Tuesday, 7 May 2013


कई बार मैं ऐसे लोगों से रूबरू हुई हूँ ,जिन्होंने जीते जी अपने माता -पिता की कोई देखभाल नहीं की , मांगने पे भी उनके सुख दुःख आवश्यकता का कोई महत्व नहीं होता था ,,पर मरते ही पूरा जलूस ,गाजे-बाजे के साथ ,वीडियो और फोटो के साथ निकाला , बहुत बड़ा ब्रह्मभोज करके अपना रूतबा साबित किया ,, और समाज में नाम भी कमाया ,,मै बहुत आश्चर्य में रहती थी की कैसे लोग इतने संवेदनहीन और बेशरम हो जाते हैं ,, आज लगता है वो सब परिवार पुराने कोंग्रेसी ही तो हैं ...संस्कार बोलते हैं .......सरबजीत की मौत को भुनाने पहुंचे नेताओं को ज़रा भी शर्म नहीं है ,,यदि अपनी जनता की ज़रा भी परवाह हो तो ये सब होगा ?....दोष सरकार का ही नहीं है जनता भी तो घटना घटने पे ही शोर मचाती है ,,यदि केवल सरबजीत के गाँव ने भी उसकी बहन का साथ दिया होता ,,जैसे आज जन सैलाब उमड़ा है! वैसा पहले उमड़ता तो क्या सरकार न हिलती .....आज प्यासा का एक गाना याद आता है ....
.................ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया ..
..............ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनियां ...
.............ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया ....
..............ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ....
.............यहाँ इक खिलौना है इन्सां की हस्ती ....
.............ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती ..

No comments:

Post a Comment