''तव च का किल न स्तुतिरम्बिके !''
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यस्या स्वरूपं ब्रह्मादयो न जानन्ति तस्मादुच्यते अग्येंया |----हाँ स्त्री अग्येंय ही तो है | दुर्गम भी और सरल भी ,कठोर भी तो ममतामयी भी ,शीतलता और अग्नि एक साथ | स्त्री के मन की थाह पाना दुस्तर ही नहीं असम्भव भी है |
क्यूँ होता है एकस्नेहशील-प्यार की मूरत को समझना इतना कठिन इसका उत्तरदुर्गा शप्तशती में मिलजाता है |जब महिषासुर नामक दैत्य ने देवताओं {माँ के दर्शन से लौटते हुए तन -निढाल औ मन प्रफ़ुल्लित"} को पराजित कर उनकी नाक में दम कर दिया ******************************************* तो सारे देवता ब्रह्माजी की अगुवाई में भगवान शंकर और विष्णुजी की शरण में गये | शायद देवाधिदेव और परमपिता किसी अन्य मन्त्रणा में व्यस्त थे सो उन्होंने महिषासुर वध के लिए अपना तेज देवताओं को दे दिया | ये तेज एक स्त्री रूप में था , ये स्त्री उनकी सखी ही रही होगी या कोई कलीग होगी जो उनके समान ही शक्ति संपन्न और प्रखर बुद्धि की स्वामिनी होगी | अब ऊपर से आये रिसोर्स की सबने जम के आवभगत की और अपनी अपनी विधा में उसे पारंगत किया--{भाई देवाधिदेव महादेव शिव और परमपिता परमात्मा विष्णु भगवान , की निगाह में तो सबको ही आना था न } | जैसे , ब्रह्मा ,शंकर ,विष्णु इंद्र चन्द्रमा वरुण वासु कुबेर अग्नि संध्या और वायु ने अपना-- तेज -सुन्दरता चपलता -चातुर्य -द्रुतगति -संकल्प शक्ति -नीरक्षीरविवेकी बुद्धि -अनन्य बल और शक्ति उसे प्रदान की | यही नहीं उसे एक नयनाभिराम सुंदर और अतुलनीय रूप की स्वामिनी भी बनाया जिसे देखते ही आँखें उस स्वरूप को आत्मसाध कर लें | आजकल भी तो पार्लर में जा के कोई भी अपना काया कल्प करवा सकता है फिर वो तो सुर थे उनके लिए अलौकिक रूप को गढ़ना क्या मुश्किल था | बाह्याभ्यन्तर इस बालिका को तैयार कर फिर उसे शस्त्रों से लैस किया गया| शंकर ने शूल ,विष्णु ने चक्र ,वरुण ने शंख ,अग्नि ने शक्ति ,वायु ने बाणों सी गति ,इंद्र ने वज्र और घंटा ,यमराज ने दण्ड , काल ने चमकती हुई ढाल और तलवार ,वरुण ने, पाश , क्षीरसागर ने उज्ज्वल हार , उज्ज्वल वस्त्र साथ ही अपने गर्भ में स्थित रत्नों से बने कुंडल ,कड़े ,हार .नूपुर .केयूर हंसुली अंगूठी आदि कई दिव्य आभूषण ,विश्वकर्मा ने फरसा और भी कई देवताओं ने अनन्य वस्तुयें भेंट कीं| हिमालय ने सवारी के लिए सिंह ,कुबेर ने मधुपात्र दिया साथ ही नागों के राजा ने बहुमूल्य मणियों का हार दिया | और भी जितने छोटे -बड़े देवता थे सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए उस स्त्री को अपने गुणों और अस्त्र-शस्त्रों का उपहार दिया | अब बनी वो सर्व गुण संम्पन्न देवी ,जो अजेय थी ,जिसमे कमोबेश सभी बड़े -छोटे देवताओं के गुण और शक्तियाँ निहित थीं | जहाँ एक ही व्यक्तित्व में इतने सारे रूप समाहित हों उसे समझना तो फिर देवताओं के लिए भी संभव नहीं है ,मनुष्य की तो बिसात ही क्या | और इतने सारे रूपों को समाहित करने पे भी एक उसका अपना व्यक्तित्व है जिसके