( मैं हरी घास हूँ )
घास हूँ मैं ,
नहीं कुछ ख़ास हूँ मैं .
रौंदते प्रात: मुझे तुम ,
ताजगी देती तुम्हें मैं .
और हरियाली ये मेरी ,
चेतना देती तुम्हें .
काट देते हो मुझे तुम ,
रौंदते रहते मुझे ,
शून्य सब संवेदनायें ,
ना कोई अहसास तुमको .
पर यदि मैं जी गयी ,
मैदान के कोने कहीं ,
निरख जाती और खिलती ,
सुंदर भी क्या लगती हूँ मैं .?-------------------------------आभा -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
घास हूँ मैं ,
नहीं कुछ ख़ास हूँ मैं .
रौंदते प्रात: मुझे तुम ,
ताजगी देती तुम्हें मैं .
और हरियाली ये मेरी ,
चेतना देती तुम्हें .
काट देते हो मुझे तुम ,
रौंदते रहते मुझे ,
शून्य सब संवेदनायें ,
ना कोई अहसास तुमको .
पर यदि मैं जी गयी ,
मैदान के कोने कहीं ,
निरख जाती और खिलती ,
सुंदर भी क्या लगती हूँ मैं .?-------------------------------आभा -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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