Tuesday, 10 October 2017



काश ख्वाबों में ही
काश ख्वाबों में ही आ जाओ
बहुत तन्हा हूँ
बहुत तन्हा हूँ
काश ख़्वाबों में ही आ जाओ
बहुत तन्हा हूँ
बहुत तन्हा हूँ
काश ख्वाबों में ही आ जाओ
या मेरे जहन से यादों के दिए गुल कर दो
मेरे अहसास की दुनिया को मिटा दो हमदम
रात तारे नहीं अंगारे लिए आती है
इन बरसते हुए शोलों को बुझा दो हमदम।
दिल की धड़कन को सुला जाओ बहुत तन्हा हूँ
बहुत तन्हा हूँ
काश ख्वाबों में ही आ जाओ

अँधेरी रात में जब चाँद खिलने लगता है
तुम्हारे प्यार के दीपक जला के रोता हूँ
तुम्हारे आने की जब आस जाने लगती है
मैं उन चिरागों को खुद ही बुझा के रोता हूँ
जिंदगी ऐसी मिटा जाओ बहुत तन्हा हूँ
बहुत तन्हा हूँ
काश ख्वाबो में ही आ जाओ

सोचते सोचते जब सोच भी मर जाती है
वक्त के कदमों की आहट को सुना करता हूँ
अश्क थमते हैं तो आहों का धुँआ उठता है
रात भर यूँ ही तड़पते हुए चला करता हूँ
भारी गम कुछ तो घटा जाओ बहुत तन्हा हूँ बहुत तन्हा हूँ
काश ख्वाबों में ही आ जाओ


Sunday, 8 October 2017

करवाचौथ की अनेकों शुभकामनायें सभी को -=सोलहश्रृंगार से सजी हर उम्र की युवतियां देश के लिए कल्याणकारी हों ---

भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुपरकेतैर्द्द्यु भिरग्निर्वितिष्ठन्नुश द्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्।।
-----वेद सूक्तों के शब्दार्थ तो संस्कृत के पंडित ही कर सकते हैं और उनके भी भिन्न भिन्न मत होते हैं पर यजुर्वेद के उपर्युक्त सूक्त का भावार्थ कहें या विश्लेषण कहें मैंने यूँ किया  ---स्त्रियों के सशक्त संस्कारों और अनुष्ठानों  से भी  परिवार और परिवारजन प्रतिष्ठित होते हैं --वैसे ही जैसे भगवान भक्ति के द्वारा भजन किये जाने पे सभी के हृदय में प्रतिष्ठित होते हैं -सूर्य रात्रि के पीछे चल रहा है और ''रात्रि'' ने उसे चंद्र  और नक्षत्रों के कमनीय प्रकाश में स्थित कर सूर्य को ''श्येनासश्चिदर्थिन:'' सुखपूर्वक अपने घरों में विश्राम करने वाला बना  दिया है।
महर्षि पराशर के ''पारस्करगृह्यसूत्र ''में  पारिवारिक और सामाजिक नियमों की परम्परा को लोकजीवन से ही लिया गया है -ग्रामवचनं --जैसा समाज कहता है और वो समाज क्या है -स्वकुलवृद्धानां स्त्रीणां वाक्यं कुर्युः ---अपनेकुल की वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्य करें ---
जन्म -मरण- विवाह -उपनयन -सोलह संस्कार और व्रत त्यौहार उत्सव ये सभी अपने कुल की वृद्ध स्त्रियों से पूछ के उनके अनुसार ही करने चाहियें -ये आदेश दे दिया गया है -
और यही कुल की वृद्ध स्त्रियां कहती हैं करकचतुर्दशी ( करवाचौथ ) को खूब सजधज से मनाओ। वर्ष में एक बार दुल्हिन की तरह सजो। अपने प्रेम को प्रगाढ़ करने के लिये विवाह के दिन वाली अनुभूति जागृत करो ,पति भी इस उत्सव में बराबर की भागीदारी करे ताकि ये व्रत केवल एक साधारण उपवास न बन के रह जाए। रही बात निर्जल रहने की तो पाणिग्रहण की शुभबेला में आपके मातापिता ने निर्जल व्रत किया था। विवाह की साड़ी भागदौड़ में आपके जीवन की मंगलकामना हेतु उन्होंने कार्याधिकता में भी निर्जल व्रत किया तो अब तुम सब भी अपने जीवन के कल्याण हेतु हर वर्ष ये तप करो ,निर्जल रह कर --बस इसे अंधविश्वास न बनाओ -आतुरो नियमो नास्ति -रोगी ,कमजोर वृद्ध जनों को अपने स्वास्थ्य के अनुकूल कार्य करना है उनके लिए कोई नियमों का बंधन नहीं है। 