कारण उसे महिषासुर वध का उत्तरदायित्व मिला |उस अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी , अतुलित बलशाली और विदुषी स्त्री की ही संतानें हैं सबस्त्रियाँ ,तो उन्हें समझ पाना क्या इतना आसान होगा | वो कब अबला है और कब सबला हो जायेगी ,कब प्रेम की शीतल धारा है तो कब अग्नि बाण बन जायेगी ? जो इतनी शक्तिशाली और अगम्य हो गयी कि शिव को भी उसको शांत करने को उसके पैरों पर आना पडा |
शायद देवताओं ने कभी भी ये नहीं सोचा होगा कि जिसे हम सब अपनी कायरता और कर्महीनता को छुपाने के लिए दैत्यों से लड़ने के लिए भेज रहे हैं कालान्तर में उसे ही समझना हमारे लिए टेढ़ी खीर होगा अन्यथा वो स्वयं ही संयुक्त रूप से दैत्यों से लड़ लेते |
दुर्गा- शप्तशती में देवताओं की ये आदत देखते ही बनती है कि वो आमोद प्रमोद में मस्त हैं और जब भी कोई आपदा आती है तो देवी का स्तवन करने लगते हैं और वो दया ,करुणा और ममता की मूरत अपनी परवाह न करते हुए शरणागतों की रक्षा करने को तत्पर रहती है --यही है स्त्री का असली स्वरूप -प्यार के दो बोल से कोई भी उसे छल सकता है | और तब से वो छली ही जा रही है अष्ट भुजाओं का काम करती हुई घर परिवार,समाज को संभाल रही हैऔर अपने आप में संतुष्ट रहती है जब तक उसे छेड़ा न जाए | ये सदैव याद रखाजाना चाहिए कि---
सौम्य वेष में आये नारी तो उसको कल्याणी समझो ,
रौद्र -रूप में आये नारी तो उसको काली समझो ,
नारी तेरे रूप अनेक ,समझ न पाए ऋषि मुनि जिसको ,
मत उसको अबला समझो ||
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यस्या स्वरूपं ब्रह्मादयो न जानन्ति तस्मादुच्यते अग्येंया |----हाँ स्त्री अग्येंय ही तो है | दुर्गम भी और सरल भी ,कठोर भी तो ममतामयी भी ,शीतलता और अग्नि एक साथ | स्त्री के मन की थाह पाना दुस्तर ही नहीं असम्भव भी है |
क्यूँ होता है एकस्नेहशील-प्यार की मूरत को समझना इतना कठिन इसका उत्तरदुर्गा शप्तशती में मिलजाता है |जब महिषासुर नामक दैत्य ने देवताओं {माँ के दर्शन से लौटते हुए तन -निढाल औ मन प्रफ़ुल्लित"} को पराजित कर उनकी नाक में दम कर दिया ******************************************* तो सारे देवता ब्रह्माजी की अगुवाई में भगवान शंकर और विष्णुजी की शरण में गये | शायद देवाधिदेव और परमपिता किसी अन्य मन्त्रणा में व्यस्त थे सो उन्होंने महिषासुर वध के लिए अपना तेज देवताओं को दे दिया | ये तेज एक स्त्री रूप में था , ये स्त्री उनकी सखी ही रही होगी या कोई कलीग होगी जो उनके समान ही शक्ति संपन्न और प्रखर बुद्धि की स्वामिनी होगी | अब ऊपर से आये रिसोर्स की सबने जम के आवभगत की और अपनी अपनी विधा में उसे पारंगत किया--{भाई देवाधिदेव महादेव शिव और परमपिता परमात्मा विष्णु भगवान , की निगाह में तो सबको ही आना था न } | जैसे , ब्रह्मा ,शंकर ,विष्णु इंद्र चन्द्रमा वरुण वासु कुबेर अग्नि संध्या और वायु ने अपना-- तेज -सुन्दरता चपलता -चातुर्य -द्रुतगति -संकल्प शक्ति -नीरक्षीरविवेकी बुद्धि -अनन्य बल और शक्ति उसे प्रदान की | यही नहीं उसे एक नयनाभिराम