लालसा
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इस पेट की जरूरत ,
दाल- भात , एक रोटी - दो कप चाय
कमा ही लेंगे इतना तो आसानी से
चार जन को खिला भी लेंगे
इस सब के लिए क्यूँ इतनी परेशानी -
खींचातानी !कहीं किसी को लंगड़ी
किसी से चाय-पानी
जी नहीं साहेबान ;
हमारी तो चाहत -
दाल-भात रोटी संग
एक अदद ही सही पर- सूखी सब्जी ,
आचार ,दही या लस्सी ,(प्रोबायोटिक हो तो अच्छा) ,
चटनी हो - तो लार ज्यादा बने ,
फल-सब्जी , सलाद हो तो बात बने,
मीठा न हो तो ! तो फीकी है पूरी कहानी -
एक घर में अनेक मुंडी
मुण्डे मुण्डे* मतिर्भिन्ना कुण्डे कुण्डे नवं पयः।
जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे ।।
तो जनाब जितने मुंड उतने मुहं
जितने मुहं उतने स्वाद
स्वादानुसार मिलें तो सोने पे सुहागा
सोना -सुहागा -बस
या- में खेत सगरी जवानी
, दाल भात खाने की किसने जानी
सांस का समय नहीं है जानी
लालच में पड़ कर बैठे नादानी
कोसते खुद को पी -पी के पानी
जब तक सर उठाएंगे
जवानी है गुजर जानी
किसकी धूप ,किसका पानी
बुढ़ापे में बस दवाई ही है खानी।।आभा।।
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