---------------------------------------------------मेरी माँ ------------------------------------------------------------
उषा की अरुणिमा है माँ ,
निशा का विश्राम ---माँ .
नित्य जिस पर पग धरें हम ,
गोद वसुधा की वही माँ .
दे जनम मुझको बनाया ,
जगत से मुझको मिलाया .
इस क्षुद्र से व्यक्तित्व की ,
निष्पत्ति औ निस्वन है माँ .
जब कभी उल्लसित हुई मैं ,
माँ ने भी उल्लास बांटा .
डगमगाई जब कभी भी !-
निसा ,तृष्टि ,संतोष है माँ .
जगत को जिसने बनाया ,
उसकी भी पहचान है माँ .
पल -पल बदलती सृष्टि को ,
सृष्टि का वरदान है माँ .
हर पोर एक दीपक है माँ का ,
हर रोम एक बाती है उसकी ,
स्नेह की चितवन संजोये ,
कान्हा का अंजाम है माँ .
स्पर्श है ममता भरा ,
संघर्ष में साहसी बनाये .
हाथ सर पे रख यदि दे .
पंख लग जाते दुखों को .
वेदना की घन घटायें ,
क्षार में मधुसार है माँ .
शून्य के निश्वास में ,
श्वास का रोमांच है माँ .
हर साँस मेरी रागिनी ,
माने ही तो इस को सजाया .
कंटकित से इन सुखों के ,
परित्रास में परित्राण है माँ
-------------------------------
--------------------------------------आभा
,
उषा की अरुणिमा है माँ ,
निशा का विश्राम ---माँ .
नित्य जिस पर पग धरें हम ,
गोद वसुधा की वही माँ .
दे जनम मुझको बनाया ,
जगत से मुझको मिलाया .
इस क्षुद्र से व्यक्तित्व की ,
निष्पत्ति औ निस्वन है माँ .
जब कभी उल्लसित हुई मैं ,
माँ ने भी उल्लास बांटा .
डगमगाई जब कभी भी !-
निसा ,तृष्टि ,संतोष है माँ .
जगत को जिसने बनाया ,
उसकी भी पहचान है माँ .
पल -पल बदलती सृष्टि को ,
सृष्टि का वरदान है माँ .
हर पोर एक दीपक है माँ का ,
हर रोम एक बाती है उसकी ,
स्नेह की चितवन संजोये ,
कान्हा का अंजाम है माँ .
स्पर्श है ममता भरा ,
संघर्ष में साहसी बनाये .
हाथ सर पे रख यदि दे .
पंख लग जाते दुखों को .
वेदना की घन घटायें ,
क्षार में मधुसार है माँ .
शून्य के निश्वास में ,
श्वास का रोमांच है माँ .
हर साँस मेरी रागिनी ,
माने ही तो इस को सजाया .
कंटकित से इन सुखों के ,
परित्रास में परित्राण है माँ
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--------------------------------------आभा
,
maa ko shradhaa suman jisnae hamae is jagti sae parichit karvaayaa
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