Saturday, 5 October 2013

तव च का किल न स्तुतिरम्बिके !
सकलशब्दमयी किल ते तनु: |
निखिलमुर्तिषु में भवद्न्वयो
मनसिजासु बहि:प्रसरासु च ||
इति विचिन्त्य शिवे !शमिता शिवे !
जगति जातमयत्नवसादिदम |
स्तुतिजपार्चनचिन्तन वर्जिता
न खलु काचन कालकलास्ती  में ||
 हे माँ !ये सारा संसार तेरा ही रूप है ,कण-कण में तू व्याप्त है ,जहाँ दृष्टि जाती है तेरा ही प्रकाश दृष्टिगोचर है ,वाणी में तू .चित्त मे तू ,मेरा रोम -रोम तेरी ही पूजा अर्चना हो ,मेरा प्रत्येक कार्य तुझे ही समर्पित होवे ............................................................
नवरात्रि ! माँ दुर्गा के नौ रूपों का स्मरण पूजन और चिन्तन . प्रकृति में ऊर्जा का प्रवाह .रामलीला का मंचन .व्रत, कथा,साक्षात् श्रधा की गंगा यमुना ही बहने लगती है ..........दुर्गा पूजन में माँ के नौ रूपों के साथ -साथ - यव बोनेका और यावान्कुर को पूजने का विधान है . ये यावंकुर चेतना के प्रतीक स्वरुप पूजे जाते हैं ,दानों को ताजा मिट्टी के बर्तनों में बोया जाता है ,वर्षा ऋतू के बाद कुम्हार की पहली बोनी -माँ को समर्पित .प्रथम नवरात्र को ही इन्हें बोया जाता है और तीसरे दिन यवान्कुरके दर्शन हो जाने चाहिये.पुराने ज़माने में वर्षा ऋतू समाप्त होने पे  लोग व्यापार के लिए प्रदेश को  निकलते थे . तो इन यवान्कुरों की बढ़ोतरी  व् प्रफुल्लता पर कार्य सिद्धि की परीक्षा होती थी .और सुरक्षा, सुधार और उपचार   के कदम भी उठाये जाते थे ,-------------
----''-अवृष्टिमकुरुते कृष्ण ,धूम्रामंकलहंतथा'' ,अर्थात काले अंकुर उगने पे उस वर्ष अनावृष्टि ,निर्धनता ;;धुएंके वर्ण वाले होने पे परिवार में कलह  ;न उगने पे जन नाश  मृत्यु ,कार्य -बाधा ;नीले रंग के होने पे दुर्भिक्ष और अकाल; .रक्त वर्णके होने पे रोग ,व्याधि ,शत्रु -भय ; हरे रंग की दुर्बा पुष्टि -वर्धक तथा लाभ-प्रद मानी जाती है ,;आधी हरी व् पीली दुर्बा होने पे पहले कार्य होगा पर बाद में हानि होगी ;श्वेत दुर्बा अत्यंत शुभ -फलदायक और शीघ्र लाभ का प्रतीक है .श्वेत दुर्बा पे कई तांत्रिक प्रयोग भी किये जाते हैं ;   इस तरह से इन यावान्कुरों को आने वाले दिनों के शुभाशुभ का पंचांग माना जाता था और उसी के अनुसार उपक्रम किये जाते थे . तब से अब तक  ये रीति यूँ ही चली आ रही है . घर -घर में जौ बोये जाते हैं , हरियाली प्रसन्नता और सृजन का सबब होती है,हम बचपन में  रामलीला के अंतिम दिन रामदरबार में सभी के लिए हरियाली की माला बना के ले जाते थे , राम लक्ष्मण को माला  पहनाने की ख़ुशी आज भी बयां नहीं की जा सकती है . .माँ सब का कल्याण करें .सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो और कन्या धन का संवर्धन और संरक्षण हो यही हमारा व्रत होना चाहिए ,.स्नेह और प्यार की प्रतिमा बन जाएँ हम यही हमारा व्रत होना चाहिए ,कर्मनिष्ठ ,अनुशासित जीवन जीयें , दृढ -व्रती ,त्यागी, परोपकारी, आस्थावान ,और चरित्रवान बने यही हो हमारा व्रत;
 आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि |
नैतच्छठत्वं मम भावयेथा: क्षुधात्रिषार्ता जननीं स्मरन्ति||
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मत्सम: पातकी नास्ति पापाघ्नी त्वत्समा न हि|
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरू ||
    पहले कभी माँ का स्मरण न किया हो ,उसकी स्तुति न की हो ,शठता का स्वभाव हो तो भी माँ की शरण में आने पे माँ स्वाभाव वश ही  बालक को क्षमा करदेती है .
  नवरात्रि का मूलमंत्र जब जागो तभी सवेरा .आओ माँ की शरणागती होओं. मंगल ही होगा .माँ दुर्गा सब की पीर हरें .सबपे कृपा करें ,देश और देश वासियों का कल्याण हो .सभीको नवरात्री की शुभकामनाएं ,---------------------------आभा


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