{ आज 11 महीने हो गए हैं अजय। लगता है अभी कहीं से सामने आ जाओग। }
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कल तक साथ चली मैं जिसके ,आज वही है इक सपना .
ये सपना ही संबल मेरा है , मेरे जीवन की अभिलाषा है .
सपनों का मोल भाव न होता ,सुख -दुःख में न तोले जाते हैं .
धरती में ज्यों पावन गंगा ,नयन- व्योम में ये मधु -रस हैं .
गंगा की लचकीली लहरों में ,तिरते सपनों को देख रही मैं ,
कुछ धवल कुछ नारंगी सा-रोमांचित करता प्रकाश वह ,
स्वर्णिम रेशम सी किरणों संग नीलम से नील व्योम सेआकर
गंगा की लहरों पर पड़ता ,झिलमिल स्वर्ण रजत सा मोहक --
लहरों को ज्यों पहनाया हो ,इंगूरी स्वर्णिम आभूषण .
स्वर्णिम लहंगा पहने लहरें -यूं इठलाती गोता खाती ,
ज्यूँ नखरीली दुल्हन कोई -पी के आने की आहट पाती .
क्या ही स्वर्णिम दृश्य बना है ,झिलमिल लहरें जगमग-जगमग .
कितने रूप -कितने रंगों में -लहरों पर जब पडती किरणे ,
रोम-रोम पुलकित होता है -सपनीली दुनियां ही है यह ,
आज साँझ की इस बेला में -भुवन-भास्कर क्रोधित से हैं ,
कुमकुम रंगीं स्वर्णिम किरणे जन-जन को अकुलाती हैं .
पर जब गंगा की लहरों पर आतप ,स्वर्णिम रेशम निर्झर सा झरता ,
ऊष्मा उस भुवन -भास्कर की पल में शीतल हो जाती है .
गंगा की लहर- लहरपर छवि मैंने अपनी देखी है ,
लहर -लहर में छवि पडती है ,हर-एक लहर में बिखर जाती है .
पर गहरे पानी में देखी ,स्थिर छवि वहीँ खड़ी है !,
गति विराम हों एक जगह गंगा की धारा में मैंने देखा ,
जीवन के दो सपने ऊष्मा और शीतलता संग संग ,
गति विराम हों एक ही तल परगंगा में ही सच होते हैं
समाधिस्थ सी यह गंगा सदियों से यूँ ही बहती है ,
तुम ही मेरी सिद्धि बनों माँ ,तुम जैसी ही मैं बन जाऊं ,
गति-विराम परस्पर जी लूँ प्रेम पगा हो मेरा जीवन ,
साधक बन कर रहूँ जगत में ,मुझे नहीं विश्राम चाहिए ,
गतिशीलता निरन्तरता ,इस जीवन का प्रवाह चाहिए .
गति ही मेरा मानदंड हो ,पथ ही लक्ष्य रहे मेरा
मेरे नयनों के सपनों को तेरा ही वरदान मिले .
सूरज के आतप की शीतलता का दान मिले ,
मेरे जीवन की आभा को ,तेरा अमृत -गान मिले
सुर संगीत मिले लहरों सा ,गति हो लहरों सी चंचल .
मन की गहराई में प्रियतम की स्थिर छवि का अभिमान मिले .
स्वप्न अजय हो मेरा लहर -लहर में छवि वही
ज्वालाओं के पार खड़ा जो तू उस पथ की खेवनहार बने ,
एक यही जीवन अभिलाषा पथ ही मेरा लक्ष्य बने .........................
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कितना आसाँ है कहना भूल जाओ ,
कितना मुश्किल है पर भूल जाना .................................................
........................................................................श्रधान्जली अजय ............आभा
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कल तक साथ चली मैं जिसके ,आज वही है इक सपना .
ये सपना ही संबल मेरा है , मेरे जीवन की अभिलाषा है .
सपनों का मोल भाव न होता ,सुख -दुःख में न तोले जाते हैं .
धरती में ज्यों पावन गंगा ,नयन- व्योम में ये मधु -रस हैं .
गंगा की लचकीली लहरों में ,तिरते सपनों को देख रही मैं ,
कुछ धवल कुछ नारंगी सा-रोमांचित करता प्रकाश वह ,
स्वर्णिम रेशम सी किरणों संग नीलम से नील व्योम सेआकर
गंगा की लहरों पर पड़ता ,झिलमिल स्वर्ण रजत सा मोहक --
लहरों को ज्यों पहनाया हो ,इंगूरी स्वर्णिम आभूषण .
स्वर्णिम लहंगा पहने लहरें -यूं इठलाती गोता खाती ,
ज्यूँ नखरीली दुल्हन कोई -पी के आने की आहट पाती .
क्या ही स्वर्णिम दृश्य बना है ,झिलमिल लहरें जगमग-जगमग .
कितने रूप -कितने रंगों में -लहरों पर जब पडती किरणे ,
रोम-रोम पुलकित होता है -सपनीली दुनियां ही है यह ,
आज साँझ की इस बेला में -भुवन-भास्कर क्रोधित से हैं ,
कुमकुम रंगीं स्वर्णिम किरणे जन-जन को अकुलाती हैं .
पर जब गंगा की लहरों पर आतप ,स्वर्णिम रेशम निर्झर सा झरता ,
ऊष्मा उस भुवन -भास्कर की पल में शीतल हो जाती है .
गंगा की लहर- लहरपर छवि मैंने अपनी देखी है ,
लहर -लहर में छवि पडती है ,हर-एक लहर में बिखर जाती है .
पर गहरे पानी में देखी ,स्थिर छवि वहीँ खड़ी है !,
गति विराम हों एक जगह गंगा की धारा में मैंने देखा ,
जीवन के दो सपने ऊष्मा और शीतलता संग संग ,
गति विराम हों एक ही तल परगंगा में ही सच होते हैं
समाधिस्थ सी यह गंगा सदियों से यूँ ही बहती है ,
तुम ही मेरी सिद्धि बनों माँ ,तुम जैसी ही मैं बन जाऊं ,
गति-विराम परस्पर जी लूँ प्रेम पगा हो मेरा जीवन ,
साधक बन कर रहूँ जगत में ,मुझे नहीं विश्राम चाहिए ,
गतिशीलता निरन्तरता ,इस जीवन का प्रवाह चाहिए .
गति ही मेरा मानदंड हो ,पथ ही लक्ष्य रहे मेरा
मेरे नयनों के सपनों को तेरा ही वरदान मिले .
सूरज के आतप की शीतलता का दान मिले ,
मेरे जीवन की आभा को ,तेरा अमृत -गान मिले
सुर संगीत मिले लहरों सा ,गति हो लहरों सी चंचल .
मन की गहराई में प्रियतम की स्थिर छवि का अभिमान मिले .
स्वप्न अजय हो मेरा लहर -लहर में छवि वही
ज्वालाओं के पार खड़ा जो तू उस पथ की खेवनहार बने ,
एक यही जीवन अभिलाषा पथ ही मेरा लक्ष्य बने .........................
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कितना आसाँ है कहना भूल जाओ ,
कितना मुश्किल है पर भूल जाना .................................................
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