Monday, 14 August 2017

त्वमादिदेव: पुरुष: पुराणस्त्वमस्य विश्र्वस्य परं निधानम्। 
वेत्तासि वेद्धयं च परं च धाम ,त्वया ततं विश्र्वमनन्तरुप।।--------------
आदि देव ,सनातन पुरुष ,विश्व को गीता का ज्ञान देने वाले विश्व गुरु ,विश्व जिनके 
' होने से ही व्याप्त है ऐसे कृष्णा के जन्मोत्सव् ---और साथ में विश्वकल्याण हेतु लघु अवधि के लिये शरीर धारण कर ,जन-जन के उद्धार के लिए अपनी बलि चढ़ाने के लिये प्रगट हुई ''भगवती योगमाया ''--कृष्ण की बहिन --जो कंस के द्वारा भूमि में पटकने से पहले ही छूट के आकाशीय बिजुरी बन गयी और वहीं से कंस को और दुनिया को संदेश दिया -- --प्रभु अवतरित हो चुके हैं  ---योगमाया ने आकाशीय बिजुरी सी चमक के ये सन्देश दुष्टों को दिया और साथ ही दिया अपना बलिदान -
देवकी के आठवें पुत्र के भय से कंस ने उसके सभी पुत्रों को बड़ी ही निर्दयता से उसके सामने ही मार दिया -ठीक वैसे ही जैसे गोरखपुर में हत्यारों ने आक्सीजन बंद कर अनेकों  बच्चों को मार डाला ---
किं मया हतया मन्द जात:खलु तवांतकृत्। 
यत्र क्व वा पूर्वशत्रुर्मा हिंसी:कृपणान् वृथा।।
---रे मूर्ख तेरे पापों का अंत निश्चित है ,तुझे मारने वाला पैदा हो चुका है - 
योगमाया का भी जन्मदिवस।  छलकपट दुष्टों पापियों के अंत की शुरवात ---एक  संयोग ही है।
काश ये संयोग सच में बदले !
आठवे पुत्र की जगह कन्या होने पे --
तां गृहीत्वा रुदत्या दीनदीनवत्। 
याचितस्तां विनिर्भत्सर्य हस्तादाचिच्छिदे खल:|| 
तां गृहीत्वा चरणयोर्जातमात्रां स्वसुः सुताम्। 
अपोथयच्छिलापृष्ठे स्वार्थोन्मूलित्रसौहृदय।।
देवकी ने कन्या को अपनी गोद  में छिपा दीनता से कंस से याचना की पर उस पापी दुष्ट ने देवकी को झिड़कर कन्या छीन ली और अपनी उस नवजात भानजी को पैरों से पटककर  दीवार पे दे मारा। 
 इस घटना को मैं  आज के कंसों से जोड़ के देखने को बाध्य हूँ  -जिन्होंने केवल कुछ पैसों या अपनी घृणा या गद्दी छिन जाने के वशीभूत हो कंस की ही तरह अनेकों नौनिहालों को मृत्यु की गोद में भेज दिया।  
ऐन जन्माष्टमी से पहले ये कुकृत्य -कुछ कहने की कोशिश कर रहा है -आज के कंसों के पापों का घड़ा भी भर रहा है ,इन्होने अपनी बर्बादी की एक और कील ठोंक दी है ,अनेकों मासूमों का बलिदान इतिहास की पुनरावृति सा ही है -बच्चे कन्हैया को बहुत प्रिय हैं। अब दुष्टों का  संहार करने की शक्ति संतों को दो  कान्हा। 
भावुकता की जगह कठोरता से काम हो ,दोषी को कठोर सजा मिले शायद मुझे ग्रह नक्षत्रों का ज्ञान नहीं पर संजोग तो वही बन  पड़ा है। 

आनंदमंगल हों सभी के जीवन में ,कृष्ण की गीता और योगमाया के त्याग की सभी के हृदय -मन में पुनर्संस्थापना हो ,देश कर्म के सिद्धांत को अपनाये पर स्थिरचित्त हो --''सभी को पुण्यपर्व की मंगलकामना --

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