सुंदर और अतुलनीय रूप की स्वामिनी भी बनाया जिसे देखते ही आँखें उस स्वरूप को आत्मसाध कर लें | आजकल भी तो पार्लर में जा के कोई भी अपना काया कल्प करवा सकता है फिर वो तो सुर थे उनके लिए अलौकिक रूप को गढ़ना क्या मुश्किल था | बाह्याभ्यन्तर इस बालिका को तैयार कर फिर उसे शस्त्रों से लैस किया गया| शंकर ने शूल ,विष्णु ने चक्र ,वरुण ने शंख ,अग्नि ने शक्ति ,वायु ने बाणों सी गति ,इंद्र ने वज्र और घंटा ,यमराज ने दण्ड , काल ने चमकती हुई ढाल और तलवार ,वरुण ने, पाश , क्षीरसागर ने उज्ज्वल हार , उज्ज्वल वस्त्र साथ ही अपने गर्भ में स्थित रत्नों से बने कुंडल ,कड़े ,हार .नूपुर .केयूर हंसुली अंगूठी आदि कई दिव्य आभूषण ,विश्वकर्मा ने फरसा और भी कई देवताओं ने अनन्य वस्तुयें भेंट कीं| हिमालय ने सवारी के लिए सिंह ,कुबेर ने मधुपात्र दिया साथ ही नागों के राजा ने बहुमूल्य मणियों का हार दिया | और भी जितने छोटे -बड़े देवता थे सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए उस स्त्री को अपने गुणों और अस्त्र-शस्त्रों का उपहार दिया | अब बनी वो सर्व गुण संम्पन्न देवी ,जो अजेय थी ,जिसमे कमोबेश सभी बड़े -छोटे देवताओं के गुण और शक्तियाँ निहित थीं | जहाँ एक ही व्यक्तित्व में इतने सारे रूप समाहित हों उसे समझना तो फिर देवताओं के लिए भी संभव नहीं है ,मनुष्य की तो बिसात ही क्या | और इतने सारे रूपों को समाहित करने पे भी एक उसका अपना व्यक्तित्व है जिसके कारण उसे महिषासुर वध का उत्तरदायित्व मिला |उस अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी , अतुलित बलशाली और विदुषी स्त्री की ही संतानें हैं सबस्त्रियाँ ,तो उन्हें समझ पाना क्या इतना आसान होगा | वो कब अबला है और कब सबला हो जायेगी ,कब प्रेम की शीतल धारा है तो कब अग्नि बाण बन जायेगी ? जो इतनी शक्तिशाली और अगम्य हो गयी कि शिव को भी उसको शांत करने को उसके पैरों पर आना पडा |
शायद देवताओं ने कभी भी ये नहीं सोचा होगा कि जिसे हम सब अपनी कायरता और कर्महीनता को छुपाने के लिए दैत्यों से लड़ने के लिए भेज रहे हैं कालान्तर में उसे ही समझना हमारे लिए टेढ़ी खीर होगा अन्यथा वो स्वयं ही संयुक्त रूप से दैत्यों से लड़ लेते |
दुर्गा- शप्तशती में देवताओं की ये आदत देखते ही बनती है कि वो आमोद प्रमोद में मस्त हैं और जब भी कोई आपदा आती है तो देवी का स्तवन करने लगते हैं और वो दया ,करुणा और ममता की मूरत अपनी परवाह न करते हुए शरणागतों की रक्षा करने को तत्पर रहती है --यही है स्त्री का असली स्वरूप -प्यार के दो बोल से कोई भी उसे छल सकता है | और तब से वो छली ही जा रही है अष्ट भुजाओं का काम करती हुई घर परिवार,समाज को संभाल रही हैऔर अपने आप में संतुष्ट रहती है जब तक उसे छेड़ा न जाए | ये सदैव याद रखाजाना चाहिए कि---
सौम्य वेष में आये नारी तो उसको कल्याणी समझो ,
रौद्र -रूप में आये नारी तो उसको काली समझो ,
नारी तेरे रूप अनेक ,समझ न पाए ऋषि मुनि जिसको ,
मत उसको अबला समझो ||
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