पूछते हो क्यूँ ? अरे भई फिर तो खुद ही उलझ जाता न ! जंगल में राम को बहुत दूर न ले जा पाता,,,फिर सीता -हरण भी न होता और सुंदर -कांड भी न होता ,,,सबसे बड़ी बात हम कलयुग वासियों के संबल हनुमानजी भी न होते तो जब हम डरते तो क्या करते ?और .....बूढ़ भये ,बलि ,मेरिहि बार ,की हारि परे बहुते नत पाले || ....किसे उलाहना देते ... हर घटना की और हर पात्र की अपनी एक अहमियत है तो शायद मैं जो ये अपने को बारहसींगा समझने लगी हूँ इसकी भी कोई न कोई अहमियत तो होगी ही .....पर काश मैं सोने का मृग होती ..इतने सारे सींगों पे उग -आयीं आँखें और दिमाग ओरिजनल पे भारी तो न पड़ते . कुछ नहीं बस सर पे थोडा सा दर्द था .....आभा .........
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