Friday, 24 May 2013

  भारतीय मनीषा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व है ,..रात्रि के तम को पराजित कर स्वर्णिम  उषा को उदय होने का वरदान देने वाले  सूर्य को अर्घ्य दे कर  ...दिन प्रारंभ करने का पर्व ......
......................तमसो माँ ज्योतिर्गमय  .....तमस से ज्योति की ओर जाने की अभिलाषा .और उत्कंठा ........
  बचपन से इस सत्य को पढ़ा ,समझा और पढ़ाया ...पर आज जीवन में पहली बार अनुभूत किया .....ऐसा नहीं है कि ये दिनों का  आवर्तन  पहले नहीं हुआ ....पर आज इसे मैंने जिया ...जिया तो समझा ....कुछ और अधिक नतमस्तक हुई अपने मनीषियों और ऋषियों के प्रति ..जीवन चक्र की ....  समय की ...किस तरह से गणना की है ...कितना शोध किया होगा ..कि प्रकृति में व्याप्त सूक्ष्म से सूक्ष्म पल को भी निरंतरता दे अर्थ दिया ...जो आज तम है कल प्रकाश में परिवर्तित हो जाएगा ....२५ नवम्बर २००११  की अमावस की वह उषा .....हमारे जीवन पे अमावस बन कर ही छा गयी  ...जब  अजय हमें छोड़ गए ....और आज डेढ़ वर्ष के कालान्तर में अमावस पूर्णिमा में परिवर्तित हो गयी है .....मानो हमें सीख दे रही हो .....समय को उलाहना मत दो ....अमावस और पूर्णिमा ये तो बस  गति हैं समय की ......करता तो वो पारब्रह्म -परमेश्वर ही है ....कारण -अकारण सब उसे ही ज्ञात है ............
.................मृत्योमामृतं गमय .................से मृत्यु को भी अमर्त्य कर  पर्व मनाने का सन्देश ..............गीता पढ़ती हो  .....उसे धारण करो ................मंथन करो .....जीवन का कभी क्षय नहीं होता ...........आत्मा निरंतर अग्रसित है कृष्ण के स्वरुप को पाने को ........अनंत की यात्रा ....अपने ही स्वरुप में लय  होने की यात्रा .........जिसे परम तत्व का आभास भी हो गया .फिर कुछ नहीं चाहिए ..........जन्म -मृत्यु ,फिर जन्म फिर मृत्यु ......जिसे मोक्ष की आकांक्षा है ..............जो संसार को असार समझ फिर से यहाँ आने का इक्षुक नहीं है ......जो कृष्ण के चरणों में जगह चाहता है ..........शायद कान्हा भी उसे अपने पास बुला लेते हैं .........ऐसे ही थे अजय .......संसार में रहते हुए भी .........कर्म करते हुए भी ....लिप्त नहीं थे इस संसार से .........शायद आज अमावस का  पूर्णिमा में आवर्तन मुझे  स्थित -प्रज्ञं बनाने का ही एक संकेत है ..............शायद ये संकेत की हम अपने साथ होने वाली घटनाओं के प्रति अधिक संवेदन शील हो जाएँ तो जीवन को समझना आसन हो जाय........शायद अनुभूत भावों को समझना अधिक आसान होता है ...........साधक की सिद्धि ...........यदि लक्ष्मी -पति की कृपा पात्र हो जाए तो .....लक्ष्मी की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखेगा .....तमोगुणी लंका में श्री हनुमानजी को -----------रामायुध चिन्हों द्वारा अंकित गृह और पवित्र तुलसी का बिरवा मिल जाना ..........
............जीवन चक्र चल रहा है .......गति भी है ......निरंतरता भी है ...........और ईश्वर प्रदत्त जीवन को प्रसाद मान कर जीना भी है ........दुःख और हताशा के इन क्षणों को ,जीवन का प्रयोजन मान ..स्थित-प्रज्ञं बनने का सन्देश मान चलना ही है ...... चरैवेति -चेरेवेति ..............स्थूल से सूक्ष्म की ओर ......अंधकार से प्रकाश की ओर ......मृत्यु से अमृत की ओर ......जाने वाले राही तू प्रभु की शरण में हो .....मोक्ष के तो तुम आग्रही थे .......अब प्रभु के स्वरुप में ही समाहित होओ ...यही मेरी प्रार्थना है ..यही श्रधान्जली है ........................................आभा ................................................................................................................................................
   मन रे तू पंख हीन चंचल विहग ,
   उड़ चला बादल बन आसमान पे '
   यादों के झुरमुट से स्वर्णिम पल ,
   क्यूँ बिखराता है ,मन आंगन में ,
  कुछ पाने के पल ,कुछ खोने के पल ,
  मन रे तू पंख हीन चंचल विहग ..
  आ तुझ को दूँ मैं नए पंख .
  स्मृतियों के जुगनू ले कर .
   मेरे हर पल को कर  जगमग ......आभा ........
निशब्द व्योम औ जगमगाते ये  सितारे ,
किसने इन्हें शब्दों में ढाला ,कागजों में क्यूँ उतारे ,
लिख कर कहानी जिन्दगीकी  इक नजर भर फिर से देखी ,,
हाशिए भी भर गए ,शब्दों की कमी फिर भी खली ....................आभा .............

