Sunday, 20 August 2017

Love you dear & thanks for sharing this beautiful poem ,
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I know Ajai you are living in our hearts ,
We  gained so much from your living .
Your  memories are our  treasure .
I can listen the song of freedom 
Which your soul sings ----
I can see your soul has wings 
You are flying free 
Enjoying that  freedom you sing 
Your songs ,your voice ,
Your melody ,your living 
When I sit and relax - pondering 
All memories of you that I have 
Keep on showering inside me 
I often hear your voice in blowing winds 
I see your face in the holy  smoke of my 'Diya'
I see you smiling and dancing in falling 'Rain'
I listen every rain drop quietly dictum 'Your Name 
Yes  often I weep ,it makes  me strong 
Parting is hell but life goes on 
You may have died ,but you  are  not gone .
I know your memories are my treasure ,
You are with me live on inside of me .
I know that I am not alone .Abha -








अब नहीं सोचती तुम कितने वर्ष के होते ,समय की सीमा से परे जो चले गए हो पर हमारे दिलों में जैसे गए थे वैसे ही हो -
आज जन्मदिन है तुम्हारा अजय - मुझे मैसेज बॉक्स में सभी प्यार करने वाले मित्रों की बधाई ,शुभकामनायें और आशीष मिला --ठीक भी तो है तुम्हारे सारे उपहार मैं ही तो खोलती संभालती थी आज भी सारा प्यार मैंने झोली में समेट लिया --सभी गुरुजनों को प्रणाम! चरण स्पर्श !आपलोगों का आशीष उपहार है मेरे लिये। मित्रों का अभिवादन और हार्दिक धन्यवाद ,सभी छोटों को ढेर सा प्यार !खुश रहें आप सब खूब -खूब उन्नति करें और सभी प्यारी सखियों बहनों को प्यार भरी झप्पी और शुभकामनाएं। मैंने कोशिश की है इनबॉक्स में सभी का अभिनंदन अभिवादन करूं --यदि किसी का उत्तर नहीं दे पायी हूँ तो क्षमाप्रार्थी ढेर सी शुभकामनाएं और प्यार सभी को।
जन्मदिन की शुभकामनायें लो अजय --
कभी जन्माष्टमी से पहले कभी बाद में शिफ्ट होता था तुम्हारा जन्मदिन , और फिर सितम्बर में दोनों बच्चों का --भादों से अश्विन हमारे घर में त्यौहार ही त्यौहार बसते थे !क्या हुआ जो तुम मेरे पास नहीं हो तो ,कान्हा भी तो मेरे मन में ही हैं न ,और मैं तो तुम्हारी टाइमलाइन को ही संभाल रही हूँ '' बच्चों के आग्रह पे'' ; शून्य में होने पे भी इस जगह पे आती ही हूँ ,यहां तुम्हारा नाम जुड़ा है न । तुम हो हमारे साथ अजय ;आज भी कल भी हमेशा , मन के झरोंखों से झांकते ,हर सुख में खिलखिलाते हर दुःख में गले लगाते हुये। देख तो पाते हो तुम हमें ऊपर से ,बस हम ही ढूंढते रह जाते है तुम्हें।श्रधान्जली अजय ! जन्मदिन की बधाई ! तुम तो कान्हा के पास चले गये मेरी भी अर्जी आई है उसे भी देख लेना ---
( हर क्षण सपना ;सपने में बस तुम )और मैं ------
मैं कथाओं की माला
सुखदुःख की डोरी
व्यथाओं के मोती
समय की शिला पे
धुंधले -उजले
चित्रों की थाती
अश्रु से निर्मित
सघन नभ मन में
खारे या  मीठे
ये बादल अनूठे
मन आंगन में खेलें
स्मृतियों की चाबी
जरा सी जो घूमी
तड़ित मन में चमकी
रिमझिम फुहारें
बरस आयीं अखियां
अमरबेलि विष की
मधु बन  छलकी -
यादों के हिम कण
साँसों की अग्नि
उजला अँधेरा
धुवें ने अनोखा
चित्र उकेरा -
गलने को आतुर
 मन प्राण मेरा
यम ही तो होगा
पाहुन अब मेरा
आया था  ,छू के
तुम्हें  ले गया था
तब  से हूँ बैठी
दीपक जलाये
कथाओं की माला
व्यथाओं के मोती
शूलों की गोदी में
सुमनों को सहेजे
पाहुन के पथ
नित दीप  जलाती।।आभा।।








