मन रे तू पंख हीन चंचल विहग ,
उड़ चला बादल बन आसमान पे '
यादों के झुरमुट से स्वर्णिम पल ,
क्यूँ बिखराता है ,मन आंगन में ,
कुछ पाने के पल ,कुछ खोने के पल ,
मन रे तू पंख हीन चंचल विहग ..
आ तुझ को दूँ मैं नए पंख .
स्मृतियों के जुगनू ले कर .
मेरे हर पल को कर जगमग ......आभा ........
Nice :)
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