Monday, 13 April 2015

       ''  शब्द पहचान मेरी ''
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अक्षरों की बूंदाबांदी ,
शब्दों के ओले ,
उजलापन शब्दों का ,
झरा  वाक्यों का झरना।
जो हैं हम ,
वही तो झरेंगे ,
मन आसमां में  है ,
वही  रंग बिखेरेगा।
शब्दों का झरना ,
मधुर ,शीतल फुहारें ,
झंकृत कर दे प्राण ,
भिगोये  तन -मन ,
सृजता हरियाली ,
      ,अथवा ,
गंदला बरसाती दरिया ,
वेग से  उमड़ा ,
 बह चला,दिशा हीन  ,
तोड़ता तट-बंध ,
लट्ठों -पत्थरों संग ,
  कठोर !शब्दों का वेग
सब बहाने को आतुर ,
दूरी बढ़ाता दो किनारों की ,
तोड़ दे  दृढ सेतु  को भी।
एक उजाड़े  दहशत दे ,
एक मन प्रांगण का
अंतर भिगो, पुलक दे  ,
हरियाली दे ,आनंद दे।
अक्षरों की बूंदा-बांदी तो वही
शब्द हमें चुनने हैं ,
वाक्य हमें बनाने हैं ,
बनाएंगे तो वही न ,
जो अंतर में होगा।।



यादों के जंगल में --उपवन बनाना ,मुश्किल होता है खुद को पाना।।आभा।।






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