हवन प्राण से प्राणों का ''-एक और अमावस --मौन अहसासों का सागर ----
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ऊपर वाले तेरी छतरी के नीचे ,
क्यूँ जन्मों के -
प्रणय-प्यार के बन्धन टूटे ?
जन्मों से जन्मों तक कसमे
सूखी आँखें सागर महसूसें
अधरों पे अहसास प्रणय का
जीवन अमावसों की गठरी
सच सपने मन की बाहों में
प्राण मुखर, हाँ ना की दुविधा
कर्म भाग्य की परिधि सीमित
बरखा बून्दें लड़ियां साँसें
टूट -टूट धरती पे बिखरें
सागर की लहरों सी मचलें
वो लज्जा, वो संकोच पलों का
मिलन !या - मिलने की चाहत ?
कभी तीर पे वो होता है -
या ; खड़ी तीर ''मैं'' नापूं दूरी
गूँगे पल , प्राण पियासा
आतुर चाह समर्पण चाहे
मृग छौनों सा चंचल मन
बादल सजल भावों के लेकर
रिमझिम -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ?
मन अंगारों की फुलझड़ियों से
एकाकीपन अभिसरित क्यूँ है ?
प्राणों का ही हवन प्राण में
मौन समर्पण, कम्पित तन मन
साँसों में साँसों का गोपन,
आँचल में बिन दिये है मैंने
सब यादो के झिलमिल तारे
अमावस सी रात जिंदगी
चाँद रोशनी रेशम साँसें
ताने बाने किरणों के कस ,
जीवन तार उलझते क्यों हैं ?
मुखर न हो यादों के साये
आनन दुःख को क्यूँ झलकाये
शिशिर न तन कम्पित कर पाये
मन को हिम सा सर्द बना लूँ ,
पतझड़ में धर रूप बसंती
एक मोहिनी छलना सी मैं
अपने में अपने को ढूंढूं -पर !
मन छुपता अकुलाता क्यों है
आँखें यदि बरसना चाहें
आनन ये मुसक्याता क्यूँ है ?
छुपके -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ? ---॥ आभा ॥
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ऊपर वाले तेरी छतरी के नीचे ,
क्यूँ जन्मों के -
प्रणय-प्यार के बन्धन टूटे ?
जन्मों से जन्मों तक कसमे
सूखी आँखें सागर महसूसें
अधरों पे अहसास प्रणय का
जीवन अमावसों की गठरी
सच सपने मन की बाहों में
प्राण मुखर, हाँ ना की दुविधा
कर्म भाग्य की परिधि सीमित
बरखा बून्दें लड़ियां साँसें
टूट -टूट धरती पे बिखरें
सागर की लहरों सी मचलें
वो लज्जा, वो संकोच पलों का
मिलन !या - मिलने की चाहत ?
कभी तीर पे वो होता है -
या ; खड़ी तीर ''मैं'' नापूं दूरी
गूँगे पल , प्राण पियासा
आतुर चाह समर्पण चाहे
मृग छौनों सा चंचल मन
बादल सजल भावों के लेकर
रिमझिम -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ?
मन अंगारों की फुलझड़ियों से
एकाकीपन अभिसरित क्यूँ है ?
प्राणों का ही हवन प्राण में
मौन समर्पण, कम्पित तन मन
साँसों में साँसों का गोपन,
आँचल में बिन दिये है मैंने
सब यादो के झिलमिल तारे
अमावस सी रात जिंदगी
चाँद रोशनी रेशम साँसें
ताने बाने किरणों के कस ,
जीवन तार उलझते क्यों हैं ?
मुखर न हो यादों के साये
आनन दुःख को क्यूँ झलकाये
शिशिर न तन कम्पित कर पाये
मन को हिम सा सर्द बना लूँ ,
पतझड़ में धर रूप बसंती
एक मोहिनी छलना सी मैं
अपने में अपने को ढूंढूं -पर !
मन छुपता अकुलाता क्यों है
आँखें यदि बरसना चाहें
आनन ये मुसक्याता क्यूँ है ?
छुपके -रिमझिम बरस- बरस के
तन- मन- प्राण भिगोता क्यूँ है ? ---॥ आभा ॥