'' चेतन जिसको कहते हैं हम जड़ में ही वो सोता है ''
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ऐ !काश मैं जड़ हो जाऊं !चेतना हो लुप्त जाए
अवसाद चिंता मोह दुःख से मुक्त मन
मैं रह अतल में ;
भू राग का उत्सव मनाऊँ
ऐ ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
नीचे धरा के ,संग सिया का
धूप - छाँव औ पवन पी के
महक माटी की बिखेरूं -
तिमिर का मैं राग गाउँ ,
ऐ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
वास हो ऊपर धरा के -
बाहों में झूलूँ झूलना
बरगद औ पीपल की ही मैं
देना ही हो बस ध्येय मेरा
रह अतल मेँ निम्नतल में
नित प्राण संतति पे मैं वारूँ
मुक्ति का मैं राग गाऊँ ,
ऐ काश मैं जड़ हो जाऊँ।।आभा।। abha
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ऐ !काश मैं जड़ हो जाऊं !चेतना हो लुप्त जाए
अवसाद चिंता मोह दुःख से मुक्त मन
मैं रह अतल में ;
भू राग का उत्सव मनाऊँ
ऐ ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
नीचे धरा के ,संग सिया का
धूप - छाँव औ पवन पी के
महक माटी की बिखेरूं -
तिमिर का मैं राग गाउँ ,
ऐ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
वास हो ऊपर धरा के -
बाहों में झूलूँ झूलना
बरगद औ पीपल की ही मैं
देना ही हो बस ध्येय मेरा
रह अतल मेँ निम्नतल में
नित प्राण संतति पे मैं वारूँ
मुक्ति का मैं राग गाऊँ ,
ऐ काश मैं जड़ हो जाऊँ।।आभा।। abha
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