Monday, 5 January 2015

      ''  चेतन जिसको कहते हैं हम जड़ में ही वो सोता है ''
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 ऐ !काश मैं जड़ हो जाऊं !चेतना हो लुप्त जाए
अवसाद चिंता मोह दुःख से मुक्त मन
             मैं रह अतल  में ;
        भू राग का उत्सव  मनाऊँ
          ऐ ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
नीचे धरा के  ,संग सिया  का
धूप - छाँव औ पवन पी के
  महक माटी की बिखेरूं -
तिमिर का मैं राग गाउँ ,
  ऐ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
वास हो ऊपर धरा के -
बाहों में झूलूँ झूलना
बरगद औ  पीपल की ही मैं
देना ही हो बस  ध्येय मेरा
रह अतल  मेँ  निम्नतल  में
 नित प्राण संतति पे मैं वारूँ
मुक्ति का मैं  राग  गाऊँ ,
ऐ काश मैं जड़ हो जाऊँ।।आभा।। abha

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