Monday, 14 August 2017

त्वमादिदेव: पुरुष: पुराणस्त्वमस्य विश्र्वस्य परं निधानम्। 
वेत्तासि वेद्धयं च परं च धाम ,त्वया ततं विश्र्वमनन्तरुप।।--------------
आदि देव ,सनातन पुरुष ,विश्व को गीता का ज्ञान देने वाले विश्व गुरु ,विश्व जिनके 
' होने से ही व्याप्त है ऐसे कृष्णा के जन्मोत्सव् ---और साथ में विश्वकल्याण हेतु लघु अवधि के लिये शरीर धारण कर ,जन-जन के उद्धार के लिए अपनी बलि चढ़ाने के लिये प्रगट हुई ''भगवती योगमाया ''--कृष्ण की बहिन --जो कंस के द्वारा भूमि में पटकने से पहले ही छूट के आकाशीय बिजुरी बन गयी और वहीं से कंस को और दुनिया को संदेश दिया -- --प्रभु अवतरित हो चुके हैं  ---योगमाया ने आकाशीय बिजुरी सी चमक के ये सन्देश दुष्टों को दिया और साथ ही दिया अपना बलिदान -
देवकी के आठवें पुत्र के भय से कंस ने उसके सभी पुत्रों को बड़ी ही निर्दयता से उसके सामने ही मार दिया -ठीक वैसे ही जैसे गोरखपुर में हत्यारों ने आक्सीजन बंद कर अनेकों  बच्चों को मार डाला ---
किं मया हतया मन्द जात:खलु तवांतकृत्। 
यत्र क्व वा पूर्वशत्रुर्मा हिंसी:कृपणान् वृथा।।
---रे मूर्ख तेरे पापों का अंत निश्चित है ,तुझे मारने वाला पैदा हो चुका है - 
योगमाया का भी जन्मदिवस।  छलकपट दुष्टों पापियों के अंत की शुरवात ---एक  संयोग ही है।
काश ये संयोग सच में बदले !
आठवे पुत्र की जगह कन्या होने पे --
तां गृहीत्वा रुदत्या दीनदीनवत्। 
याचितस्तां विनिर्भत्सर्य हस्तादाचिच्छिदे खल:|| 
तां गृहीत्वा चरणयोर्जातमात्रां स्वसुः सुताम्। 
अपोथयच्छिलापृष्ठे स्वार्थोन्मूलित्रसौहृदय।।
देवकी ने कन्या को अपनी गोद  में छिपा दीनता से कंस से याचना की पर उस पापी दुष्ट ने देवकी को झिड़कर कन्या छीन ली और अपनी उस नवजात भानजी को पैरों से पटककर  दीवार पे दे मारा। 
 इस घटना को मैं  आज के कंसों से जोड़ के देखने को बाध्य हूँ  -जिन्होंने केवल कुछ पैसों या अपनी घृणा या गद्दी छिन जाने के वशीभूत हो कंस की ही तरह अनेकों नौनिहालों को मृत्यु की गोद में भेज दिया।  
ऐन जन्माष्टमी से पहले ये कुकृत्य -कुछ कहने की कोशिश कर रहा है -आज के कंसों के पापों का घड़ा भी भर रहा है ,इन्होने अपनी बर्बादी की एक और कील ठोंक दी है ,अनेकों मासूमों का बलिदान इतिहास की पुनरावृति सा ही है -बच्चे कन्हैया को बहुत प्रिय हैं। अब दुष्टों का  संहार करने की शक्ति संतों को दो  कान्हा। 
भावुकता की जगह कठोरता से काम हो ,दोषी को कठोर सजा मिले शायद मुझे ग्रह नक्षत्रों का ज्ञान नहीं पर संजोग तो वही बन  पड़ा है। 

आनंदमंगल हों सभी के जीवन में ,कृष्ण की गीता और योगमाया के त्याग की सभी के हृदय -मन में पुनर्संस्थापना हो ,देश कर्म के सिद्धांत को अपनाये पर स्थिरचित्त हो --''सभी को पुण्यपर्व की मंगलकामना --

