक कई गुरु मिले ..कुछ सच्चे समर्पित जिन्होंने जीवन को संवारा और मुझे, मैं ,बनाया ,,आज उन सभी गुरुओं की चरण वंदना करते हुए मैं उन्हें नमन करती हूँ ,,और कुछ गुरु घंटाल जिनसे जीवन रूपी समुद्र में तैरने की कई कलाओं के विषय में मालूम हुआ ..उनकी भी वन्दना क्यूँकि  सिक्के के दूसरे पहलू से परिचय करवाने में उनका बहुत हाथ रहा ......................मेरे श्रद्धेय श्वशुर मेरे जीवन में माँ-पिताजी के बाद अहम गुरु रहे  .....उनके व्यवहारिक ज्ञान, हर कार्य को लिखना ,बजट से चलना .सिस्टेमेटिक रहना इन बातों  से जीवन में बहुत परिवर्तन आया। मेरा नमन श्री चरणों में। .......और हमारे आध्यात्मिक गुरुदेव ..जो मिल तो बहुत बचपन में ही गए थे पर दीक्षा कुछ वर्षों पहले ही ली ......जिन्होंने गुरु मन्त्र दिया ,,वो भी पूरे परिवार को नैया पे  बिठा के पतवार अपने हाथों सेखेतेहुए ................. 
     .डारि डोर हरी  हाथ में ,भावी भूत बिसारी ..
      अब कृपालु गुरु [प्रभु ] गोद में सोवत पाँव पसारि ....जैसे छोटा बच्चा माँ पे निर्भर होता है वैसे ही अपने को प्रभु पे छोड़ दो और सद्कर्म करो .................वो तुम्हें स्वयम देखेंगे ..........
  पर गुरु ,.परमात्मा, माता -पिता ,,सब हमारे साथ हैं ,पर अपने हिस्से का कर्म तो हमको करना ही होगा ........आज तक किसी को भी किसी दूसरे की वजह से सुख या आनन्द की प्राप्ति नहीं हुई है। सदियों का इतिहास इस बात का सबूत हैकि तुम्हारे अतिरिक्त कोई भी दूसरा तुम्हें आनन्द नहीं दे सकेगा । .........
        देश दिशांतर में फिरूं ,मानुस बड़ा सुकाल ।
        जा देखे सुख ऊपजे ,बाका पड़ा अकाल।।
आज समाज में गुरू को लेकर जितनी भ्रांतियाँ हैं उतनी कभी नहीं थीं ....गुरू के मायने ही बदल गए हैं लगता है ....आश्रमों और मठों में लोग गुरु ढूंढ़ रहे हैं ऋषिकेश ,हरिद्वार में इतनी भीड़ ,इतना चढ़ावा गुरू को रिझाने की कोशिश  बस आशीर्वाद मिल जाए।पहले से ही खाए- पिये -अघाये गुरुओं के पैरों का चंदन पुष्प प्रक्षालन कर चरणामृत पान ......मानती हूँ गुरु पूजा हमारी संस्कृति है ...सनातन धर्म की पहचान है .......पर हर जगह अंध -दौड़  ,स्वार्थ,  भौतिकता ,......इधर गुरू पूजा समाप्त हुई और आश्रम से निकलते ही BOOZING & chicken  ..... हरिद्वार ऋषिकेश में गंदगी देखते ही बनती है ......अध्यात्मिक गुरु बनाइये ,अर्घ्य और द्रव्य भी समर्पित कीजिये पर गुरु की सीख को मान के आत्म चिन्तन भी करिए ...आसपास स्वच्छता रखिये और गुरु पूर्णिमा को आनन्ददायक और सार्थक बनाइये ......पर करें भी क्या आजकल गुरु होना स्टेट्स  सिम्बल हो गया है ...और गुरुघंटालों का बाजार लगा हुआ है ..........जानिता बुझा नहीं ,बूझा किया नहीं गौन। .............
............................................................अंधे को अंधा मिला रा ह बतावे कौन।। ..............
गुरू की ,परमात्म की ,आनन्द की इतनी चर्चाएँ हैं ,पर लगता है की सब बातें ही बातें हैं .....परमात्मा हमें कहीं दिखाई नहीं देता। ......हम भाग रहे हैं ,खोज रहे हैं पर आँख में तिनका पड़ने से जैसे सामने का पहाड़ नहीं दिखाई देता ऐसे ही हमारी आत्मा पे पड़े छोटे -छोटे तिनके हमें अपने अंदर के परमात्मा को  देखने नहीं देते ..सदगुरु हमारे भीतर ही हैं। निश्चित रूप से हमें अपने अंत:चक्षुओं पे पड़े इन तिनकों को हटाना होगा ......गुरु की वाणी को जीवन में उतारना होगा .....अपने अंदर पड़े निष्क्रिय केंद्र को जगाना होगा ...जिसे कभी राम ने, कभी कृष्ण ने , कभी बुद्ध और महावीर ने जगाया ...तब ही गुरु पूर्णिमा सार्थक होगी .....चटखेंगी कलियाँ ,खिलेंगे पुष्प और बिखरेगी सुगंध .............और अंत में तुलसी का महा मन्त्र ...........................
..............श्रीगुर पद  नख मनिगन ज्योति ,सुमिरत दिव्य दृष्टि हियँ होती।
..............दलन मोह तम  सो सप्रकासू ,बड़े भाग उर आवही जासू।। ................गुरु पूर्णिमा आपसभी मित्रों के लिए और देश के लिए सुख समृद्धि और संतोष दायक हो .............आभा ..............

      


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