'' बदल रहा है मौसम ''
****************
होने लगा , मॉहौल चुनावी
नगर के सब गुंडे,जुआरी , शराबी ,
,पार्टी कार्य -कर्ता लगे हैं बनने
स्मगलर ,चोर बाजार के व्यापारी ,
गली गली घूमें, ले लोकतंत्र का झंडा .
म त दो -म त दो ,म त दो- म त दो ,
हमारी पार्टी को मत दो ,हमारी पार्टी को मत दो ,
फलां को मत दो ,फलां को मत दो ,
लोकतंत्र की बिछ गयी चौपड़ ,
प्रजातंत्र की हाट लगेगी .
भांति भांति की टोपी देखो .
वो पहने , जनता को पहनाएं ,
वो देखो! वो, खद्दर -धारी,
चकाचक है उसकी धोती ,
चलते फिरते ब्रैंड गाँधी के ,
सैकेंड हैण्ड गाँधी दिखतेहैं .
मत दो- मत दो ,हाथ जोड़ ,
गाँव -गली-चौराहे , फिरते है .
यूँ लगता है वर्षा ऋतू में ,
बिखर गए थे बीज ,नेता के,
जगह -जगह पौध उगी है ,
बस होनी है शेष रुपाई,
कुछ नेता तो जड़ पकड़ेंगे ,
कुछ उनके पिछलग्गू होंगे ,
जैनरिक खेती है ये भाई ,
काम किसी के कभी न आयी ,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,
कुर्सी ओ पद के चाटुकार ये
देश को खा- पी के जो बैठे ,
अब साधू बन के हैं आये .
कभी गरीब को खाना देते ,
कभी नैतिक पाठ पढ़ाते,
जनता बनी मानिनी देखो ,
गर्व से फूली नहीं समाती ,
अपने पत्ते मैं न खोलूं ,
वोट ही तो हाथ में मेरे ,
जिसपे चाहे मैं खरचूंगी ,
मत बन मानिनी भोली जनता ,
वोट नहीं तेरा अपना धन ,
ना -ना करते देना होगा ,
तरह- तरह की बोली लगेगी ,
नीलामी पे वोट है तेरा .!
जनता तू फिर बिक जायेगी ,
धर्म के नाम पे बंट जायेगी .
जातिवाद पे फंस जायेगी ,
वो चतुर हैं -वोटों के व्यापारी ,
म त दो -म त दो ,कहकर ,
ये नेता तुझ को बहका ही लेंगे .
और जीतने पे सब गायब ,
इक ही बात की देंगे दुहाही
हमने तो बस यही कहा था
,मत दे मत दे हम को म त दे ,
न हमको तुमने समझा .
मत दे कहने पे भी , दे डाला? ,
अब तो भुगतो अपनी करनी ,
हमें तो अपनी झोली भरनी.
पर अब जनता मुस्काती है .
राइट टू रिजेक्ट है हाथ में आया ,
मत को अब मै मत ही दूंगी ,
खर -पतवार.को साफ़ करुँगी .
चाहे कुछ भी देर लगेगी ,
कुछ अराजकताभी हो सकती है ,,
लोकतंत्र ये लोकतंत्र है ,
समाधान भीतर ही होता है ,
कुछ तो मौसम बदलेगा ही
कुछ तो मौसम बदलेगा ही ......
,
****************
होने लगा , मॉहौल चुनावी
नगर के सब गुंडे,जुआरी , शराबी ,
,पार्टी कार्य -कर्ता लगे हैं बनने
स्मगलर ,चोर बाजार के व्यापारी ,
गली गली घूमें, ले लोकतंत्र का झंडा .
म त दो -म त दो ,म त दो- म त दो ,
हमारी पार्टी को मत दो ,हमारी पार्टी को मत दो ,
फलां को मत दो ,फलां को मत दो ,
लोकतंत्र की बिछ गयी चौपड़ ,
प्रजातंत्र की हाट लगेगी .
भांति भांति की टोपी देखो .
वो पहने , जनता को पहनाएं ,
वो देखो! वो, खद्दर -धारी,
चकाचक है उसकी धोती ,
चलते फिरते ब्रैंड गाँधी के ,
सैकेंड हैण्ड गाँधी दिखतेहैं .
मत दो- मत दो ,हाथ जोड़ ,
गाँव -गली-चौराहे , फिरते है .
यूँ लगता है वर्षा ऋतू में ,
बिखर गए थे बीज ,नेता के,
जगह -जगह पौध उगी है ,
बस होनी है शेष रुपाई,
कुछ नेता तो जड़ पकड़ेंगे ,
कुछ उनके पिछलग्गू होंगे ,
जैनरिक खेती है ये भाई ,
काम किसी के कभी न आयी ,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,
कुर्सी ओ पद के चाटुकार ये
देश को खा- पी के जो बैठे ,
अब साधू बन के हैं आये .
कभी गरीब को खाना देते ,
कभी नैतिक पाठ पढ़ाते,
जनता बनी मानिनी देखो ,
गर्व से फूली नहीं समाती ,
अपने पत्ते मैं न खोलूं ,
वोट ही तो हाथ में मेरे ,
जिसपे चाहे मैं खरचूंगी ,
मत बन मानिनी भोली जनता ,
वोट नहीं तेरा अपना धन ,
ना -ना करते देना होगा ,
तरह- तरह की बोली लगेगी ,
नीलामी पे वोट है तेरा .!
जनता तू फिर बिक जायेगी ,
धर्म के नाम पे बंट जायेगी .
जातिवाद पे फंस जायेगी ,
वो चतुर हैं -वोटों के व्यापारी ,
म त दो -म त दो ,कहकर ,
ये नेता तुझ को बहका ही लेंगे .
और जीतने पे सब गायब ,
इक ही बात की देंगे दुहाही
हमने तो बस यही कहा था
,मत दे मत दे हम को म त दे ,
न हमको तुमने समझा .
मत दे कहने पे भी , दे डाला? ,
अब तो भुगतो अपनी करनी ,
हमें तो अपनी झोली भरनी.
पर अब जनता मुस्काती है .
राइट टू रिजेक्ट है हाथ में आया ,
मत को अब मै मत ही दूंगी ,
खर -पतवार.को साफ़ करुँगी .
चाहे कुछ भी देर लगेगी ,
कुछ अराजकताभी हो सकती है ,,
लोकतंत्र ये लोकतंत्र है ,
समाधान भीतर ही होता है ,
कुछ तो मौसम बदलेगा ही
कुछ तो मौसम बदलेगा ही ......
,