Friday, 11 August 2017


यादों में आज भी वो दिन जब दिल्ली शिफ्ट हुई ,पहली बार तुम्हारे बिना -बस अहसासों की कलम से बह चली थी स्याही और भीग गया सामने रखी कॉपी का पन्ना आज फिर फड़फड़ा के सामने आ गया -भीगा हुआ नम ,गीला पर उदास नहीं -तुम ----,तुम जो नहीं रह सकते थे पल भर भी मेरे बिना चले गये अनंत की यात्रा में --आज भी पदचाप की आहट गूंजती है ,अब तो रोम रोम श्रवण इंद्री बन गये हैं ,तुम हो न मुझमें ,बस मैं ही सुन पाती हूँ ''आभा '' की वो आवाज जो पोर पोर में बह रही है हवा बनके अदृश्य पर जागृत --सागर की लहर बनी मैं यादों के समुन्दर में उछलती हूँ और मिट जाती हूँ कब मिलेगा किनारा पता नहीं पर हर उत्साहित लहर की मानिंद मैं भी नए सिरे से हर सवेरे जीने की तैयारी करती हूँ-(तुमने भी तो उषा का दामन ही थामा था मुझे छोड़ने के लिए ) मर मिटने के लिये -----
"मैं लहर सागर की "
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हाँ तुम हो मुझमें 
सदियों से सदियों के लिये
पहले भी थे
 जब,हम मिले न थे ,
हो आज भी -
जब तुम नहीं हो !
हो- शामिल; मुझमे ,
मेरे हर हिस्से में -
अपने कुछ न कुछ हिस्से के साथ।
देखा था तुमने पहली बार
रख दी थी ,
"अपने हिस्से की शर्म" -
मेरी पलकों में ;
आज भी पलकें झुकी हैं 
"उसी भार से" ,
मेरी शर्म में ,हिस्सा है तुम्हारा।
सर्दियों में तुम्हें लगती थी जब ठंड -
धूप सेकते हुए ; 
अपने हिस्से की धूप -
दे दी थी मैंने तुम्हें ;
आज भी ! मैं ,धूप में नहीं बैठ पाती हूँ।
सारा प्यार अपने हिस्से का -
दे दिया मुझे -भर दी मेरी झोली ;
रीते ही चले गए 'तुम '
मेरे हिस्से आ गया -
सारा प्यार तुम्हारे हिस्से का।
वो सुर तुम्हारे -
जब भी गाते थे तुम ,
मैं चुरा लेती थी आवाज का रस -
अपने हिस्से का ,
आज मेरी मिठास में
है वही चोरी वाला हिस्सा।
हर नैया का सागर में हिस्सा ,
हर सपने  का नींदों  में हिस्सा ,
लहर ढूंढती अपना साहिल ,
राही का मंजिल में हिस्सा ,
चमन में बुलबुल का हिस्सा ,
फूल में सुगन्धि का हिस्सा -
आसमां में हर तारे का हिस्सा।
मेरा हिस्सा आसमान में -
तुम ही तय करके रखना ,
जब मैं आऊँ तुम से मिलने
बाजू वाला हिस्सा देना।
तुम मेरे ही हिस्से हो
तब भी जब तुम पास थे मेरे
अब भी जब तुम पास नहीं हो।
हां मेरे जीवन का हिस्सा
छूट  गया - खो गया जो
 फिर मैं क्यूँ नहीं  अधूरी ?
शायद !
हम दोनों ही  इक दूजे का हिस्सा।<><><>आभा <>
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रोज सुबह की संध्या तुम्हारी तस्वीर के आगे माथे पे रोली कुमकुम लगाने का बहाना और फिर कुमकुम का कण बालों में छिपा लेना --मेरे लिए तो तुम गए ही नहीं बस बाहर से भीतर हो गए हो -समय का लुकाछिपी का खेल देखो कब धप्पा लगा के तुम्हें ढूँढ पाती हूँ ,तब तक छलक रही हूँ लहरों की तरह ----
आत्मा कब दूर है हमसे उषा को प्राची में दिखती है तो संध्या समय पश्चिम में लाल नारंगी सुनहरा कुमकुम उड़ाती हुई आभा ----
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Monday, 7 August 2017



