माता च पार्वती देवो पिता देवो महेश्वर: ----
देवाधिदेव महादेव ,जिनकी रामजी भी आराधना करतेहैं ----दीन ,हीन ,अक्षम ,और समाज के अशुभ ,अपशकुनी ,चर- अचर को भी अपनी शरण में लेने वाले ,विश्व के हित हेतु गरल पान करने वाले ,सर्पों को ,और कलंकित चन्द्रमा को भी अपना आभूषण बना पूजनीय बनाने वाले , भक्ति की पराकाष्ठा --सती ने राम की परीक्षा के लिये सीता रूप धरा तो उन्हें माँ सामान मान समाधि में चले गए ,प्रेम की पराकाष्ठा ---सती ने दक्ष के हवन कुण्ड में प्राणों की आहुति दी तो उसके शरीर को लेके ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाने लगे -- भोले भंडारी ---अनेकों वर , भक्त की भक्ति से प्रसन्न होके दे देते हैं --रावण , भस्मासुर और अनेकों उदाहरण -- मित्रता की पराकाष्ठा --राम कृष्ण के साथ सदैव रूद्र रूप में रहे --कल्याण हेतु गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण करने वाले ,लोभ ,मोह मद ,काम क्रोध से परे - कल्याणकारी देवता परम पिता --क्या कभी संहारक हो सकता है ? इंसान के रूप में जो पिता है जब वो अपनी संतानो के लिये बुरा नहीं कर सकता --वरन इस धरती का पिता कई बार अपने बच्चों की भलाई के लिए सारी बुराई -सारे कलंक अपने सर ले लेता है --तो क्या कारण है की हम किसी भी शिव धाम में आपदा आने पे उसे शिव तांडव का नाम देदेते हैं --शिव तो गुरु हैं --वो हर विधा के ज्ञाता है --तांडव भी नृत्य की एक विधा है न कि विनाश का द्योतक। शिव पूर्ण काम हैं। उनका तीसरा नेत्र उनकी दूर दृष्टि है न की भस्म करने का आयुध ----शिव क्रुद्ध हो ही नहीं सकते।
ये तो प्राकृतिक आपदाएं हैं। प्रकृति हमें देती है पर वो किसी एक की नहीं है वो निर्लिप्त है। जब हम रहने के साधारण नियम भूल के प्रकृति के निष्ठुर और निर्लज्ज दोहन पे उतर आते हैं तो इस तरह की आपदाएं आती हैं।
केदारनाथ की आपदा --जहां प्रकृति ने ५० जन के रहने लायक जगह दी वहां ५०० तो मजदूर और खच्चर ही पहुंच गए और स्थानीय निवासी - पर्यटकों का बोझ भी। जहाँ कुछ अदद घर होने चाहिए थे वो भी काष्ठ के या झोपड़ीनुमा या फिर टेंट, वहां हमने हर पहाड़ी ढलान पे कंक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया --ऊपर से गंदगी का अम्बार और निर्लज्जता इतनी कि हम नदी के मुहाने तक बस्ती बनाते चले गए --नतीजा अपने ही लालच में खूबसूरती पे बदनुमा दाग लगा बैठे और अपना ही जन धन का नुकसान कर बैठे और हमने बाबा केदार का क्रोध कह के पल्ला झाड़ लिया।
कश्मीर की आपदा --जो शहर झीलों के शहर के नाम से ही जाना जाता है -कहते हैं कश्यप ऋषि ने बहुत सोच समझ के इसकी कुछ झीलों को सुखाया था और कुछ के मुहानों को दूसरी झीलों औ
र नदियों की और मोड़ दिया था----- हमने उन उसकी झीलों को पाट के संकरा कर दिया और -+जमीन पे कब्जा --झीलों ,नदियों का रकबा कम कर वहां मकान --गंदगी ,शहरीकरण --बेतरतीब
फैलाव प्रकृति का निर्लज्ज दोहन नदियों के मुहाने तक घर और गंदगी --नतीजा बारिश में जल प्रलय और दोष भोले बाबा अमरनाथ जी पे !
