छोड़ कर स्वर्ण को अब
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छोड़ कर स्वर्ण को अब ,रज कणों के पहन गहने .
कंटकों से पथ सजाया छोड़ कर फूलों के झूले .
जिन्दगी के पटल पर ,जब कौंधती हैं बिजलियाँ तो ,
अश्रु धारा फूटती है बारिशों का रूप लेकर .
अमृत-घट थी जिंदगानी ,अब लगी हूँ गरल पीने .
इक पहेली सा ये जीवन ,बूझ जब तक पाउंगी मैं ,
हो चुकेगा किंतु इसके पूर्व ही ,अवसान मेरा ....
............................................................................
....................आभा
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छोड़ कर स्वर्ण को अब ,रज कणों के पहन गहने .
कंटकों से पथ सजाया छोड़ कर फूलों के झूले .
जिन्दगी के पटल पर ,जब कौंधती हैं बिजलियाँ तो ,
अश्रु धारा फूटती है बारिशों का रूप लेकर .
अमृत-घट थी जिंदगानी ,अब लगी हूँ गरल पीने .
इक पहेली सा ये जीवन ,बूझ जब तक पाउंगी मैं ,
हो चुकेगा किंतु इसके पूर्व ही ,अवसान मेरा ....
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....................आभा
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