करवाचौथ की अनेकों शुभकामनायें सभी को -=सोलहश्रृंगार से सजी हर उम्र की युवतियां देश के लिए कल्याणकारी हों ---
भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुपरकेतैर्द्द्यु भिरग्निर्वितिष्ठन्नुश द्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्।।
-----वेद सूक्तों के शब्दार्थ तो संस्कृत के पंडित ही कर सकते हैं और उनके भी भिन्न भिन्न मत होते हैं पर यजुर्वेद के उपर्युक्त सूक्त का भावार्थ कहें या विश्लेषण कहें मैंने यूँ किया ---स्त्रियों के सशक्त संस्कारों और अनुष्ठानों से भी परिवार और परिवारजन प्रतिष्ठित होते हैं --वैसे ही जैसे भगवान भक्ति के द्वारा भजन किये जाने पे सभी के हृदय में प्रतिष्ठित होते हैं -सूर्य रात्रि के पीछे चल रहा है और ''रात्रि'' ने उसे चंद्र और नक्षत्रों के कमनीय प्रकाश में स्थित कर सूर्य को ''श्येनासश्चिदर्थिन:'' सुखपूर्वक अपने घरों में विश्राम करने वाला बना दिया है।
महर्षि पराशर के ''पारस्करगृह्यसूत्र ''में पारिवारिक और सामाजिक नियमों की परम्परा को लोकजीवन से ही लिया गया है -ग्रामवचनं --जैसा समाज कहता है और वो समाज क्या है -स्वकुलवृद्धानां स्त्रीणां वाक्यं कुर्युः ---अपनेकुल की वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्य करें ---
जन्म -मरण- विवाह -उपनयन -सोलह संस्कार और व्रत त्यौहार उत्सव ये सभी अपने कुल की वृद्ध स्त्रियों से पूछ के उनके अनुसार ही करने चाहियें -ये आदेश दे दिया गया है -
और यही कुल की वृद्ध स्त्रियां कहती हैं करकचतुर्दशी ( करवाचौथ ) को खूब सजधज से मनाओ। वर्ष में एक बार दुल्हिन की तरह सजो। अपने प्रेम को प्रगाढ़ करने के लिये विवाह के दिन वाली अनुभूति जागृत करो ,पति भी इस उत्सव में बराबर की भागीदारी करे ताकि ये व्रत केवल एक साधारण उपवास न बन के रह जाए। रही बात निर्जल रहने की तो पाणिग्रहण की शुभबेला में आपके मातापिता ने निर्जल व्रत किया था। विवाह की साड़ी भागदौड़ में आपके जीवन की मंगलकामना हेतु उन्होंने कार्याधिकता में भी निर्जल व्रत किया तो अब तुम सब भी अपने जीवन के कल्याण हेतु हर वर्ष ये तप करो ,निर्जल रह कर --बस इसे अंधविश्वास न बनाओ -आतुरो नियमो नास्ति -रोगी ,कमजोर वृद्ध जनों को अपने स्वास्थ्य के अनुकूल कार्य करना है उनके लिए कोई नियमों का बंधन नहीं है।
भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुपरकेतैर्द्द्यु भिरग्निर्वितिष्ठन्नुश द्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्।।
-----वेद सूक्तों के शब्दार्थ तो संस्कृत के पंडित ही कर सकते हैं और उनके भी भिन्न भिन्न मत होते हैं पर यजुर्वेद के उपर्युक्त सूक्त का भावार्थ कहें या विश्लेषण कहें मैंने यूँ किया ---स्त्रियों के सशक्त संस्कारों और अनुष्ठानों से भी परिवार और परिवारजन प्रतिष्ठित होते हैं --वैसे ही जैसे भगवान भक्ति के द्वारा भजन किये जाने पे सभी के हृदय में प्रतिष्ठित होते हैं -सूर्य रात्रि के पीछे चल रहा है और ''रात्रि'' ने उसे चंद्र और नक्षत्रों के कमनीय प्रकाश में स्थित कर सूर्य को ''श्येनासश्चिदर्थिन:'' सुखपूर्वक अपने घरों में विश्राम करने वाला बना दिया है।
महर्षि पराशर के ''पारस्करगृह्यसूत्र ''में पारिवारिक और सामाजिक नियमों की परम्परा को लोकजीवन से ही लिया गया है -ग्रामवचनं --जैसा समाज कहता है और वो समाज क्या है -स्वकुलवृद्धानां स्त्रीणां वाक्यं कुर्युः ---अपनेकुल की वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्य करें ---
जन्म -मरण- विवाह -उपनयन -सोलह संस्कार और व्रत त्यौहार उत्सव ये सभी अपने कुल की वृद्ध स्त्रियों से पूछ के उनके अनुसार ही करने चाहियें -ये आदेश दे दिया गया है -
और यही कुल की वृद्ध स्त्रियां कहती हैं करकचतुर्दशी ( करवाचौथ ) को खूब सजधज से मनाओ। वर्ष में एक बार दुल्हिन की तरह सजो। अपने प्रेम को प्रगाढ़ करने के लिये विवाह के दिन वाली अनुभूति जागृत करो ,पति भी इस उत्सव में बराबर की भागीदारी करे ताकि ये व्रत केवल एक साधारण उपवास न बन के रह जाए। रही बात निर्जल रहने की तो पाणिग्रहण की शुभबेला में आपके मातापिता ने निर्जल व्रत किया था। विवाह की साड़ी भागदौड़ में आपके जीवन की मंगलकामना हेतु उन्होंने कार्याधिकता में भी निर्जल व्रत किया तो अब तुम सब भी अपने जीवन के कल्याण हेतु हर वर्ष ये तप करो ,निर्जल रह कर --बस इसे अंधविश्वास न बनाओ -आतुरो नियमो नास्ति -रोगी ,कमजोर वृद्ध जनों को अपने स्वास्थ्य के अनुकूल कार्य करना है उनके लिए कोई नियमों का बंधन नहीं है।
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