भारतीय मनीषा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व है ,..रात्रि के तम को पराजित कर स्वर्णिम उषा को उदय होने का वरदान देने वाले सूर्य को अर्घ्य दे कर ...दिन प्रारंभ करने का पर्व ......
......................तमसो माँ ज्योतिर्गमय .....तमस से ज्योति की ओर जाने की अभिलाषा .और उत्कंठा ........
बचपन से इस सत्य को पढ़ा ,समझा और पढ़ाया ...पर आज जीवन में पहली बार अनुभूत किया .....ऐसा नहीं है कि ये दिनों का आवर्तन पहले नहीं हुआ ....पर आज इसे मैंने जिया ...जिया तो समझा ....कुछ और अधिक नतमस्तक हुई अपने मनीषियों और ऋषियों के प्रति ..जीवन चक्र की .... समय की ...किस तरह से गणना की है ...कितना शोध किया होगा ..कि प्रकृति में व्याप्त सूक्ष्म से सूक्ष्म पल को भी निरंतरता दे अर्थ दिया ...जो आज तम है कल प्रकाश में परिवर्तित हो जाएगा ....२५ नवम्बर २००११ की अमावस की वह उषा .....हमारे जीवन पे अमावस बन कर ही छा गयी ...जब अजय हमें छोड़ गए ....और आज डेढ़ वर्ष के कालान्तर में अमावस पूर्णिमा में परिवर्तित हो गयी है .....मानो हमें सीख दे रही हो .....समय को उलाहना मत दो ....अमावस और पूर्णिमा ये तो बस गति हैं समय की ......करता तो वो पारब्रह्म -परमेश्वर ही है ....कारण -अकारण सब उसे ही ज्ञात है ............
.................मृत्योमामृतं गमय .................से मृत्यु को भी अमर्त्य कर पर्व मनाने का सन्देश ..............गीता पढ़ती हो .....उसे धारण करो ................मंथन करो .....जीवन का कभी क्षय नहीं होता ...........आत्मा निरंतर अग्रसित है कृष्ण के स्वरुप को पाने को ........अनंत की यात्रा ....अपने ही स्वरुप में लय होने की यात्रा .........जिसे परम तत्व का आभास भी हो गया .फिर कुछ नहीं चाहिए ..........जन्म -मृत्यु ,फिर जन्म फिर मृत्यु ......जिसे मोक्ष की आकांक्षा है ..............जो संसार को असार समझ फिर से यहाँ आने का इक्षुक नहीं है ......जो कृष्ण के चरणों में जगह चाहता है ..........शायद कान्हा भी उसे अपने पास बुला लेते हैं .........ऐसे ही थे अजय .......संसार में रहते हुए भी .........कर्म करते हुए भी ....लिप्त नहीं थे इस संसार से .........शायद आज अमावस का पूर्णिमा में आवर्तन मुझे स्थित -प्रज्ञं बनाने का ही एक संकेत है ..............शायद ये संकेत की हम अपने साथ होने वाली घटनाओं के प्रति अधिक संवेदन शील हो जाएँ तो जीवन को समझना आसन हो जाय........शायद अनुभूत भावों को समझना अधिक आसान होता है ...........साधक की सिद्धि ...........यदि लक्ष्मी -पति की कृपा पात्र हो जाए तो .....लक्ष्मी की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखेगा .....तमोगुणी लंका में श्री हनुमानजी को -----------रामायुध चिन्हों द्वारा अंकित गृह और पवित्र तुलसी का बिरवा मिल जाना ..........
............जीवन चक्र चल रहा है .......गति भी है ......निरंतरता भी है ...........और ईश्वर प्रदत्त जीवन को प्रसाद मान कर जीना भी है ........दुःख और हताशा के इन क्षणों को ,जीवन का प्रयोजन मान ..स्थित-प्रज्ञं बनने का सन्देश मान चलना ही है ...... चरैवेति -चेरेवेति ..............स्थूल से सूक्ष्म की ओर ......अंधकार से प्रकाश की ओर ......मृत्यु से अमृत की ओर ......जाने वाले राही तू प्रभु की शरण में हो .....मोक्ष के तो तुम आग्रही थे .......अब प्रभु के स्वरुप में ही समाहित होओ ...यही मेरी प्रार्थना है ..यही श्रधान्जली है ........................................आभा ................................................................................................................................................