Wednesday, 4 October 2017

दिमागी फितूर बैठे ठाले का
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'बहस -मुसाहिबा और आपा खोते लोग '
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 चश्मों के नंबर- भिन्न -भिन्न
प्लस , माइनस  संग   नंबर गिन
 तुझे दिखाई देता जैसा
 कुछ कम ज्यादा  मुझे दीखता
चश्मा मेरा जैसा है
 नजर वही तो देखेगी
दृष्टि दोष जब आ जाता
मौलिक  छूट कहीं  जाता
जो जैसा है, वही !  देखना
 अब सब कल की बातें हैं
सब के चश्मे अलग -अलग
अपनी सुविधा अपने मत
नंबर ही तो अलग नहीं
आकार प्रकार ,महंगे सस्ते
कोई ब्रैंडेड कोई लोकल
कोई हल्का कोई भारी
अपने चेहरे से मिलते
अपनी  जेब से ढलते
चश्मा तो बस  चश्मा है
दृष्टि दोष को दूर करे
हो आँखों का  मन का
दुनिया यही दिखाता है
मन  चश्मे भी अलग हैं सबके
 तो  मेरे पाले में क्यों सब हों !
क्यूँ ! सब मेरे जैसा सोचें
मैं जो बोलूं उसे सराहें
 मेरी सोच तो गंगा का जल
  दूजा  गंदे नाले का पानी  ?
आँखें मेरी भी कमजोर
आँखें तेरी भी कमजोर
निकटदृष्टि -दूरदृष्टि
चश्मे  में  तो दोनों दोष
मन में हों तो अर्थ अलग
निर्णय हमको मिल करना
तूने तो अपनी कह दी
मेरी सुनने पे तंज न कर। आभा।











Monday, 2 October 2017

जोहानिसबर्ग में गांधी -जब उन्होंने गीता पढ़नी शुरू की ---
थियोसोफी सोसाइटी ने गांधी जी को हिन्दू विचारों से परिचित होने के लिये उन्हें अपने मण्डल में शामिल करने की इच्छा व्यक्त की। गांधी तो अंग्रेजी माध्यम से वकालत पढ़े थे। हिन्दू संस्कृति पे क्या बोलते ? उन्होंने गीता पढ़नी शुरू की --
''गीता पर मुझे प्रेम और श्रद्धा तो थी ही अब उसकी गहराई में उतरने की आवश्यकता प्रतीत हुई। मेरे पास एक दो अनुवाद थे। उनकी सहायता से मैंने मूल संस्कृत समझ लेने का प्रयत्न किया और नित्य एक दो श्लोक कंठस्थ करने का निश्चय किया।
प्रात: दातुन और स्नान के समय का उपयोग गीता के श्लोक कण्ठ करने में किया। दातुन में पंद्रह और स्नान में बीस मिनट लगते थे। खड़े-खड़े करता था। सामने की दीवार पर गीता के श्लोक लिख के चिपका देता था और आवश्यकतानुसार उन्हें घोटता जाता था। पिछले श्लोकों को भी दोहरा लेता था। इस तरह गीता के तेरह अध्याय मैंने कण्ठ क्र लिए।
इस गीता का प्रभाव मेरे सहकर्मियों पर क्या पड़ा मुझे नहीं पता पर मेरे लिये यह पुस्तक आचार की प्रौढ़ मार्गदर्शिका बन गयी। यह मेरे लिए धार्मिक कोष का काम देने लगी। अपरिग्रह समभाव आदि शब्दों ने मुझे पकड़ लिया। ''
---'' The Story of My Experiments with Truth  the autobiography of Mohandas K. Gandhi, -''के हिंदी अनुवाद '' सत्य के प्रयोग '' से ---
गांधी जयंती पे नमन मोहनदास करमचंद गांधी ---घोटने की विधा हमने गांधी से ही सीखी ,हमारे बचपन में आत्मकथा पढ़ने का बहुत चलन था --