नेपाल तो आता ही भूकम्प पट्टी पे है , पहले भी विनाश कारी भूकम्प आये हैं वहां पे --पर पर्यटन उद्योग की मोहमयी छलना और बरसते सिक्कों की झंकार के बीच सरकारें इन खतरों को भुला देती हैं --हर पहाड़ी ढलान पेहोटल वो भी नियमों को ताक पे रख के -- जहां आबादी विरल और घर एक विशेष तकनीक से बने होने चाहियें वहां कंक्रीट के जंगल और गंदगी और दोष शिवपर --पशुपतिनाथ जी क्रोधित हुए --बार बार पिता को दोष देना -जन्मजन्मांतर के लिये पापों की गठरी बाँध लेना होता है।
और अंत में हमारे प्राचीन शिवालय हों ,देवीके धाम हो ,या राधाकृष्ण ,राम ,विष्णु धाम हों ,जितने भी तीर्थ हैं प्राचीन ,वो सब विशेष चुंबकीय विधुत तरंगीय क्षेत्रोंमें विशेष वास्तु तकनीक से निर्मित हैं --आप किसी भी तीर्थ पे जाइए --कितने ही थके हो ,तीर्थ के पुण्य क्षेत्र के स्पर्श मात्र से ही आप नयी ऊर्जा से भर जाते हैं। वहां पे जाने के कुछ नियम हैं कुछ वर्जनायें हैं, इन्हें हमें मानना ही होगा -देवता तो आपको अपनी शरण में ले ही लेगा वो माँ है वो पिता है पर उस क्षेत्र विशेष में जो अदृश्य तार बाड़ है , वहां जो विधुत -चुंबकीय तरंगें हैं वो ,वो तो अपना असर दिखाएंगी ही।
दुर्गम साधनविहीन,कठिन परिस्थियों में रहने से ऊब चुके जन मानस को उबारने के लिए सरकारों को पहल करनी होगी --ताकि पर्यटन से होने वाली आमदनी के लालच में तीर्थों के ये प्रहरी अपने को ही न छलें। प्रकृति का निष्ठुर और निर्लज्ज दोहन रोकना ही होगा --इसे भोले भंडारी का कोप कहके कल्याणकारी शिव को बदनाम न किया जाए आभा
देवाधिदेव महादेव ,जिनकी रामजी भी आराधना करतेहैं ----दीन ,हीन ,अक्षम ,और समाज के अशुभ ,अपशकुनी ,चर- अचर को भी अपनी शरण में लेने वाले ,विश्व के हित हेतु गरल पान करने वाले ,सर्पों को ,और कलंकित चन्द्रमा को भी अपना आभूषण बना पूजनीय बनाने वाले , भक्ति की पराकाष्ठा --सती ने राम की परीक्षा के लिये सीता रूप धरा तो उन्हें माँ सामान मान समाधि में चले गए ,प्रेम की पराकाष्ठा ---सती ने दक्ष के हवन कुण्ड में प्राणों की आहुति दी तो उसके शरीर को लेके ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाने लगे -- भोले भंडारी ---अनेकों वर , भक्त की भक्ति से प्रसन्न होके दे देते हैं --रावण , भस्मासुर और अनेकों उदाहरण -- मित्रता की पराकाष्ठा --राम कृष्ण के साथ सदैव रूद्र रूप में रहे --कल्याण हेतु गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण करने वाले ,लोभ ,मोह मद ,काम क्रोध से परे - कल्याणकारी देवता परम पिता --क्या कभी संहारक हो सकता है ? इंसान के रूप में जो पिता है जब वो अपनी संतानो के लिये बुरा नहीं कर सकता --वरन इस धरती का पिता कई बार अपने बच्चों की भलाई के लिए सारी बुराई -सारे कलंक अपने सर ले लेता है --तो क्या कारण है की हम किसी भी शिव धाम में आपदा आने पे उसे शिव तांडव का नाम देदेते हैं --शिव तो गुरु हैं --वो हर विधा के ज्ञाता है --तांडव भी नृत्य की एक विधा है न कि विनाश का द्योतक। शिव पूर्ण काम हैं। उनका तीसरा नेत्र उनकी दूर दृष्टि है न की भस्म करने का आयुध ----शिव क्रुद्ध हो ही नहीं सकते।
