Friday, 16 January 2015

                    ''  सपना /हकीकत ''
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****सपना और हकीकत
एक -आसमां  एक  -जमीन



Tuesday, 13 January 2015


हास्य व्यंग ---- इसे हास्य व्यंग ही लिया जाए ---
आज टाइम्स नाव में डिवेड था किसी महाराज पे ,पहले भी ये डिवेड हो चुका है। गर्मागर्म बहस , हिन्दुओं से चार बच्चे करने को कह दिया ,मानो देश पे कोई पहाड़ टूट गया हो ,सुनामी या भूकम्प आ गया हो धरती डोलने लगी हो। अरे क्या हुआ कह दिया तो --कोई हिन्दू बात मान लेंगे क्या ? जो बहस में बैठे थे वो तो चार क्या अब एक भी पैदा करने लायक नहीं थे ऐंकर को मिला के और जिनके हाथों में बच्चे पैदा करके जनसंख्या बढ़ाने की बागडोर है वो माई के लाल एक ही पैदा कर लें वो भी माँ - बाप पे अहसान होता है , महाराज को कितना ही गरिया लो हिन्दू के बच्चों तुम इस चैलेंज को ले ही नहीं सकते। बच्चे कहते हैं, कोई कुत्ते बिल्ली हैं क्या जो --पैदा कर के दें, पालने भी पड़ते हैं। तो लाल्ले -लल्ली हमारे माँ बाप ने उनके माँ बाप ने और उनसे पहले सबने खूब सारे पैदा किये और तुम से अच्छी तरीके से पाले ,सब स्वस्थ थे मस्त थे ,सारे रिश्ते घर में ही मिल जाते थे। अब तो राखी बाँधने को भी मुहं बोले भाई- बहिन बनाने पड़ते हैं पहले गर्ल फ्रैंड -बॉय फ्रैंड बनाने से पहले भी सोचना पड़ता था ; कदी खानदानी न निकल आवे। माँ-बेटी ,सास -बहू के जापे साथ-साथ होते थे और देवरजी बेटे के बराबर ही होते थे उम्र में, छोटी मौसी हम उम्र ही होती थी। तीज त्यौहार में घर हरा - भरा रहता था अबतो , एक पूत या एक पूतनी का जमाना है ,वो भी लड़की यदि इकलौती औलाद है अपने माँ-बाप की तो, लड़के वाले तो ,लार ही टपकाते रह जाते हैं बच्चे को नाना-नानी हाइजैक कर लेते हैं ,कम से कम दो तीन हों तो दोनों परिवारों को प्यार लुटाने का मौका मिले। आप लोग भी सोच रहे होंगे ---क्या पुरानी सोच की महिला है --पर सोचिये --सोचिये दिमाग के घोड़े दौड़ाइये एक- एक बच्चे का आशीर्वाद क्या कभी हिन्दुओं में किसी ने भी दिया है ,सौभाग्यवती भव ,सौ पुत्रों की- माँ होओ ,ये तो सदियों का आशीष है कोई किसी महाराज ने थोड़े ही ईजाद किया है --भाई मैं भी अपनेसम्पर्क में आने वाले सभी बच्चों को जिनकी मैं माँ हूँ ,जिनकी मौसी हूँ ,जिनकी बुआ हूँ , कुछ की मामी हूँ ,कुछ की चाची हूँ ,कुछ की ताई हूँ जिनकी आंटी हूँ और जो छोटे भाई बने हैं मेरे यही आशीष दूंगी ,कम से कम ताऊ,चाचा ,बुआ मौसी तो घर में पैदा होने ही चाहियें ---ये मैं यूँ ही नहीं कह रही हूँ बचपन में एक कविता का मंचन किया था ,तब फैमिली प्लानिंग का बड़ा जोर था ----कविता किसकी है ये नहीं याद और पूरी भी नहीं याद उसे अपनी बुद्धि का तड़का लगा के पूरा कर लिया है ,ओरिजनल कवि से माफ़ी सहित कविता पेश है --
****हैल्लो हाय दादी अम्मा ,पां लागन नानी अम्मा !
हाय हाय क्या करे निगोड़ी ले आसीस तुझे दूँ चल दूधो न्हाओ पूतो फल मुझसे भी दस कदम निकल
मैंने केवल चार जने तेरह तेरे हों अपने
एक इलेवन दो एक्स्ट्रा इससे भी लो कम हो क्या ?
क्या कहती है ना ना ना ,तेरा और रहेगा क्या ?
सगर सुतों की महतारी ,गांधारी सौ से ना हारी
साठहजार नहीं होते लगते गंगा में गोते ?
बेटी गाँठ बाँध ले छोर ,जन्म मरण पे किसका जोर
जो प्रभु चोंच बनाता है ,चुग्गा वाही जुटाता है।
तू कर्तव्य निभाती जा जोत से जोत जगाती जा
दिन दिन तेरी बेल बढ़े ,घर से भर कर रेल चले
लल्लू खड़ा अगाडी हो कल्लू पड़ा पिछाड़ी हो ,
एक बगल में बैठ रहा ,एक खड़ा मुहं ऐंठ रहा
लगी एक को टट्टी हो बंधी एक के पट्टी हो
नाक एक की बहती हो देह एक की दहती हो
एक गोद में बैठा हो ,एक पेट में पैंठा हो।
मेरा भी इसमें लालच है ,मैं कुछ दिन और जी जाऊंगी
जब पोतों के पोते होंगे ,मैं सोने की सीढ़ी चढ़ जाउंगी
कोई तो ब्याह करेगा जल्दी ,कोई तो पड़पोता देगा
बस वो मुझे कंधा देगा मैं सीधी स्वर्ग को जाउंगी
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दादी अम्मा बस बस बस ,बंद करो अब यह बुढ भस ,
आई ऍम इंटरमीडिएट आई ऍम कीन वन और टू ज्यादा से ज्यादा तीन !
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अब तीन तो वो इंटरमीडिएट वाली थी ,उसने तो कोई हाय तोबा नहीं मचाई और अपनी इच्छा बता दी तो ये चैनल में बैठे , कम से कम ग्रेजुएट तो होते ही हैं ,एक महाराज की बात का ही बतंगड़ बना दिया भाई ,मत करो न पैदा चार ,एक भी मत करो ,कोई महाराज थोड़ेही पकड़ के बच्चा पैदा करवा रहे हैं जैसे पकड़ के फॅमिली प्लानिंग करवाई थी। महाराज ने चार कह दिया तो इतनी हाय तोबा क्यों भई। हमें भी पता है तुम एक भी पाल लो वही काफी है , और चैलेंज लेने का मादा तो अब किसी में भी है नहीं, सो बड़े बूढ़े भी ये बात जानते हैं सो आशीर्वाद ही सुखी और खुश रहने का देते हैं। इतना हंगामा मत बरपाओ भई , देश में और भी समस्यायें हैं और महाराज --एक तो जोगी दूसरे राजनेता ,उनके मुहं के बाप का क्या जाता है ,कुछ भी बोल गया ,हिन्दू अपने माँ-बाप देवी देवताओं को नहीं मानता है तो क्या इन जोगियों और माइयों की सुनेगा। पर बड़े- बूढ़ों दादा-दादियों ,नाना -नानियों एक बात तो बताओ क्या ,चार बच्चों वाले आशीर्वाद में तुम्हारी स्थिति मन-मन भावे मूँड़ हिलावे वाली नहीं हो रही है -सच -सच बोलना।। आभा।