स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ ---
पुरातन से चलते चलते रक्षासूत्र एक लम्बा सफर तय कर अब एक नए स्वरूप में ढल चुका है ,अब ये विशुद्ध भाई-बहन का त्यौहार है। 
आज बाजार का त्यौहार भी हो गया है ये। 
जैसा देश वैसा भेष तो अब इसका यही स्वरूप मान्य है कम से कम बेटी की जरूरत तो महसूस होगी। 
राखी बंधन ,यानी एक ऐसा रिश्ता जिसे रखके पालना पड़ता है | बीतते समय के साथ जब भाई बहन के अपने परिवार हो जाते हैं तो ये रिश्ता ही जीवन की नीरसता में स्वाद लेके आता है ,बिलकुल खट्टे मीठे आचार की भांति | जिसे बनाने और बनने की प्रक्रिया में बहुत सावधानी रखनी होती है थोडा सी चूक ! और- स्वाद से लेकर खुशबू तक सब बिगड़े | सुधरने की गुंजायश हो तो ऊपर की परत जो बिगड़ गयी है को खुरच के आग में या धूप में पकाने की जटिल और निरंतर प्रक्रिया सावधानी हटी और दुर्घटना घटी | 
रक्षाबन्धन अब अपनी पुरानी मान्यताओं को छोड़ता हुआ केवल भाई-बहन का त्यौहार ही होके रह गया है | असल में ,ये है तो लम्बी उम्र और शुभकामनाओं की दुवाओं का ही त्यौहार ,रक्षा सूत्र चाहे कोई भी बांधे ; वो युद्ध में जाते हुए राजा ( अब सैनिक ) की माँ हो या पत्नी हो , भाई की लम्बी उम्र और सुंदर भविष्य की कामना करने वाली बहिन हो ,घर खानदान के पंडे हों जो जजमान की रक्षा के लिए अभिमंत्रित रक्षा सूत्र लेके आये हों या अपनी रक्षा की गुहार लगाती बहनें हों चाहे विधर्मी ही हों ,ये एक अटूट विश्वास ,प्यार ,सद्भावना और जीत के भरोसे का बंधन है | रक्षा बंधन उपनिषदों -पुराणों के काल से लेकर आज तक अपनी पूरी ठसक और रंगीनी के साथ समाज की उत्सवधर्मिता को जीवित रखे हुए है यही इसकी विशेषता है | हमारी संस्कृति में तो किसी भी पूजा अर्चना की शुरुआत ही रोली-मौली से होती है और यही है रक्षा सूत्र बाँधने का मूल स्वरुप |
राखी बांधने का मन्त्र --------------
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल ,
तेन त्वां अभि बधनामी रक्षे माचलमाचल् ||
इस मन्त्र में खास बात ये है कि जब शचि ने इंद्र के हाथ में राखी बांधी थी तो उसने कहा ,"तेन त्वां अनु बधनामी रक्षे माचलमाचल् '' सब आपके अनुकूल होवें और आपको विजय मिले | कहा जाता है इस पर्व की शुरुआत शचि से ही हुई | कालान्तर में यह अपना रूप बदलता गया | यदि गुरु या ब्राह्मण रक्षा सूत्र बांधे तो रक्षा की कामना करे ,'तेन त्वां रक्ष बधनामी रक्षे माचलमाचल्" , और बहन अपने भाई की उन्नति ,की कामना से बांधे , वो सचरित्र होवे ,ऊँचा उठे जीवन में ,स्वस्थ होवे और समाज के लिए शुभ होवे तो " तेन त्वां अभि बधनामी रक्षे माचलमाचल् " मन्त्रों में बहुत शक्ति होती है ,शब्द ब्रह्म है ये तो हम सब जानते हैं और जब उन शब्दों को मन्त्र का रूप मिल जाता है तो उच्चारण मात्र से जो कम्पन होता है वो सकारात्मक चक्र बना देता है हमारे चारों ओर| मंत्रोच्चार के साथ राखी मनाइए | 
बलि को लक्ष्मीजी ने राखी बाँध विष्णु भगवान को छुड़वाया था -
और भी कई कहानियां हैं इस त्यौहार के भाईबहन का त्यौहार होने की -
सभी भाइयों की कलाईयों पे राखी के रूप में बहना का प्यार झिलमिलाये , कन्या भ्रूण हत्या का उन्मूलन हो ,समाज को सद्बुद्धि आये ,सभी को राखडी की शुभकामनायें | श्रधा विश्वास और प्रेम का पर्व है इसे ऐसे ही मनाया जाये | कन्याओं का संवर्धन और संरक्षण हो ,शुभ हो ये पर्व |
रक्षाबंधन की शुभकामनायें सभी फेसबुक भाई बहिनों को। ये ऐसी चौपाल है जहां रिश्ते मानसिक हैं --संबंध जोड़ने वाले तार अदृश्य हैं आसमानों में -ईश्वर भी अदृश्य ही है तो मानो तो मैं गंगा माँ हूँ -न मानो तो ----मंगलकामना राखड़ी पर्व की --
फेसबुक दीदी का आशीर्वाद छोटों को बड़ों को नमन पैलाग -चरणस्पर्श -
तनमन की थकन है चेहरे पे पर पर्व में फोटू तो बनती है ताकि सनद रहे ---
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