Friday, 24 May 2013

   मन रे तू पंख हीन चंचल विहग ,
   उड़ चला बादल बन आसमान पे '
   यादों के झुरमुट से स्वर्णिम पल ,
   क्यूँ बिखराता है ,मन आंगन में ,
  कुछ पाने के पल ,कुछ खोने के पल ,
  मन रे तू पंख हीन चंचल विहग ..
  आ तुझ को दूँ मैं नए पंख .
  स्मृतियों के जुगनू ले कर .
   मेरे हर पल को कर  जगमग ......आभा ........

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