ऊर्ध्वभूलोs वाक्शाख ऐषोअश्वत्थः सनातन:|
तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते ||
तस्मिंल्लोका: श्रिता:सर्वे तदु नात्येति कश्चन |
एतदैव्तत् ||
अनुवाद ---------------ऊपर कि ओर मूल वाला ,नीचे की ओर शाखा वाला यह सनातन अश्वथः वृक्ष है ,वह विशुद्ध् तत्व है ,वही ब्रह्म है ,वही अमृत कह्लाता है ,सब् लोग उसी के आश्रित हैं | कोई भी उसका उल्लङ्घन नही कर सकता | वही वह है |........
.................... प्रकट में उत्तराखंड की विकराल त्रासदी से ये सोच और मजबूत होती है की कहीं कोई सत्ता है ,वह अपने बनाये नियमों में थोड़ा बहुत ही छेड़ -छाड़ सहन कर सकती है .. अराजक होने पे वो सबक सिखाती है .वो सबक भयानक होता है और कौन बीच में आये ये हमें नहीं पता चलता ....कठोपनिषद में यह सब नचिकेता को भगवान यमराज कितनी अच्छी तरह से समझा रहे हैं .....
.........किसी वृक्ष का मूल नीचे जमीन में होता है , उससे उत्पन्न हुआ वृक्ष ऊपर की ओर बढ़ता है .इसीप्रकार इस सम्पूर्ण विश्व का एक ही मूल है जिसे ब्रह्म या परमब्रह्म कहते हैं .इसका मूल ऊपर की ओर है ,तथा सृष्टि के अन्य लोक जो इसके तने और शाखाएं -प्रशाखाएं हैं ,नीचे की और फैले हुए हैं। यह मूल अति सूक्ष्म है जो क्रमश:स्थूलता को प्राप्त होता चला गया है। इसकी तुलना अश्वत्थ वृक्ष से की गयी है जिसका मूल वही परमब्रह्म है। इससे क्रमश:,ब्रह्मा .देव ,पितर ,मनुष्य ,पशु -पक्षी आदि उत्पन्न होते हैंजो इसका तना ,शाखाएं व् पत्ते आदि हैं। यह मूल सनातन है इसका कभी नाश नहीं होता। जिस प्रकार पीपल के छोटे से बीज में वृक्ष की सम्पूर्ण सत्ता विद्यमान है उसी प्रकार इस ब्रह्मत्व में सम्पूर्ण सृष्टि की सत्ता निहित है जिसकी अभिव्यक्ति होने पे यह विश्व प्रगट होता है। यही एक मात्र विशुद्ध सत तत्व है। अन्य सभी इसी की विभिन्न शक्तियों से निर्मित हैं, जिनका विनाश ही होता रहता है ,इसीलिये वे असत एवं अनित्य है। एक ब्रह्म ही ऐसा है जो अमृत है कभी नहीं मरता। वही सबका रक्षक और पालक है। सभी लोक व् देवगण आदि भी उसी के आश्रय में रहकर अपने -२ कर्मों में लिप्त रहते हैं। उसका एक अनुशासन है ,नियम ,मर्यादा है जिसका उल्लंघन करने में कोई भी समर्थ नहीं है। सृष्टि में जो भी घटित है ,वह उसी के नियम के अनुसार होता है। वह वही परमब्रह्म है।। ...................................................
भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्य: ।
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पंचम।।
अनुवाद -----------------इसी परब्रह्म के भय से अग्नि तपता है ,इसी के भय से सूर्य तपता है तथा इसी के भय से इंद्र ,वायु और पांचवाँ मृत्यु दौड़ता है। ....................
..... इस श्लोक को समझने पे हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने से पहले सोचने को तो मजबूर हो ही जाते है ............
वह ईश्वर ही इस समस्त सृष्टि का शासक है जिसके नियम इतने कठोर हैं की उनका पालन न करने पर सभी को कठोर यातनाएं सहन करनी पड़ती हैं ,वह शक्ति किसी को क्षमा नहीं करती ,न किसी पे प्रसन्न हो कर अपने नियमों को तोड़कर किसी को मनमाना करने की छूट ही देती है। जिस -जिस ने उसके नियमों का उल्लंघन किया उसे दण्डित ही होना पड़ा है। इसी भय से सभी देवगण ,अग्नि ,सूर्य,इंद्र,वायु आदि अपने -अपने कर्तव्यों में लगे रहते हैं ....यहाँ तक की मृत्यु को भी इसका पालन करता है। यदि ईश्वर के नियम इतने कठोर न होते तो इस सृष्टि का सुचारू रूप से संचालन सम्भव ही नहीं था ..................इसीलिए वह ईश्वर सर्वशक्तिमान है ....
................. कठोपनिषद का सीधा -सीधा सन्देश यह है कि हम अपने बच्चों को बचपन से ही चरित्र निर्माण की ये बातें सिखाएं ..ताकि प्रकृति और मानव में एक तारतम्य बनारहे ..मानव लालच में न बहके ...और नियमों में बंधकर ही विकास कीओर अग्रसित होवे ...पर हम सब भूल गए ,,और अब तो हिन्दू धर्म का प्रचार ही साम्प्रदायिक हो गया है ....ये भी उसकी ही इच्छा है क्या ....??....................................................................?.......आभा ....