Saturday, 18 May 2013

  मन प्रांगण में जमी बर्फ संग ,शीतल प्रपात बन बहती जाऊं मैं ..
 ज्यों -ज्यों बर्फ पिघलती जाए ,शीतलता मेरी बढती जाए ..
औ !प्रपात की मधुर गूंज सी ,बिखर जाऊं मैं बन कर एक कविता ...आभा .

Friday, 10 May 2013

                                                       [    अब सुबह नहीं होगी    ]
                                                       ********************
           वो एक अमावस की सुबह ,,
  अंधियारा  ,कर गई  जीवन  उषा को ,,
  अपना  अंधियारा    करने को कम  ,
  मेरे चाँद की चाहत तुझ को भी थी ओ री अमावस ,,
   तू खुश होले  पर  ,वो तो अब भी मेरे पास है
    मुझ से दूर नहीं हो सकता , मेरे भीतर समागया .
   हरदम महका करता है ,मेरी सासों में रहता है ,
    प्रिय का अहसास ,नर्मनाजुक ,प्रेम अनुराग ,
    ना पाने की इच्छा ,ना कुछ खोने का डर ,
     स्थूल और आत्मा के मिलन में ,संचारित ,,
     एक सूक्ष्म स्फुरण ,समाहित होकर ,
      मिट जाने की अभिलाषा ,,श्रृष्टि में न मैं न तू ,
     अंतहीन समय , अंतहीन यात्रा ,
      सागर की लहर लहर हिलोरें लेता ,मिटता बनता।
     स्नेहानुराग .......................................
     न मिलने की चाह ,न  बिछोह  का गम .
     एक लहर आवाज दे दूसरी को ,
     खटखटाये ,तो सुनाई न दे ,
     पहली तो मिट चली ,दूसरी मिटने को तैयार ,
    अंतहीन प्रतीक्षा ,मिलना बिछड़ना ,
     सागर में सामना ,स्नेह का दरिया बन जाना .
     प्रेम उलीचना ,महकती हुई यादों से ,
     अमावस सीजिंदगानी को स्वर्णिम यादों के झूले झुलाना ,,
     तेरे जाने के बाद ,पूर्णिमा की चाहत नहीं है ,
  अमावस में ही ढूँढती हूँ तुझको ,,बिना मिलन की चाहत के ................आभा ........

   

',

Tuesday, 7 May 2013


कई बार मैं ऐसे लोगों से रूबरू हुई हूँ ,जिन्होंने जीते जी अपने माता -पिता की कोई देखभाल नहीं की , मांगने पे भी उनके सुख दुःख आवश्यकता का कोई महत्व नहीं होता था ,,पर मरते ही पूरा जलूस ,गाजे-बाजे के साथ ,वीडियो और फोटो के साथ निकाला , बहुत बड़ा ब्रह्मभोज करके अपना रूतबा साबित किया ,, और समाज में नाम भी कमाया ,,मै बहुत आश्चर्य में रहती थी की कैसे लोग इतने संवेदनहीन और बेशरम हो जाते हैं ,, आज लगता है वो सब परिवार पुराने कोंग्रेसी ही तो हैं ...संस्कार बोलते हैं .......सरबजीत की मौत को भुनाने पहुंचे नेताओं को ज़रा भी शर्म नहीं है ,,यदि अपनी जनता की ज़रा भी परवाह हो तो ये सब होगा ?....दोष सरकार का ही नहीं है जनता भी तो घटना घटने पे ही शोर मचाती है ,,यदि केवल सरबजीत के गाँव ने भी उसकी बहन का साथ दिया होता ,,जैसे आज जन सैलाब उमड़ा है! वैसा पहले उमड़ता तो क्या सरकार न हिलती .....आज प्यासा का एक गाना याद आता है ....
.................ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया ..
..............ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनियां ...
.............ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया ....
..............ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ....
.............यहाँ इक खिलौना है इन्सां की हस्ती ....
.............ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती ..