Saturday, 28 September 2013

             '' बदल रहा है मौसम ''
              ****************
होने लगा , मॉहौल चुनावी
नगर के सब गुंडे,जुआरी , शराबी ,
,पार्टी कार्य -कर्ता लगे हैं बनने
स्मगलर ,चोर बाजार के व्यापारी ,
गली गली घूमें, ले  लोकतंत्र का झंडा .
म त दो -म त दो ,म त दो- म त दो ,
हमारी पार्टी को मत दो ,हमारी पार्टी को मत दो ,
फलां को मत दो ,फलां को मत दो ,
लोकतंत्र की बिछ गयी चौपड़ ,
प्रजातंत्र   की    हाट     लगेगी .
भांति भांति की टोपी देखो .
 वो पहने  , जनता को पहनाएं ,
वो देखो! वो, खद्दर -धारी,
चकाचक है  उसकी धोती ,
चलते फिरते ब्रैंड  गाँधी के ,
सैकेंड हैण्ड गाँधी दिखतेहैं .
मत दो- मत दो ,हाथ जोड़ ,
गाँव -गली-चौराहे , फिरते है .
यूँ लगता है वर्षा ऋतू में ,
बिखर गए थे   बीज ,नेता के,
जगह -जगह पौध उगी है ,
बस होनी है शेष रुपाई,
कुछ नेता तो जड़ पकड़ेंगे ,
कुछ उनके पिछलग्गू होंगे ,
जैनरिक खेती है ये भाई ,
काम किसी के कभी न आयी ,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,
कुर्सी ओ पद के चाटुकार ये
देश को खा- पी के जो बैठे ,
अब साधू बन के हैं आये .
कभी गरीब को खाना देते ,
कभी नैतिक पाठ पढ़ाते,
जनता बनी मानिनी देखो ,
गर्व से फूली नहीं समाती ,
अपने पत्ते मैं न खोलूं ,
वोट ही तो हाथ में मेरे ,
जिसपे चाहे मैं खरचूंगी ,
मत बन मानिनी भोली जनता ,
वोट नहीं तेरा अपना धन ,
ना -ना करते   देना होगा ,
तरह- तरह की बोली लगेगी ,
नीलामी पे वोट है तेरा .!
जनता तू फिर बिक जायेगी ,
धर्म के नाम पे बंट जायेगी .
जातिवाद पे फंस जायेगी ,
वो चतुर हैं  -वोटों के  व्यापारी ,
म त दो -म त दो ,कहकर ,
ये नेता तुझ को बहका ही लेंगे .
और जीतने पे सब गायब ,
इक ही बात की देंगे दुहाही
हमने तो बस  यही कहा था
,मत दे मत दे हम को म त दे ,
 न हमको तुमने  समझा .
मत दे कहने पे भी ,  दे डाला? ,
अब तो भुगतो अपनी करनी ,
हमें  तो अपनी झोली भरनी.
पर अब जनता मुस्काती है .
राइट टू रिजेक्ट है हाथ में आया ,
मत को अब मै मत ही दूंगी ,
खर -पतवार.को  साफ़  करुँगी .
चाहे कुछ भी देर लगेगी ,
कुछ अराजकताभी हो सकती है ,,
लोकतंत्र ये लोकतंत्र है ,
समाधान भीतर ही होता है ,
कुछ तो मौसम बदलेगा ही
कुछ तो मौसम बदलेगा ही ......










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Friday, 27 September 2013

            आशा की किरन     

Thursday, 26 September 2013

             ''  बैठे ठाले ''
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    बसंत की सुहानी दोपहर ,आम का हरा भरा पेड़ ,पेड़ पे ढेर सी बौर और हरी -हरी अम्बियाँ ...चारों ओर फैली बौर की मदहोश करने वाली सुगंध ,कोयल बहुत दूर से इसे महसूस करती है ,उडती हुई हुई आती  है और इस डाल से उस डाल, फुदक -फुदक के पंचम सुर में मस्ती से कुहू -कुहू गाने लगती है ..अम्बियाँ हवा के झूलों पे सवार मस्ती में झूल रही थीं . यौवन के प्रथम सोपान में  ,अल्हड़,अक्खड़ अपनी सुन्दरता की नीम बेहोशी में .उन्हें काली- कलूटी का रंग में भंग अच्छा नहीं लगा. कोयल बोली कुहू -कुहू मैं आ गयी!
आम्बियाँ इतराई ..और बोलीं अरी कलूटी कहाँ से आजाती है हर मौसम , कहाँ हमारी डालियों पे.. सुंदर सलोनी,सुनहरी , सुगन्धित बौर , हरी -हरी अम्बियाँ और कहाँ तू काली- कलूटी,. ...सारी छटा ही बिगाड़देती है .....कोयल बड़ी दूर से आयी थी ...उसे विश्वास था ,मैं तो पाहुनी हूँ बौर मेरी बलैयां लेगी ,अम्बियाँ गलबहियाँ डालेंगी ,सदियों से तो ऐसा ही हो रहा है ....बड़ी निराश हुई ....पर हार नहीं मानेगी ...वो तो कोयल है ..पंचम सुर में गाने वाली ...सोचने लगी अब आ ही गयी हूँ तो टिकुंगी  पर जुगत भिड़ानी होगी ...चलूँ कौवे से पूंछूं क्या बात है, इतना क्यूँ इतरा रही हैं अम्बियाँ ...खूब झूमके कुहू -कुहू सुनाया कौवे को..अम्बियों ने देखा और बोलीं .बेचारा चाल में फंस गया ..वैसे भी ये धूर्त कोयल हर वर्ष न जाने कितने कौवों के अंडे घोंसलों से गिरा देती है और वहां अपने अंडे रख देती है ..बेचारे को पता भी नहीं चलता ,और ये कलूटी धूर्त के साथ -साथ निकम्मी भी तो है ,कौवे से ही अपने बच्चे पलवाती  है ,आलसन ,माँ के होते हुए भी क्या बच्चे किसी और से पलवाये जाते हैं पर इसे तो बस गाना और आजाद रहना है  कोयल तो है ही मानिनी ,पर सुन के भी शान रही और कौवे से पूछा, ये माहौल में बदलाव क्यूँ है ...तो पता चला कि डेंगू फैला हुआ है और रामदेव बाबा ने कहा है की बौर को सुखाके उसका धुंआ देने से मच्छर भाग जाते है और आम के पत्तों के कोंपलों के टहनियों के अम्बियों के और आम के बहुत से आयुर्वेदिक प्रयोग सार्वजनिक कर दिए हैं ,तब से ये परिवार ज्यादा ही इतराने लगा है ..अब प्रभुता पाहि काहू मद नाहीं ,.....,,,,कोयल को बहुत बुरा लगा .इस मौसम की रानी तो मैं हूँ  और मैं ही रहूंगी मैं निकम्मी हूँ तो क्या !ये अम्बी ही कौन सा कुछ कर रही है ,बस पवन के संग -संग डोल रही है और इतरा रही है निठल्ली ..बस रूप रंग ही में तो अच्छी है तो मैं कौन बुरी हूँ कृष्ण वर्ण हूँ कान्हा की मुरली की भांति ही पंचम सुर में गाती हूँ ...क्या जुगत भिडाऊं .कि इसका घमंड झड़ जाए ---और फिर बहुत सोच के कोयल बोली -----अरी अम्बी सुन ....बहुत बन रही है न ---माली आयेगा और कच्ची को ही तोड़ के ले जाएगा ----आचार बनादेगा तेरा ,ये इठलाना ,इतराना पींगें बढ़ाना हवा के साथ -साथ -सब चार -दिन की चांदनी है फिर तो सारीउम्र मर्तबान में कैद रहेगी ..वो भी तेल में डूबी हुई ....अरे क्या कह गयी निगोड़ी !अम्बी सिहर उठी ..सच बात है पर कितनी कडवी ,लेकिन  हार न मानूंगी मैं ----बोली -----अरी कलमुहीं सुरक्षित भी तो रहूँगी न ,न सडूगी , न गलूंगी सुरक्षित रहने का अचूक नुस्खा ..आचार बन जाओ -----अपने घरके लोगों के साथ रहो ,थोडा नमक ,थोडा मसाला थोडा स्नेह [चिकनाई ]..कभी धूप में तो कभी छावं में---- हा हा हा ----पर तू सोच जब तेरे बच्चे होंगे और कुहू- कुहू बोलेंगे ! निगोड़ी तेरी तो पोल ही खुल जायेगी सब को कौवे से ही सहानुभूति होगी ...तेरी सुरीली आवाज भी तेरे उपर लगा धूर्तता और निकम्मेपन का दाग नहीं हटा पाएगी ...गालियाँ ही मिलेंगी तुझे और कर्मठ और सबकेसाथमिलके रहने वाला कौवा इक बार फिर, घर -घर पितृ -पक्ष में पूजा जाएगा ..और कागभुशुंडी का खानदानी होने का गौरव पायेगा ..जिरह पे जिरह  कोई भी हार न माने ....पर ...अब तक अम्बी और कोयल समझ चुकी थीं ,दोनों को साथ -साथ ही रहना है और थोड़े ही समय का साथ है तो क्यूँ न प्यार से रहें ,,दोनों में कुछ कमियां हैं, कुछ खूबियाँ हैं, तो दोनों एक साथ बोली चलो हम सहेली बन जाए और हंसके गलबहियां डाल लीं ..अम्बी बोली,  मैं डाल पे इतराऊंगी ,इठलाऊंगी और कोयल तू पंचम सुर में गाना ,अपने सुर की मधुर -मिठास मुझे देकर, इस पेड़ के सारे आमों को मीठा करदेना, मैं तेरा स्वागत करती हूँ ...कोयल ने भी ख़ुशी में गाना शुरू किया और दोपहर संगीत और सुगंध से सराबोर हो गयी ....पर एक बात है अम्बी तो अचार ,मुरब्बा ,चटनी बन के मर्तबान में सुरक्षित हो जायेगी,,कौवा कर्कश कांव-कांव करता हुआभी घर -घर पूजा जाएगा ----खीर खंडवा द्यों तोहे कागा ,सोने की चोंच मढ़ाऊं तोहे कागा .....पर कोयल अकेले रहने की आदत के कारण ,  दर दर भटकेगी ,,पंचम सुर में सुरीला गाना भी अकेलापन दूर न कर पायेगा ...................................मॉरल आफद स्टोरी ....वैसे तो कई सारी सीखें हैं पर ये पढने वाले पे निर्भर करेगा वो कौन सी सीख लेता है ....और कौनसा कहानी पढके अब कोई सीख लेता है ....मैंने तो खाली दिमाग शैतान का घर ,,,,लिख दी बैठे ठाले .....................आभा .............  

Thursday, 19 September 2013

                                    *********** श्राद्ध पक्ष ---------- मार्जन तर्पण ***********
                                                           *************************
बचपन की यादों में पूज्य पिताजी के नहाने का हडकम्प भी ज्यूँ का त्यूं ताजा है ....जोर जोर से गंगे -यमुनेश्चैव गोदावरी ,सरस्वती से शुरू करके नंदिनी नलिनी सीता मालती च महापगा........स्नानोध्य्त: स्मरेन्नित्यम तत्र -तत्र वसाम्यहम ,,और फिर स्नानके पश्चात कभी पूर्व की और कभी पश्चिम, कभी उत्तर और कभी दक्षिण जनेऊउँगलियों में फंसा के देव तर्पण ,ऋषि तर्पण ,पितृ तर्पण, ...........एकपूरा संस्कार होता था स्नान .....प्रतिदिन ही अपने पूर्वजों को तर्पण देना भी सनातन संस्कारों में शामिल था .....श्राद्ध पक्ष में तो मुझे लगता है सारे ही पितृ हमारे घर आ जाते थे .तर्पण हवन पूजा .....पता नहीं कहाँ -कहाँ से पिताजी की बहने [ध्यानते]आ जाती थीं , गंगी दीदी ,बुद्धि दीदी .गाँव की दूर धार की ..सबको प्यार से मनुहार से खिलाना ,दक्षिणा  .....बचपन से ही मैं सोचती थी , जो चले जाते हैं इस दुनिया से वो कैसे तृप्त होते होंगे इस तिल और दूध मिले जल से .......क्यूँ पूर्वज पितृ पक्ष में ही आते हैं . पिता से ,माँ से तर्क भी करती थी पर तर्क का अर्थ क्या होता है ?तर्क का अर्थ होता है ;मनुष्य के सोचने -विचारने की प्रक्रिया ...लेकिन क्या सत्य को सोचने विचारने से जाना गया है कभी ?जिसे हम जानते ही नहीं हैं ,उसे सोचेंगे कैसे ,विचारेंगेकैसे ? सोच विचार तो ज्ञात की परिधि में ही घूमते हैं .और सत्य तो अज्ञात ही नहीं अज्ञेय भी है .........
...विज्ञान की दो सीमायें हैं अज्ञात और  ज्ञात |..अज्ञात की सीमा सिकुड़ति जा रही है ...और इसी को विज्ञान विकास कहता है ...जिस दिन सबकुछ का ज्ञान हो जाएगा वो दिन विज्ञान का चरमोत्कर्ष का दिन होगा ,सभ्यता की पराकाष्ठा..और जो कुछ बचेगा वो शिखर होगा गौरी शंकर का ...शून्य ...
लेकिन धर्म की नजरों में एकतीसरी श्रेणी भी है अज्ञेय की .......जिसे कितना भी जानते जाओ  तो भी अनजाना रह जाता है .आप दावा कर ही नहीं सकते किआप जान गए हैं ,उस अज्ञेय को ही ईश्वर कहते हैं ....जिसकी बूंद भी हाथ आ गयी तो जीवन रसमय हो जाएगा ...जानकर भी, जान -जान कर भी जो जानने को रह जाता है वही धर्म का रहस्यवाद है .....और इसी में आता है ये पर्व महालया......पूर्वज कहाँ रहते है ?......,कहाँ से आते हैं ?     ,वो ऊर्जा रूप में होते हैं या सूक्ष्म शरीर होते है ?       ,ये सूक्ष्म शरीर क्या होता है ?......ये सब विषयों पे शास्त्रों में वृहद रूप से आलेख हैं .......और अब तो विज्ञान भी आत्मा को मानने की और अग्रसित है ...पर मेरा मानना तो है की कई बार तर्क और बुद्धि को परे रख के जो बुजुर्गों ने राह दिखाई है उस पे चलने में अंतर्मन उत्साहित होता है ......ये  तर्क करने की जगह की पूर्वज कहाँ हैं ....कैसे ग्रहण करेंगे हमारी श्रधा --अंजली .....हम बस श्राद्ध पक्ष को मनाएं ...पूर्वजों का आवाहन करें उन्हें तिलांजलि,जलांजलि समर्पित करें ....गाय,..कौवे ,चींटी ,श्वान को हो सके तो ब्राह्मण या ध्यान्तोंको जिमायें...सच में आनंद आयेगा ....यूँ लगता है की पितरों का आशीष मिल रहा है ....जीवन क्या है सोच ही तो है     ....क्या पता इतने बड़े ब्रह्मांड में कोई दूसरा लोक हो .......और कुछ भी नहीं तो होली ,दीवाली भी तो मनाते हैं ..महालय  भी उसी ख़ुशी और श्रधा से मनाएं ........सचमुच में ही घर महा -आलय बन जाता है ....यदि हमारे मन में श्रधा है अपने पूर्वजों के प्रति ...हम चाहते है उनका ऋण चुकाना ,उन्हें केवल जलांजलि की आवश्यकता है ..अधिक जो कुछ भी करना चाहें हमारी श्रधा और इच्छा .....धर्म तो अपनी निजी वस्तु है ,जीने का तरीका ,अपने को जानने की प्रक्रिया ...अनन्त के रहस्यों का और  उस अज्ञेय को जानने का मार्ग .....मेरी नजरों में मेरा धर्म गीता है और रामायण है ....यदि इन दो ग्रंथों में ही डुबकी लगायें ,तो उसकी सुरभि से हम महकने लगते हैं ........
कुछ लोगों का ये भी कहना होता है की जीतेजी तो माता पिता को पूछा नहीं ,तो मरने पे ये दिखावा क्यूँ ....तो उसपे पहले तो  शास्त्रों  में यदि लिखा है ,तो श्राद्ध करे अवश्य ...क्या पता गुनाह माफ़ ही हो जाय ,कोई आडम्बर नहीं ,कोई दिखावा नहीं ,केवल ...ॐ आग्छ्न्तु में पितर इमं गृहणन्तु जलांजलिम ......कहके जल तिल ,मधु ,दुग्ध किसी से भी तर्पण करिए ..जो उपलब्ध हो ....जिन माता पिता को जीते जी नहीं पूछा वो बेचारे क्या मरने के बाद भी हमारी श्रधा के हकदार नहीं हैं ........और दूसरे यह की श्राद्ध पक्ष पे पूर्वज हमारे घर आते हैं ,ये सोच और ये मान्यता जीवित पितरों को भी सम्मान देने में सहायक हो सकती है ....भय और डर ....के मनोविज्ञान को हमारे ऋषियों ने बहुत पहले समझ लिया था ......और इसी के कारण वृक्ष ,जल जंगल ,प्रकृति गाय आदि आदि इतनी सदियों तक संरक्षित रह सके ........माता पिता को न पूछने वाली संतान रौरव नर्क में जाती है ...ये डर  तो होना ही चाहिए ....चाहे धर्म  के नाम पे हो ,,अंध विश्वास के नाम पे हो ...या पोंगापंथी ही कहे जाएँ ....जो भी हो महालय  मनाये ...कोई तर्क नहीं ,,,बस विश्वास ,,,,  
   आभा ,



              

Tuesday, 17 September 2013


डूबता सूर्य सागर के अंकमेंसमाताहुआ। रहस्य मयी रंगों की दुनिया में समाया संसार  और साथ ही संसार के रहस्यों को जानने को बैचैन मानव मन। .ये संसार और विशेषत: भारतवर्ष सदैव ही रहस्य और विचित्रताओं से भरा हुआ है ;एक ऐसा ही विषय है शाबरमन्त्र। जो हमेशा ही अपनी मान्यताओं .,पौराणिकता और प्रभावोत्पादक शक्तियों के कारण  मुझे चमत्कृत करता है ,इन मंत्रों की शक्ती को कई मर्तबा मैंने महसूस किया है पर मन है कि इस विज्ञान की दुनिया में इस विद्या को मानने से डरता है। । प्राचीन काल में तो समाज इन शाबर मन्त्रों के सहारे ही चलता था ,पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव और पार्वती ने जिस समय अर्जुन के साथ किरात वेषमें युद्ध किया था ये शाबर मन्त्र शिव-शक्ति की उस समय की तंत्र चर्चा का ही प्रतिफल हैं ,देवाधिदेव और आध्यशक्ति के शाबर वेष में होने के कारण ही इन मन्त्रों को शाबर मन्त्र कहा जाता है। अनेकानेक वैदिक और तांत्रिक मन्त्रों के होते हुए भी शाबर मन्त्रों के शीघ्र और चमत्कारिक प्रभाव से विद्वत्समाज चमत्कृत है। … ये भी मान्यता है की कलियुग में इन मन्त्रों का पुन: प्रतिष्ठापन सिद्ध औघड़ तपस्वी महर्षि मत्स्येन्द्र नाथ ने और फिर उनके शिष्य गुरु गोरख -नाथ ने किया।   शाबर मन्त्रों की सिद्धि देने वाले ११ आचार्य माने गये हैं। …… नागार्जुन ,जड़भरत ,हरिश्चन्द्र ,सत्यनाथ ,भीमनाथ ,गोरखनाथ ,चर्पटनाथ ,अवघटनाथ ,कन्यधारी ,जलंधर नाथ और मल्यारजुन।।।।  कालान्तर में कई योगियों और संतों के नाम इन नामों में जुड़ते गए। . 
शाबर मन्त्र वस्तुतः जंगली मन्त्र हैं और अर्थ एवं उच्चारण की दृष्टि से सर्वथा अशुद्ध होते हैं ये ग्रामीण बोलचाल के प्रतीक हैं और शायद निरर्थक से प्रतीत होने वाले शब्दों के उच्चारण का  शरीर में पड़ने वाला प्रभाव ही इनका विज्ञान है एक ऐसी विधा जो आज अपनी अंतिम  साँसें ले रही है। ….    
वैदिक अथवा अन्य तांत्रिक विद्याओं की तरह इनमे ध्यान ,न्यास ,तर्पण ,मार्जन ,पूजा ,अर्चना। शुद्धि पवित्रता की आवश्यकता नहीं होती। . ……………। 
ये मन्त्र स्तुति परक नहीं हैं ,वरनमन्त्र के देव को साधक द्वारा चुनौती पूर्ण भाषा में आज्ञा  दी जाती है। 
और साथ ही सौगंध और चुनौती दे कर मन्त्र से काम लिया जाता है ,ये शायद इसलिए कि देवाधिदेव महादेव ने यदि स्वयं ही इन मन्त्रों को बनाया है तो वो इनकी स्तुति क्यूँ करेंगे ,आज्ञा ही देंगे और यदि मन्त्र कहना मानने में आनाकानी करे तो धमका देंगे।                                                                                                                         इन मन्त्रों की सबसे प्रमुख विशेषता है गुरु भक्ति और गुरु पे अंध-विश्वास। ……। तीन लोक नव खंड में गुरु ते बड़ा न कोई ,करता करे न करीसके ,गुरु करे से होई। .    …                                                                          आत्म शक्ति ,खुद पे , अपने मन्त्र पे अपने गुरु पे गुरुर की हद तक विश्वास ये शाबर मन्त्रों की सफलता की मुख्य कड़ी है। …. और शाबर मन्त्रों के अंत में शब्द साचा ,पिंड काचा ,फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा पूर्ण आत्म विश्वास के साथ कहा जाता है अर्थात शब्द को इश्वर की वाणी के रूप में स्वीकार किया जाता है। … कुछ शाबर मन्त्र  जो मेरे संज्ञान में है।  …………………………………. 
१।  … पीलिया झाड़नेका , …………… जिसको पीलिया हुआ है उसके सर पे कांसे की कटोरी में तिलका तेल रखे और कुशासे उस तेल को चलाते हुए नीचे लिखे मन्त्र को सात बार लगातार तीन दिन तक पढ़े।  …………. "ॐ नमो वीर बेताल कराल ,नारसिंहदेव ,नार कहे तू देव खादी तू बादी,पीलिया कूंभिदाती,कारै-झारै पीलिया रहै न एक निशान ,जो कहीं रह जाय तो हनुमंत जातिकी आन।  मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति,फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा।''  ………………                                                                                                                                    
२।  … आधा सर दर्द [माइग्रेन ]मिटाने का  ………………………''वन में ब्याई अंजनी ,कच्चे बन फूल खाय। हाक मारी हनुमंत ने इस पिंड से आधा सीस उतर जाय। ''
३।  …लकवा ठीक करने का मन्त्र।  ………. ॐ नमो गुरुदेवाय नम:. ॐ नमो उस्ताद गुरु कूं ,ॐ नमो आदेश गुरु कूं ,जमीन आसमान कूं ,आदेश पवन पाणी कूं ,आदेश चन्द्र -सूरज कूं ,आदेश नव नाथ चौरासी सिद्ध कूं ,आदेश गूंगी देवी ,बहरी देवी ,लूली देवी ,पांगुलीदेवी ,आकाश देवी ,पटल देवी ,उलूकणीदेवी ,पूंकणीदेवी ,टुंकटुकीदेवी ,आटीदेवी ,चन्द्र -गेहलीदेवी ,हनुमान जाति अन्जनीका पूत ,पवन का न्याती ,वज्र का कांच वज्र का लंगोटा ज्यूँ चले ज्यूँ चल ,हनुमान जाति की गदा चले ज्यूँ चल ,राजा रामचन्द्र का बाण चले ज्यूँ चल,गंगा जमुना का नीर चले ज्यूँ चल ,कुम्हार को चाक चले ज्यूँ चल  गुरु की शक्ति ,हमारी भक्ति ,चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।  ……                                                                                                                                                  ४ सर्व रोग मारक शिव मन्त्र ,…………वन में बैठी वानरी अंजनी जायो हनुमंत ,बाला डमरू ब्याही बिलाई आँख की पीड़ा ,मस्तक पीड़ा ,चौरासी ,वाई ,बली -बली भस्म हो जाय ,पके न फूटे ,पीड़ा करे ,तो गोरखजाति रक्षा करे गुरु की शक्ति मेरी भक्ति ,फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा।  ……………………।                                                    
५ बिच्छूका डंक उतरना , ……………… ''ॐ नमो आदेश गुरु का ,काला बिच्छू कंकरीयाला ,सोना का डंक ,रुपे का भाला,उतरे तो उतारूँ ,चढ़े तो मारूं।नीलकंठ मोर ,गरुड़ का आयेगा ,मोर खायेगा तोड़ ,जा रे बिच्छू डंक छोड़ ,मेरी भक्ति ,गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा।  ……….                                                             इस मन्त्र का १०८ झाडा नीम की डाल का लगाना है।  ………………………                                                  सर्प के विष को उता रने के कई सारे मन्त्र हैं मैं एक लिख रही हूँ , ………………. ॐ नमो पर्वताग्रे रथो आंती,विटबड़ा कोटि तन्य बीरडर पंचनशपनं  पुरमुरी अंसडी तनय तक्षक नागिनी आण,रुद्रिणी आण,गरुड़ की आण। शेषनाग की आण ,विष उड़नति,फुरु फुरु फुरु ॐ डाकू रडती ,भरडा भरडती विष तू दंती उदकान ''…. 
६.…. नजर उतारने का मन्त्र।   ……………''ॐ नमो सत्य नाम आदेश गुरु को ,ॐ नमो नजर जहाँ पर पीर न जानि ,बोले छल सों अमृत बानी।  कहो कहाँ ते आयी ,यहाँ की ठौर तोहे कौन बताई। कौन जात तेरी का ठाम,किसकी बेटी कहो तेरो नाम ,कहाँ से उड़ीकहाँ को जाया ,अब ही बस करले तेरी माया।मेरी बात सुनो चित्त लगाय,जैसी होय सुनाऊँ आय। तेलन तमोलन चुहडी चमारी ,काय थनी ,खतरानी कुम्हारी। महतरानी,राजा की रानी ,जाको दोष ताहि सर पे पड़े ,हनुमत वीर नजर से रक्षा करे। मेरी भक्ति ,गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ,ईश्वरो वाचा।'' …                                                                                                                                                         इस तरह इतने शाबर मन्त्र हैं की पूरा एक बड़ा ग्रन्थ बन जाए।  स्वमूत्र चिकित्सा भी शाबर मन्त्रों पे ही आधारित है ,जिसमे शिवजी ने पार्वती को इसके नियम बताये हैं। ….इन शाबर मन्त्रों  के रहस्य को समझना बहुत ही मुश्किल है. आज ये विधा अपनी समाप्ति की ओर है। इसमें गुरु का ही महत्व है वो ही बताता है किकिस मन्त्र को कैसे सिद्ध करना है और कितनी बार पढना है। .  और एक सबसे अहं बात ये मन्त्र कमाई का जरिया नहीं बन सकते। ये तो सेवा और कल्याण के लिए होते हैं … अवश्य  शब्दों से निकलने वाली तरगें  ही इनके पीछे का विज्ञान होंगी और कितने बार और किस वृक्ष की छाया में बैठ के इन्हें बोलना है। … मैंने देखा है की  जैसे सांप के काटने की दवाई उसके ही जहरसे बनती है वैसे ही इन शाबर मन्त्रों में भी रोग के मुताबिक़ ही शब्द बोले जाते हैं और उच्चारण में उतार चढाव, आवाज की दृढ़ता और तीव्रता होती है। कैंसर के मन्त्र में तो जो शब्द हैं सुन के ही लगता है मानो, सर्जरी हो रही है ,…। काश ये विधा आज भी जीवित हो कहीं। …. तो शोध का विषय बन जाए। मुझे पता है बुद्धि जीवियों को ये बकवास लगेगी पर यदि दिमागी घोड़े दौड़ाएंगे और सोच को विस्तृत करेंगे तो इन शाबर मन्त्रों में वही चमत्कार है जो घंटे ,घडियाल। शंख ,मृदंग और वीणा मे या यूँ कहें संगीत में होता है। … शिव शक्ति को समर्पित।,,,,,,,,,, आभा ,,,,,,,,,,,,










                                                                                                                                                                           




Sunday, 15 September 2013

आज दिमाग को आराम फरमाने का आदेश दिया है ... बुद्धिजीवियों वाले कोई विचार नहीं इंटरटेन करने है , विचार हैं की उछल-कूद मचा रहे है ...मैं इन्हें  शट-अप कर रही हूँ ...अरे छुट्टी दी है तो चुप बैठो न क्यूँ मल्टीनेशनल कम्पनियों के नुमाइंदों की मानिंद work from home ,करने को विवश हो पर अफ़सोस ये दिमाग जब अपने को बुद्धिजीवी मानने लगता है तो क्या शांत बैठ सकता है ,----सो कुछ तो सोचना ही पड़ेगा पर विषय भिन्न होगा ...जीवन को समझते ही जो मूलभूत भावना मन में आती है उसकी चर्चा ...अनुभूतियों में लिपटी अत्मानुभूति ..काव्य जीवन का आधार इश्क उस अज्ञात से! उसे जानने  की कोशिश चंद शायरों की जुबानी .....मिलन  की तडप महादेवी के शब्दों में .
अलि कहाँ सन्देश भेजूं ,
मैं किसे सन्देश भेजूं ,
एक सुधि अनजान उनकी ,
दूसरापहचान मन की ,
पुलक का उपहार दूँ या अश्रु भार अशेष भेजूं ....................प्रसाद के शब्दों में इश्क की पीड़ा ...........'.......................................................................................
.अरे बतादो मुझे दया कर,कहाँ प्रवासी है मेरा ,उसी बावले से मिलने को डालरही हूँ मैं फेरा ..'.......................प्रेम समस्त काव्य का आधार है ,करुना की भावना ,श्रृंगार हो या वियोग ,इश्क का कारखाना है .............सो आज विचार इस इश्क पर ही केन्द्रित ......
.........इश्क अख्तियार करो कि इश्क ही कारखाना पर मुसल्लत है ; अगर इश्क न होता तो तमाम निजाम दरहम -बरहमहो जाता ;बे इश्क की जिंदगानी बवाल है और इश्क में दिल खोना अस्लेकमाल है इश्क ही बनाताहै ;इश्क ही बिगाड़ता है कहते हैं आलममें जो कुछ भी है इश्क का जहूर है;आग सोजे इश्क है ;पानी रफ्तारे इश्क है ;ख़ाक करारे  इश्क है ;हवा इजतरारे  इश्क है  ; मौज इश्क की मस्ती है ;हयात इश्क की होशियारी है ;रात इश्क का ख़्वाब है ;दिन इश्क की बेदारी है ;यहाँ तक किआसमानों की हरकत हरकते इश्की है इश्क की इन्तहां  रब की यारी है ;........... शायर कहो ,कवि कहो या संत और सूफी कहो ...जब अपने को पहचान जाता है और प्रभु से मिलन  हो जाता है  तो उसकी अवस्था क्या होती है .........जब मैं था तब हरी नहीं ,अब हरी हैं मैं नाहि,सब अंधियारा मिट गया दीपक देख्या  माहीं; ..................
मेरे तो बस गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ;...................................................
मूर्छित थीं इन्द्रियाँ ,स्तब्ध जगत ;
जड़ चेतन सब एकाकार ;
शून्य विश्व के उर में केवल ;सांसों का आना जाना ;
......इश्क ही इश्क है जहाँ देखो ;
सारे आलम में भर रहा है इश्क ;
इश्क माशूक, इश्क आशिक है ;
यानी अपना  ही मुब्तला [११ ]है इश्क ;
कौन मकसद को इश्कबिन पहुंचा ;
आरजू इश्क ,मुद्दआ है इश्क ;
दर्द खुद ही ,खुद ही दवा है इश्क ,
सच्चे हैं शायरां,खुदा है इश्क ;....मीर ]
और प्रसाद के शब्दों में --------------
जिसमें सुख -दुःख मिलकर मन के उत्सव आनंद मानते हों ,
उज्ज्वल वरदान चेतना का सौन्दर्य जिसे सब कहते हैं ....
हाँ यही है अनंत काल से शुरू हुई मन की यात्रा ,,जिसमे कितने ही किस्से-कहानियाँ समाई है ,जिसमे मीरा समा गयी ,राधा अपने को भूल गयी ,प्रहलाद और ध्रुव ने खोकर अपने को ;उस प्रभु को सबकुछ प्राप्त किया ;यही है इश्क ,प्रेम लगन ...जहाँ सब कुछ खोकर पाना होता है ..
.शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना की को लगा यह मरण का बहाना ......
 ओफोह मैंने तो दिमाग को छुट्टी दे के आराम करने भेजा था और यूँ ही इश्क की दास्तान यद् आ गयी;  बैठे -ठाले दिमाग को आराम देने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है ......सब बुझे दीपक जला लूँ ! घिर रहा तम आज दीपक -रागिनी अपनी जला लूँ ...........अजय को श्रधान्जली स्वरूप ...आभा .......


आज दिमाग को आराम फरमाने का आदेश दिया है ... बुद्धिजीवियों वाले कोई विचार नहीं इंटरटेन करने है , विचार हैं की उछल-कूद मचा रहे है ...मैंने शट-अप कर रही हूँ ...अरे छुट्टी दी है तो चुप बैठो न क्यूँ मल्टीनेशनल कम्पनियों के नुमाइंदों की मानिंद work from home ,करने को विवश हो पर अफ़सोस ये दिमाग जब अपने को बुद्धिजीवी मानने लगता है तो क्या शांत बैठ सकता है ,----सो कुछ तो सोचना ही पड़ेगा पर विषय भिन्न होगा ...जीवन को समझते ही जो मूलभूत भावना मन में आती है उसकी चर्चा ...अनुभूतियों में लिपटी अत्मानुभूति ..काव्य जीवन का आधार इश्क उस अज्ञात से और उसे जानने  की कोशिश चंद शायरों की जुबानी .....मिलन  की तडप महादेवी के शब्दों में .
अलि कहाँ सन्देश भेजूं ,
मैं किसे सन्देश भेजूं ,
एक सुधि अनजान उनकी ,
दूसरापहचान मन की ,
पुलक का उपहार दूँ या अश्रु भार अशेष भेजूं ....................प्रसाद के शब्दों में इश्क की पीड़ा ...........'.अरे बतादो मुझे दया कर,कहाँ प्रवासी है मेरा ,उसी बावले से मिलने को डालरही हूँ मैं फेरा '..........प्रेम समस्त काव्य का आधार है ,करुना की भावना ,श्रृंगार हो या वियोग ,इश्क का कारखाना है .............सो आज विचार इस इश्क पर ही केन्द्रित ..
.........इश्क अख्तियार करो कि इश्क ही कारखाना पर मुसल्लत [१ ]है ; अगर इश्क न होता तो तमाम निजाम [२ ]दरहम -बरहम[३ ]हो जाता ;बे इश्क की जिंदगानी बवाल है और इश्क में दिल खोना अस्लेकमाल है इश्क ही बनाताहै ;इश्क ही बिगाड़ता है कहते हैं आलम [४ ] में जो कुछ भी है इश्क का जहूर[५ ] है;आग सोजे [६ ] इश्क है ;पानी रफ्तारे इश्क है ;ख़ाक करारे  इश्क है ;हवा इजतरारे [७ ] इश्क है  ; मौज इश्क की मस्ती है ;हयात [८ ]इश्क की होशियारी है ;रात इश्क का ख़्वाब है ;दिन इश्क की बेदारी[९ ] है ;यहाँ तक किआसमानों की हरकत हरकते इश्की[१० ] है इश्क की इन्तहां  रब की यारी है ;........... शायर कहो ,कवि कहो या संत और सूफी कहो ...जब अपने को पहचान जाता है और प्रभु से मिलन  हो जाता है  तो उसकी अवस्था क्या होती है .........जब मैं था तब हरी नहीं ,अब हरी हैं मैं नाहि,सब अंधियारा मिट गया दीपक देख्या  माहीं; ..................
मेरे तो बस गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ;...................................................
मूर्छित थीं इन्द्रियाँ ,स्तब्ध जगत ;
जड़ चेतन सब एकाकार ;
शून्य विश्व के उर में केवल ;सांसों का आना जाना ;
......इश्क ही इश्क है जहाँ देखो ;
सारे आलम में भर रहा है इश्क ;
इश्क माशूक, इश्क आशिक है ;
यानी अपना  ही मुब्तला [११ ]है इश्क ;
कौन मकसद को इश्कबिन पहुंचा ;
आरजू इश्क ,मुद्दआ है इश्क ;
दर्द खुद ही ,खुद ही दवा है इश्क ,
सच्चे हैं शायरां,खुदा है इश्क ;....मीर ]
और प्रसाद के शब्दों में --------------
जिसमें सुख -दुःख मिलकर मन के उत्सव आनंद मानते हों ,
उज्ज्वल वरदान चेतना का सौन्दर्य जिसे सब कहते हैं ....
हाँ यही है अनंत काल से शुरू हुई मन की यात्रा ,,जिसमे कितने ही किस्से-कहानियाँ समाई है ,जिसमे मीरा समा गयी ,राधा अपने को भूल गयी ,प्रहलाद और ध्रुव ने खोकर अपने को ;उस प्रभु को सबकुछ प्राप्त किया ;यही है इश्क ,प्रेम लगन ...जहाँ सब कुछ खोकर पाना होता है ..
.शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना की को लगा यह मरण का बहाना ......
 ओफोह मैंने तो दिमाग को छुट्टी दे के आराम करने भेजा था और यूँ ही इश्क की दास्तान यद् आ गयी;  बैठे -ठाले दिमाग को आराम देने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है ......सब बुझे दीपक जला लूँ ! घिर रहा तम आज दीपक -रागिनी अपनी जला लूँ ...........अजी को श्रधान्जली स्वरूप ...आभा .......