Wednesday, 7 January 2015

 पूछते हो क्यूँ ? अरे भई फिर तो खुद ही उलझ जाता न ! जंगल में राम को बहुत दूर न ले जा पाता,,,फिर सीता -हरण भी न होता और सुंदर -कांड भी न होता ,,,सबसे बड़ी बात हम कलयुग वासियों के संबल हनुमानजी भी न होते तो जब हम डरते तो क्या करते ?और .....बूढ़ भये ,बलि ,मेरिहि बार ,की हारि परे बहुते नत पाले || ....किसे उलाहना देते ... हर घटना की और हर पात्र की अपनी एक अहमियत है तो शायद मैं जो ये अपने को बारहसींगा समझने लगी हूँ इसकी भी कोई न कोई अहमियत तो होगी ही .....पर काश मैं सोने का मृग होती ..इतने सारे सींगों पे उग -आयीं आँखें और दिमाग ओरिजनल पे भारी तो न पड़ते . कुछ नहीं बस सर पे थोडा सा दर्द था .....आभा .........
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न जाने क्यूँ मुझे लग रहा है मैं बारहसींगा बन गयी हूँ ....कई सारे सींग सर पे एक -साथ उग आये है . कितने सींग,और हर एक के सिरे पे एक दिमाग और उतनी ही आँखें ...कई उलझनों को एक साथ सुलझाता दिमाग और लक्ष्य को देखती आँखें...परेशानियां आदमी को बारहसींगा ही बना देता हैं .. परेशानी के जंगल में भटकते हुए कहीं से भी असावधानी हुई तो दुर्घटना घटी यानी उलझ जाओ बेचारे बारहसींगा के सींगों की मानिंद उलझनों के जंगल में .... मारीच विद्वान् था शायद इसी लिए सोनेका बारहसींगा नहीं बना ! क्या पूछते हो क्यूँ ? अरे भई फिर तो खुद ही उलझ जाता न ! जंगल में राम को बहुत दूर न ले जा पाता,,,फिर सीता -हरण भी न होता और सुंदर -कांड भी न होता ,,,सबसे बड़ी बात हम कलयुग वासियों के संबल हनुमानजी भी न होते तो जब हम डरते तो क्या करते ?और .....बूढ़ भये ,बलि ,मेरिहि बार ,की हारि परे बहुते नत पाले || ....किसे उलाहना देते ... हर घटना की और हर पात्र की अपनी एक अहमियत है तो शायद मैं जो ये अपने को बारहसींगा समझने लगी हूँ इसकी भी कोई न कोई अहमियत तो होगी ही .....पर काश मैं सोने का मृग होती ..इतने सारे सींगों पे उग -आयीं आँखें और दिमाग ओरिजनल पे भारी तो न पड़ते . कुछ नहीं बस सर पे थोडा सा दर्द था .....आभा ........i

Monday, 5 January 2015

      ''  चेतन जिसको कहते हैं हम जड़ में ही वो सोता है ''
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 ऐ !काश मैं जड़ हो जाऊं !चेतना हो लुप्त जाए
अवसाद चिंता मोह दुःख से मुक्त मन
             मैं रह अतल  में ;
        भू राग का उत्सव  मनाऊँ
          ऐ ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
नीचे धरा के  ,संग सिया  का
धूप - छाँव औ पवन पी के
  महक माटी की बिखेरूं -
तिमिर का मैं राग गाउँ ,
  ऐ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
वास हो ऊपर धरा के -
बाहों में झूलूँ झूलना
बरगद औ  पीपल की ही मैं
देना ही हो बस  ध्येय मेरा
रह अतल  मेँ  निम्नतल  में
 नित प्राण संतति पे मैं वारूँ
मुक्ति का मैं  राग  गाऊँ ,
ऐ काश मैं जड़ हो जाऊँ।।आभा।। abha