Wednesday, 4 October 2017

दिमागी फितूर बैठे ठाले का
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'बहस -मुसाहिबा और आपा खोते लोग '
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 चश्मों के नंबर- भिन्न -भिन्न
प्लस , माइनस  संग   नंबर गिन
 तुझे दिखाई देता जैसा
 कुछ कम ज्यादा  मुझे दीखता
चश्मा मेरा जैसा है
 नजर वही तो देखेगी
दृष्टि दोष जब आ जाता
मौलिक  छूट कहीं  जाता
जो जैसा है, वही !  देखना
 अब सब कल की बातें हैं
सब के चश्मे अलग -अलग
अपनी सुविधा अपने मत
नंबर ही तो अलग नहीं
आकार प्रकार ,महंगे सस्ते
कोई ब्रैंडेड कोई लोकल
कोई हल्का कोई भारी
अपने चेहरे से मिलते
अपनी  जेब से ढलते
चश्मा तो बस  चश्मा है
दृष्टि दोष को दूर करे
हो आँखों का  मन का
दुनिया यही दिखाता है
मन  चश्मे भी अलग हैं सबके
 तो  मेरे पाले में क्यों सब हों !
क्यूँ ! सब मेरे जैसा सोचें
मैं जो बोलूं उसे सराहें
 मेरी सोच तो गंगा का जल
  दूजा  गंदे नाले का पानी  ?
आँखें मेरी भी कमजोर
आँखें तेरी भी कमजोर
निकटदृष्टि -दूरदृष्टि
चश्मे  में  तो दोनों दोष
मन में हों तो अर्थ अलग
निर्णय हमको मिल करना
तूने तो अपनी कह दी
मेरी सुनने पे तंज न कर। आभा।











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