Friday, 27 January 2017

हवन प्राण से  प्राणों का ''-एक और अमावस --मौन अहसासों का सागर ----
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ऊपर वाले तेरी छतरी के नीचे ,
क्यूँ जन्मों के -
प्रणय-प्यार के बन्धन टूटे ?
जन्मों से जन्मों तक कसमे
सूखी आँखें सागर महसूसें
अधरों पे अहसास प्रणय का
जीवन अमावसों की गठरी
सच सपने मन की बाहों में
प्राण मुखर, हाँ ना की दुविधा
कर्म भाग्य की परिधि सीमित
बरखा बून्दें   लड़ियां  साँसें
टूट -टूट धरती  पे बिखरें
सागर की लहरों सी मचलें
वो लज्जा, वो संकोच पलों का
मिलन !या - मिलने की चाहत ?
कभी तीर  पे वो होता है -
या ;  खड़ी तीर ''मैं'' नापूं दूरी
गूँगे पल , प्राण  पियासा 
आतुर चाह समर्पण चाहे
मृग छौनों सा चंचल  मन
बादल सजल भावों  के लेकर
रिमझिम -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ?
मन  अंगारों की फुलझड़ियों से
एकाकीपन अभिसरित क्यूँ है ?
प्राणों का  ही हवन प्राण में
मौन समर्पण, कम्पित तन मन
साँसों में साँसों  का गोपन,
आँचल में बिन दिये है मैंने 
  सब यादो के झिलमिल तारे 
अमावस सी रात जिंदगी 
चाँद रोशनी रेशम साँसें 
ताने बाने किरणों के कस ,
जीवन तार उलझते क्यों हैं ?
मुखर न हो यादों के साये 
आनन दुःख को क्यूँ झलकाये 
शिशिर न तन  कम्पित कर  पाये 
मन को हिम सा सर्द बना लूँ ,
पतझड़ में धर   रूप बसंती 
एक मोहिनी छलना सी मैं 
अपने में अपने को ढूंढूं -पर !
मन छुपता अकुलाता क्यों है 
आँखें यदि बरसना चाहें 
आनन ये मुसक्याता क्यूँ है ?
छुपके  -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ? ---॥ आभा ॥



Thursday, 26 January 2017

आज सम्प्रभु होने का मन कर रहा है --शिवोहम जैसा -- गण आज के दिन काफी महत्वपूर्ण होता है ,सभी से उसे अपने तन्त्र की बधाई मिलती है :) मैंने भी दी सभी मित्रों को ,और सच में गण -गण जैसा महसूस होने लगा --शिवजी के गण भी अपने में शिवोहम वाली फीलिंग ही रखते होंगे शायद ,तभी तो '' कोई मुख हीन ,विपुल मुख काही '' के बाद भी देवताओं के साथ-साथ ही ठसके से बरात में चले नाचते -गाते ---तो बस ऐसे ही मैं भी गण वाली फीलिंग में डूबने उतराने लगी जब गणतन्त्र दिवस परेड देखी ---कितनी मेहनत ,कितना समर्पण , भारत की उन्नति का एक संक्षिप्त कैटलॉग -- सेना के तीनों अंगों का प्रदर्शन मुझे बहुत भाता है , फिर मेरी पसंद है स्कूली बच्चों का प्रदर्शन :) और झांकियां तो देश के प्रदेशों में झाँकने का जरिया हैं --पर आज मेरे मन में एक बात आयी ---गण के महत्वपूर्ण होने पे इच्छाएं उछाल मारती ही हैं ;) ----तो जनाब आज मैंने सोचा :D --जी हाँ गण भी सोचते तो हैं ही --हमेशा थोड़े ही गुलाम रहेंगे ;) --कभी तो सोचेंगे ही ---तो साहब मैंने सोचा -----काश -काश -काश --देश के विकास को दिखाती इन झांकियों में दो झांकियां देश के नीतिनियंताओं की भी होतीं --एक में ----------------अवकाश प्राप्त वयोवृद्ध --कुछ ईमानदार ,कुछ मार्गदर्शक ,कुछ दलबदलू अवसरवादी ,कुछ लम्पट :( --कुछ ज्यादा ही हो गया --पर ये तो गणतन्त्र के गण की इच्छा है मैं क्या करूँ आज का दिन ही ---
--- ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे-----गण के आह्वान और प्रतिष्ठापन का दिन जो है , वो भी संविधान प्रदत्त प्रतिष्ठापन  ;) 
और दूसरी में ----आज के नवजवान ,43 से 46 वर्ष के लड़के ---परिवारो की विरासत संभाले हुए --कमोबेश हर भारतीय पार्टी के  लाडले बेटे और बेटियां --नाचते गाते , देश के विकास की कोई थीं लेके आते --  आखिर सबसे अधिक प्रगति तो ये ही कर रहे हैं --कुछ न करके  भी स्वयंभू -सम्प्रभू --गणों को पीछे ढकेल तन्त्र पे कुंडली मार के बैठे हैं ---मानो देश --इनके बाप की विरासत हो ----
होनी चाहिये हिन्द के नीतिनियंताओं ,कर्णधारों ,नेताओं की एक झांकी --आखिर  इन्हें भी तो पता चले ये क्या करते हैं इसे साफगोई से ये कैसे दिखाएँगे --

Saturday, 14 January 2017

रामाद् याञ्चय मेदिनिम् धनपते बीजम् बलालांगलम्।
प्रेतेशान महिष: तवास्ति वृषभम् त्रिशूलेन फालस्तव।।
शक्ताहम् तवान्न दान करणे, स्कन्दो गोरक्षणे।
खिन्नाहम् तवान्न हर भिक्ष्योरितिसततं गौरी वचो पातुव:।।    
   
पार्वती जी शंकर जी को उनकी दरिद्रता पर उलाहना दे रही हैं। आप का भिक्षाटन ठीक नहीं है इसलिए आप भगवान राम से थोड़ी सी भूमिकुबेर से बीज और बलभद्र से हल माँग लीजिए। आप के पास एक बैल तो है हीयमराज से भैंसा माँग लीजिए। त्रिशूल फाल का काम देगा। मैं आप के लिए जलपान पहुँचाऊँगी। कार्तिकेय पशुओं की रक्षा करेंगे। खेती करिएआप के निरंतर भिक्षाटन से मैं खिन्न हूँ। 

Friday, 13 January 2017

जिंदगी फकत यादों के सिवा कुछ भी नही 
यादें कभी  आशनाई की ,कभी बेवफाई की 
मतलब जो पूछा जिंदगी से हमने -उसका 
दिन मुफलिसी में बहारों के बता गयी --

Friday, 6 January 2017

' चेतन जिसको कहते हैं हम जड़ में ही वो सोता है ''
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ऐ !काश मैं जड़ हो जाऊं !चेतना हो लुप्त जाए
अवसाद चिंता मोह दुःख से मुक्त मन
मैं रह अतल में ;
भू राग का उत्सव मनाऊँ
ऐ ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
नीचे धरा के ,संग सिया का
धूप - छाँव औ पवन पी के
महक माटी की बिखेरूं -
तिमिर का मैं राग गाउँ ,
ऐ! काश मैं जड़ हो जाऊं।
वास हो ऊपर धरा के
 बाहों में झूलूँ झूलना--
बरगद औ पीपल की ही मैं|
देना ही हो बस ध्येय मेरा
रह अतल मेँ निम्नतल में
नित प्राण संतति पे मैं वारूँ
मुक्ति का मैं राग गाऊँ ,
ऐ काश मैं जड़ हो जाऊँ।।आभा।।