मानस और आधुनिक कवियों के काव्य से --''रामके वन प्रदेश में जाने का मंतव्य ''-
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वन प्रदेश में राम का आगमन --यानि जड़ से चेतन की ओर ------
रामजी ने त्रेता युग में हमें संदेश दिया राजनीती का ,कूटनीति का --शत्रु यदि अराजक है ,सबल है ,संख्या बल में अधिक है ,तो धैर्य से काम लो। रणनीति ऐसी बनाओ जिसकी आड़ में तुम शत्रु के ठिकाने तक भी पहुंच जाओ और उसे भान भी न हो --इसी रणनीति के तहत ,विश्वामित्र ने राम लक्ष्मण को शिक्षा देके आयुध विद्या में पारंगत किया ,और भी कई विद्याएँ सिखाईं तथा वन में ताड़का आदि पे उस विद्या का सफल प्रयोग भी किया। राजा जनक से मैत्री [राजा जनक से एक बार शिवजी के दरबार में वेदांत - शास्त्रार्थ में रावण हार चुका था तो ये मैत्री रावण को मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए कारगर थी ,फिर जनक एक शक्तिशाली राजा भी थे] परशुराम से मैत्री --[परशुराम विश्वामित्र सरीखे ही आयुध विद्या में निपुण थे ]की तथा इसी नीति के तहत वनवास हुआ।वन में रामजी ने सभी ऋषिमुनियों और जनजातियों को अभय किया ,अपने पराक्रम से। रावण जो पंचवटी तक घुस आया था और उसने मारीच ,खर-दूषण ,शूर्पणखा के अधीन चौकियां और आतंकवादी अड्डे स्थापित किये हुए थे ,उन्हें ध्वस्त किया ,बाकी सभी आतताइयों को मार गिराया बस शूर्पणखा को छोड़ दिया ताकि वो राम की आहट व् शक्ति का सन्देश रावण को पहुंचा सके। माँ सीता ने वनवासिनियों को कुटीर उद्योगों में लगाया तथा स्वयं की रक्षा की शिक्षा भी दी ---
'' ऊन कात सीता माता ने कपड़े बना लिए थे ,
रुई और रेशम से सुंदर कुर्ते कई सीए थे। । ''
सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है। उसने वनवासियों को उन्नत कृषि के तरीके बताये जिससे उनकी आर्थिकी समुन्नत हुई और जंगल-जंगल ,ग्राम-ग्राम सम्पन्नता छा गयी।
''सीता कृषि है जो भी चाहो वह सब माँ से लेलो।
माथा टेक मांगने वालों -धन निज हाथों से ले लो।। ''
जिससे वनवासियों का आत्मसम्मान बढ़ा।
साथ ही राम -लखन ने छोटी -छोटी नदियों पे बाँध बनाके -उसके जल के बहुविध उपयोग से वनवासियों के जीवन को उन्नत किया ---राम कह रहे हैं ---
''देखो कैसा स्वच्छंद यहां लघु नद है।
इसको भी पुर में लोग बाँध लेते हैं ,
हाँ ! वे इसका उपयोग बढ़ा देते हैं ''---
शत्रु से लड़ने की नीति रीती ;जैसा शत्रु वैसी नीति। बाली रावण का मित्र था तो उसे मार गिराया , सुग्रीव से मित्रता ,लंका में हनुमान को जासूसी करने भेजा और अपना बल दिखाने का भी निर्देश --हनुमान का विभीषण को अपने पक्ष में करना ,और विभीषण का लाव लश्कर के साथ राम की सेना में आ मिलना। हालाँकि कतिपय जगहों पे विभीषण का अंतर्द्वन्द भी दिखाई देता है
''कल
जब हम नही केवल
वृद्ध ठंडी शिला सा
इतिहास होगा।
जब हमारे तर्क तक मर जाएंगे ,
तब
हमें क्या कहकर पुकारा जाएगा ?
