Monday, 10 August 2015

              '' मैं लहर सागर की ''
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हाँ ! हो मुझमे तुम ;
सदैव से रहे हो
पहले भी थे जब,हम मिले न थे ,
हो आज भी -
जब तुम नहीं हो !
हो- शामिल; मुझमे ,
मेरे हर हिस्से में -
अपने कुछ न कुछ हिस्से के साथ।
देखा था तुमने पहली बार
रख दी थी ,अपने हिस्से की शर्म -
मेरी पलकों में ;
आज भी पलकें  झुकी  हैं  उसी  भार से ,
मेरी शर्म में ,हिस्सा है तुम्हारा।
सर्दियों में तुम्हें लगती थी जब ठंड -
धूप सेकते हुए ; अपने हिस्से की धूप -
दे दी थी मैंने तुम्हें ;
आज भी ! मैं ,धूप में नहीं बैठ पाती हूँ।
सारा प्यार अपने हिस्से का -
दे दिया मुझे -भर दी मेरी झोली ;
रीते ही चले गए 'तुम '
मेरे हिस्से आ गया -
सारा प्यार तुम्हारे हिस्से का।
वो सुर तुम्हारे -
जब भी गाते थे तुम ,
मैं चुरा लेती थी आवाज का रस -
अपने हिस्से का ,
आज मेरी मिठास में
है वही चोरी वाला हिस्सा।
हर नैया का सागर में हिस्सा ,
हर ख़्वाब का सपनों में हिस्सा ,
लहर ढूंढती अपना साहिल ,
राही का मंजिल में हिस्सा ,
चमन में  बुलबुल  का हिस्सा ,
फूल में सुगन्धि का हिस्सा -
आसमां में हर तारे का हिस्सा।
मेरा हिस्सा आसमान में -
तुम ही तय करके रखना ,
जब मैं आऊँ तुम से मिलने
बाजू वाला हिस्सा देना।
तुम मेरे ही हिस्से हो
तब भी जब तुम पास थे मेरे
अब भी जब तुम पास नहीं हो।
हां मेरे जीवन का हिस्सा
 टूट गया या  खो गया जो
पर फिर क्यों नहीं अधूरी ?
शायद !
हम दोनों हैं इक दूजे का हिस्सा।<><><>आभा <><><>

































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