Wednesday, 11 July 2018

 जीने की जद्दोजहद में,  हर रोज- जिंदगी
   मौत से करती रही   ,सदा ही  दोस्ती।
 खेल आंखमिचौनी का, चलता रहा सदा
 गमे इश्क को  मेरे ,न मिल सकी ये  जिंदगी।
इश्क के बुतों संग ,  कुछ वक्त तो गुजार
रूह अपनी से इजहारे मुहब्बत है-   जिंदगी।
 मरने से हो शुरू- वो शै है, 'इश्क' - जिंदगी
मरते हैं किसी पे- तो ही ,जीते हैं  जिंदगी
मिट के ही  छू पाउंगी मैं, तुझे ए इश्क
ए री  न   मेरी बन ,आली तू  -जिंदगी  !
 डरा के मौत से मुझे ,खुद ही  तू डर गयी
क्या  जानती  है, तू भी  "तू "मुझसे  है जिंदगी ?
गर्म रेत  सी राहें मेरी  , ये तो ;  मालूम  है तुझे
तो !  हमसफर मुझे ही क्यूँ चाहती है- जिंदगी?
इश्क ख़्वाब है मेरा ,आदत मेरी है वो
इश्क "रूह " है मेरी , "तू "  इबादत है जिंदगी।
दाद ओ तहसीन की ख्वाहिशें हुई तमाम
बुझता हुआ चिराग मैं तेरा हूँ जिंदगी।। आभा।।




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