राष्ट्र संकट के समय मैं
मैं आक्रमण के साथ था ,
राज्य पाने के लिए ------[संशय की एक रात ]---
----साथ ही रावण के कुल गुरु --[रावण के प्रपितामह को माँ पार्वती ने पाला था --वो शिव का धर्म पुत्र था ,इस नाते शिव रावण के मुहंबोले पड़ दादा भी थे ] शंकरजी की आराधना -पूजा ,अभियान से पहले उनका आह्वान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना ये रामजी के सफल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ होने के लक्षण थे। सागर के एक तरफ रावण की लंका थी दूसरी और सागर का राज्य था ,उसे भी साम-दाम दंड भेद से अपनी तरफ करके सहायता के लिए तैयार किया और राम सेतु बनवाया।ऐसी ही कई कूटनिक चालें हैं जो रामजी का चतुर और प्रखर राजनीतिज्ञ होना दर्शाती हैं --ये राम चरित्र को गंभीरता से पढ़ने और मनन करने से ही अनुभव होगा।
रावण शक्तिशाली शत्रु था ,उसने एक बार कौशल के राजा को मार के कौशल पे अधिकार भी जमाया था। अत: उसको पराजित करने के लिए राम को अपनी नीति बनाने के लिए समय चाहिए था ---वो उन्हें चौदह वर्ष के वनवास के रूप में मिला , इस नीति को बनाने में उनके साथ कैकई और सीता भी शामिल थीं। उन्होंने नीति ऐसी बनाई ताकि रावण वन प्रदेश में ही उलझा रहे और उधर अयोध्या में दोनों भाई निष्कंटक राज कर सकें।
------------आज भी रामचरित मानस से देश के नीतिनियन्ता लाभ उठा सकते हैं ,एक सन्देश तो स्पष्ट ही है ----पूरी तैयारी के साथ शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो। घरमे घुस के भारत ने बंगलादेश के समय मारा पर नेस्तनाबूत न कर पाया ---अब समय है --और रामजी का आदेश भी शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो ---बस यूँ ही साकेत और संशय की एक रात को उलट - पलट रही थी तो लिखने का मन हो आया ----
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वन प्रदेश में राम का आगमन --यानि जड़ से चेतन की ओर ------
रामजी ने त्रेता युग में हमें संदेश दिया राजनीती का ,कूटनीति का --शत्रु यदि अराजक है ,सबल है ,संख्या बल में अधिक है ,तो धैर्य से काम लो। रणनीति ऐसी बनाओ जिसकी आड़ में तुम शत्रु के ठिकाने तक भी पहुंच जाओ और उसे भान भी न हो --इसी रणनीति के तहत ,विश्वामित्र ने राम लक्ष्मण को शिक्षा देके आयुध विद्या में पारंगत किया ,और भी कई विद्याएँ सिखाईं तथा वन में ताड़का आदि पे उस विद्या का सफल प्रयोग भी किया। राजा जनक से मैत्री [राजा जनक से एक बार शिवजी के दरबार में वेदांत - शास्त्रार्थ में रावण हार चुका था तो ये मैत्री रावण को मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए कारगर थी ,फिर जनक एक शक्तिशाली राजा भी थे] परशुराम से मैत्री --[परशुराम विश्वामित्र सरीखे ही आयुध विद्या में निपुण थे ]की तथा इसी नीति के तहत वनवास हुआ।वन में रामजी ने सभी ऋषिमुनियों और जनजातियों को अभय किया ,अपने पराक्रम से। रावण जो पंचवटी तक घुस आया था और उसने मारीच ,खर-दूषण ,शूर्पणखा के अधीन चौकियां और आतंकवादी अड्डे स्थापित किये हुए थे ,उन्हें ध्वस्त किया ,बाकी सभी आतताइयों को मार गिराया बस शूर्पणखा को छोड़ दिया ताकि वो राम की आहट व् शक्ति का सन्देश रावण को पहुंचा सके। माँ सीता ने वनवासिनियों को कुटीर उद्योगों में लगाया तथा स्वयं की रक्षा की शिक्षा भी दी ---
