Tuesday, 20 February 2018

बूढ़े हुए  कलम दवात 
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भोजपत्र की भृगु संहिता ,
ताम्रपत्र अर शिलालेख 
बीते युग के हैं शुभंकर 
तस्वीरों में  अब हुए कैद। 
तख्ती की लिपाई-सुखाई 
सरकंडे-बांस की कलम बनाई 
घिस-घिस कोयला स्याही बनाई 
और कलम की कत्  लगाई। 
पेन्सिल इसी बीच में आयी 
अशुद्धि पे  रबर चलाई 
होल्डर-निब-चेलपार्क की स्याही 
कलम-कोयले की हुई विदाई। 
 फाउंटेन पेन ने किया धमाल 
रंग-बिरंगी  इंक  की, चली बयार 
कुछ छूटा कुछ अपनाया 
सभ्यता को ये  नियम ही भाया। 
अब  जाना था चंदा पे ,
अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण शून्य 
पेन से इंक का देख रिसाव 
बालपैन का हुआ आविष्कार 
 फिर तो परीक्षा ,बैंक पढ़ाई
 कार्यालय और कोर्ट कचहरी
बालपेन का जलवा छाया 
सुलेख ,हुआ  अब धाराशाही 
मोती जैसे अक्षर वाली 
लेख से , व्यक्तित्व पढ़ने वाली 
विद्या देखो हुई पराई -
कुछ और ! सभ्य हुये हम आज!
छूटे कागज कलम  दवात ,
बालपैन  पेन्सिल नहीं लुभाते 
 "कीबोर्ड" से ही अब करें लिखाई  
टपटप होती यहां लिखाई 
एक सा ही सुलेख है भाई 
घसीट अब कोई नहीं मारता 
सुलेख में नंबर नहीं हैं कटते 
बुद्धि तेज और तेज हो गयी 
लेखन अब कमजोर हो गया 
तख्ती वाली आत्मनिर्भरता ,
कलम-निब की कत् बनाना 
पेन्सिल छीलने  की कुशलता 
कागज न फ़टे -----
रबर पे संयमित दबाव बनाना !
बीते दिन की बातें हैं
पिछली पीढ़ी की यादें हैं 
अब तो सब यांत्रिक ही है ,
अक्षर अब बोलते नहीं हैं 
अहसासों को तोलते नहीं हैं
डिजिटल ; कलयुग का उपहार 
डिजिटल ; कलयुग का व्यवहार
कम नहीं हुआ पर देखो 
 अब भी ,पुस्तकों का व्यापार 
तेरे-मेरे उसके जैसों  को   
 अभी भी है पुस्तक से प्यार। .....
मेरी कॉपी में प्रतिदिन 
 अक्षरों की बूंदा-बांदी होती है 
नई -नवीन पुस्तक नित ही 
मेरे रेक की शोभा बनती है 
नेट में है संभावना अपार 
बच्चे करते इससे प्यार 
मुझको भी है इससे प्यार 
पर ?
पाठकीय सुख नहीं है इसमें 
पृष्ठ-स्मृति हेतु मोरपंख को 
पुस्तक चिन्ह बना के रखना 
देने को किसी प्रिय को 
फूल पन्नों के बीच सुखाना 
ताज़ी मृत  तितली के पर 
सीधे कर -पुस्तक में रख -
"विद्यामाता मुझको आ " -कहना 
अब सपनों की ही बातें हैं 
मुस्कानों की ये यादें हैं  
राह विकास की  है  मुश्किल  
और विकास ;  मन की चाहत है 
संवेदना -भाव -प्रेम 
ये विकास के नहीं हैं साथी। 
एक ऊँगली की टपटप पे 
पूरा विश्व समाहित है अब 
पर कुछ मेरे जैसे भी 
लिखना और पुस्तक पढ़ना 
सांस लेने सा लगता  जिनको।।आभा।।














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