स्त्री को समाज और रिश्तों को जीते हुए कई बार कड़वी सच्चाइयों से रूबरू होना पड़ता है।,कडवे घूंट पी कर मन में उठते विद्रोह पर ठंडा पानी डाल कर बर्फ बनाने का का नाम ही स्त्री है। ...........
***************************
मानव मन के झंझावत को ,
मन में उमड़े तूफानों को ,
बांध तोड़ कर बहना चाहे ,
सरिता की उद्दात लहर को ,
किसने समझा ,किसने जाना।
पर्वत शिखर की बर्फ पिघल
जलधारा बन जीवन देने आयेगी
मेरे मन की बर्फ पिघल क्या?,
मुझको जीवन दे पाएगी !
शिखरों पर पड़ी बर्फ -------
इक सर्द नदी बन जायेगी ,
पर मेरे मन की बर्फ पिघल कर ,
एक लावे सी बह जायेगी ,------
***************************
मानव मन के झंझावत को ,
मन में उमड़े तूफानों को ,
बांध तोड़ कर बहना चाहे ,
सरिता की उद्दात लहर को ,
किसने समझा ,किसने जाना।
पर्वत शिखर की बर्फ पिघल
जलधारा बन जीवन देने आयेगी
मेरे मन की बर्फ पिघल क्या?,
मुझको जीवन दे पाएगी !
शिखरों पर पड़ी बर्फ -------
इक सर्द नदी बन जायेगी ,
पर मेरे मन की बर्फ पिघल कर ,
एक लावे सी बह जायेगी ,------
---इस बर्फ की अग्नि में -
कितने जीवन जल जायेंगे ,
एक जरा सी हलचल से,
भूकम्प हजारों आयेंगे ..............
मन में उमड़े झंझावत को ,
अपने मन के तूफानों को ,
सर्द बर्फ से ढक रखूं
ना छेड़ना ,ना कुरेदना
एक जरा सी हलचल से,
भूकम्प हजारों आयेंगे ..............
मन में उमड़े झंझावत को ,
अपने मन के तूफानों को ,
सर्द बर्फ से ढक रखूं
ना छेड़ना ,ना कुरेदना
जीवन नामहै संघर्षों का .
पर्व मान इसको जी लूँ
बर्फ बहे ना लावा बन कर ,
हिम-आलय बन अडिग रहूं ...............आभा ..........
.
No comments:
Post a Comment