'' ऊन कात सीता माता ने कपड़े बना लिए थे ,
रुई और रेशम से सुंदर कुर्ते कई सीए थे। । ''
सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है। उसने वनवासियों को उन्नत कृषि के तरीके बताये जिससे उनकी आर्थिकी समुन्नत हुई और जंगल-जंगल ,ग्राम-ग्राम सम्पन्नता छा गयी।
''सीता कृषि है जो भी चाहो वह सब माँ से लेलो।
माथा टेक मांगने वालों -धन निज हाथों से ले लो।। ''
जिससे वनवासियों का आत्मसम्मान बढ़ा।
साथ ही राम -लखन ने छोटी -छोटी नदियों पे बाँध बनाके -उसके जल के बहुविध उपयोग से वनवासियों के जीवन को उन्नत किया ---राम कह रहे हैं ---
''देखो कैसा स्वच्छंद यहां लघु नद है।
इसको भी पुर में लोग बाँध लेते हैं ,
हाँ ! वे इसका उपयोग बढ़ा देते हैं ''---
शत्रु से लड़ने की नीति रीती ;जैसा शत्रु वैसी नीति। बाली रावण का मित्र था तो उसे मार गिराया , सुग्रीव से मित्रता ,लंका में हनुमान को जासूसी करने भेजा और अपना बल दिखाने का भी निर्देश --हनुमान का विभीषण को अपने पक्ष में करना ,और विभीषण का लाव लश्कर के साथ राम की सेना में आ मिलना। हालाँकि कतिपय जगहों पे विभीषण का अंतर्द्वन्द भी दिखाई देता है
''कल
जब हम नही केवल
वृद्ध ठंडी शिला सा
इतिहास होगा।
जब हमारे तर्क तक मर जाएंगे ,
तब
हमें क्या कहकर पुकारा जाएगा ?
राष्ट्र संकट के समय मैं
मैं आक्रमण के साथ था ,
राज्य पाने के लिए ------[संशय की एक रात ]---
----साथ ही रावण के कुल गुरु --[रावण के प्रपितामह को माँ पार्वती ने पाला था --वो शिव का धर्म पुत्र था ,इस नाते शिव रावण के मुहंबोले पड़ दादा भी थे ] शंकरजी की आराधना -पूजा ,अभियान से पहले उनका आह्वान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना ये रामजी के सफल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ होने के लक्षण थे। सागर के एक तरफ रावण की लंका थी दूसरी और सागर का राज्य था ,उसे भी साम-दाम दंड भेद से अपनी तरफ करके सहायता के लिए तैयार किया और राम सेतु बनवाया।ऐसी ही कई कूटनिक चालें हैं जो रामजी का चतुर और प्रखर राजनीतिज्ञ होना दर्शाती हैं --ये राम चरित्र को गंभीरता से पढ़ने और मनन करने से ही अनुभव होगा।
रावण शक्तिशाली शत्रु था ,उसने एक बार कौशल के राजा को मार के कौशल पे अधिकार भी जमाया था। अत: उसको पराजित करने के लिए राम को अपनी नीति बनाने के लिए समय चाहिए था ---वो उन्हें चौदह वर्ष के वनवास के रूप में मिला , इस नीति को बनाने में उनके साथ कैकई और सीता भी शामिल थीं। उन्होंने नीति ऐसी बनाई ताकि रावण वन प्रदेश में ही उलझा रहे और उधर अयोध्या में दोनों भाई निष्कंटक राज कर सकें।
------------आज भी रामचरित मानस से देश के नीतिनियन्ता लाभ उठा सकते हैं ,एक सन्देश तो स्पष्ट ही है ----पूरी तैयारी के साथ शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो। घरमे घुस के भारत ने बंगलादेश के समय मारा पर नेस्तनाबूत न कर पाया ---अब समय है --और रामजी का आदेश भी शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो ---बस यूँ ही साकेत और संशय की एक रात को उलट - पलट रही थी तो लिखने का मन हो आया ----
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