ये तो प्राकृतिक आपदाएं हैं। प्रकृति हमें देती है पर वो किसी एक की नहीं है वो निर्लिप्त है। जब हम रहने के साधारण नियम भूल के प्रकृति के निष्ठुर और निर्लज्ज दोहन पे उतर आते हैं तो इस तरह की आपदाएं आती हैं।
केदारनाथ की आपदा --जहां प्रकृति ने ५० जन के रहने लायक जगह दी वहां ५०० तो मजदूर और खच्चर ही पहुंच गए और स्थानीय निवासी - पर्यटकों का बोझ भी। जहाँ कुछ अदद घर होने चाहिए थे वो भी काष्ठ के या झोपड़ीनुमा या फिर टेंट, वहां हमने हर पहाड़ी ढलान पे कंक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया --ऊपर से गंदगी का अम्बार और निर्लज्जता इतनी कि हम नदी के मुहाने तक बस्ती बनाते चले गए --नतीजा अपने ही लालच में खूबसूरती पे बदनुमा दाग लगा बैठे और अपना ही जन धन का नुकसान कर बैठे और हमने बाबा केदार का क्रोध कह के पल्ला झाड़ लिया।
कश्मीर की आपदा --जो शहर झीलों के शहर के नाम से ही जाना जाता है -कहते हैं कश्यप ऋषि ने बहुत सोच समझ के इसकी कुछ झीलों को सुखाया था और कुछ के मुहानों को दूसरी झीलों औ
र नदियों की और मोड़ दिया था----- हमने उन उसकी झीलों को पाट के संकरा कर दिया और -+जमीन पे कब्जा --झीलों ,नदियों का रकबा कम कर वहां मकान --गंदगी ,शहरीकरण --बेतरतीब
फैलाव प्रकृति का निर्लज्ज दोहन नदियों के मुहाने तक घर और गंदगी --नतीजा बारिश में जल प्रलय और दोष भोले बाबा अमरनाथ जी पे !
नेपाल तो आता ही भूकम्प पट्टी पे है , पहले भी विनाश कारी भूकम्प आये हैं वहां पे --पर पर्यटन उद्योग की मोहमयी छलना और बरसते सिक्कों की झंकार के बीच सरकारें इन खतरों को भुला देती हैं --हर पहाड़ी ढलान पेहोटल वो भी नियमों को ताक पे रख के -- जहां आबादी विरल और घर एक विशेष तकनीक से बने होने चाहियें वहां कंक्रीट के जंगल और गंदगी और दोष शिवपर --पशुपतिनाथ जी क्रोधित हुए --बार बार पिता को दोष देना -जन्मजन्मांतर के लिये पापों की गठरी बाँध लेना होता है।
और अंत में हमारे प्राचीन शिवालय हों ,देवीके धाम हो ,या राधाकृष्ण ,राम ,विष्णु धाम हों ,जितने भी तीर्थ हैं प्राचीन ,वो सब विशेष चुंबकीय विधुत तरंगीय क्षेत्रोंमें विशेष वास्तु तकनीक से निर्मित हैं --आप किसी भी तीर्थ पे जाइए --कितने ही थके हो ,तीर्थ के पुण्य क्षेत्र के स्पर्श मात्र से ही आप नयी ऊर्जा से भर जाते हैं। वहां पे जाने के कुछ नियम हैं कुछ वर्जनायें हैं, इन्हें हमें मानना ही होगा -देवता तो आपको अपनी शरण में ले ही लेगा वो माँ है वो पिता है पर उस क्षेत्र विशेष में जो अदृश्य तार बाड़ है , वहां जो विधुत -चुंबकीय तरंगें हैं वो ,वो तो अपना असर दिखाएंगी ही।
दुर्गम साधनविहीन,कठिन परिस्थियों में रहने से ऊब चुके जन मानस को उबारने के लिए सरकारों को पहल करनी होगी --ताकि पर्यटन से होने वाली आमदनी के लालच में तीर्थों के ये प्रहरी अपने को ही न छलें। प्रकृति का निष्ठुर और निर्लज्ज दोहन रोकना ही होगा --इसे भोले भंडारी का कोप कहके कल्याणकारी शिव को बदनाम न किया जाए आभा
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