तुम्हारी कर्म श्रृंखला हे देव ,
हमारी संस्कृति का श्रृंगार ।.
नमन हे कान्ह तुम्हें शत बार ,
नमन हे कृष्ण तुम्हें शत बार ।
कौन जानता था की भाद्रपद- अष्टमी की काली अंधियारी रात्रि को कारावास की कालकोठरी में अवतरित होने वाला--------दिव्य-शिशु ---युगों -युगों तक प्रेम का आह्लादक बन जाएगा। श्री वृन्दावन में वंशी -तट में वंशी बजाने वाला , ऐसी मुरली बजाएगा जिसके माधुर्य से मानवता चिरकाल तक प्रेम का साक्षात्कार करेगी। इस अलौकिक शिशु ने वृन्दावन में ,नन्द -यशोदा के लिए कान्हा बन कर पुत्र -प्रेम को अभिव्यंजित किया तो गोपियों के लिए वो निश्छल प्रेमी बने ...किसी ने उन्हें साख्य प्रेम के रूप में पाया , किसी ने राजा के रूप में अपना सर्वस्व उन्हें अर्पण किया ......तो किसीने दास भाव से इनकी भक्ति गंगा में अवगाहन किया ...कृष्ण के भिन्न -भिन्न रूपों के प्रति जीव का प्रेम सदियों से चला आ रहा है .उन्हें शिशु बनकर खिलाइये .......
यशोदा हरी पालने झुलावे ,हलरावे दुलरावे मल्हावे ,जोई सोई कछु गावे ..............
सारे जग को चलाने वाला माता से चलना सीख रहा है ...सिखति चलन यशोदा मइया .,अरबराई कर पानि गहावत ,डगमगाई धरनी धरे पइया .............
वो चाँद के लिए रूठ जाता है ....मैया मेरी मैं चन्द्र खिलौना लेहूँ ..........वो अपनी तोतली वाणी से सबको लुभाता है .....कहन लागे मोहन मैया -मैया ,नन्द महर सौं बाबा -बाबा अरु हलधर सुन भैया ...........धेनु चराने जाता हैं ....आज हरि धेनु चराये आवत मोर मुकुट बन माल विराजत पीताम्बर फहरावत ......वो माखन चोरी का उलाहना लेता और देता हैं ......जो तुम सुनहुँ जसोदा गोरी ,नन्द -नन्दन मेरे मन्दिर में आजु करन गये चोरी .....और मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो .......शिशु रूप में ये एक अलौकिक बालक है .... पूतना वध से लेकर कालिया नाथने तक असंख्यों करतब करते हुए भी साधारण बालक के रूप में वृन्दावन की गलियों में खेलता है ... और राधारानीके संग अपने प्रेम की एक नई और अलौकिक परिभाषा गढ़ता है ,,,गोपियों संग रास रचता हुआ मथुरा,वृन्दावन को सदिओं के लिए प्रेम ,करुणा और आनन्द का प्रतीक बना देता है ............
वंशी धरं तोत्त्र धरं नमामि ,
मनोहरं ,मोहहरं च कृष्णम ,
करोति दूरं पथि विघ्न -बाधा ,
ददाति शीघ्रं परमात्म सिद्धिं .......
कृष्ण धर्म प्रवर्तक हैं ....प्रेरणा श्रोत्र हैं .जीवन की उत्पत्ति से लेकर संध्या काल तक अनेकों रूपों में जीवन को सार्थक बनाने को उपस्थित हैं ....हमारी संस्कृति को कर्म और प्रेम का संदेश देने को प्रभु ने कालकोठरी में जन्म लिया और जन्म के साथ ही बंधन तोड़ के स्वतंत्र होने का उपदेश दिया ..कारागृह से बाहर आओ .....समाज ,शास्त्र ,शुभ -अशुभ,माया -मोह ,मान मर्यादा ,धर्म ,जांत -पांत के बंधन तोड़ो ........और हम कृष्ण -जन्म के उपलक्ष में कारागृह में ही झूला डाल के बैठ गये ..... कृष्ण की मानवता को सबसे बड़ी देन गीता ...जो कर्मण्येवाधिकारस्तेका सिद्धांत जगती को सिखाती है ....जो योग में अवस्थित रह के कर्म करना सिखाती है .......
..नात्यश्रन्तस्तुयोग:अस्तिनचैकान्तम्नश्र्न्त:, न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ....................यानी सम्यक दृष्टि रखने का उपदेश देती है ........कर्म करो और फल की इच्छा मत करो ......और हम दिन भर उपवास रखके रात्रि में परायण के लिए तरह -तरह के पकवान बना के मध्य रात्रि उसके आगे खड़े हो गए आरती का थाल ,घंटे ,घड़ियाल ले के ..प्रभु हमने उपवास -व्रत किया है दिन भर, अब हमें मनवांछित फल दो ...हमारा आरत हरो ...........कान्हा ने गीता बांची हमें जाग्रत करने को ,मूढ़ता और किंकर्तव्यविमूढ़ता ...दूर करने को और हम गीता के श्लोकों का अपने साध्य की पूर्ति के लिए अनुष्ठान करने लगे ......गीता के महात्म में उलझ के रह गए ............कान्हा को समग्र और सहज रूप में समझने की आवश्यकता आज के माहौल में अधिक है .....आज कृष्णमय होने का समय आन पड़ा है ............कृष्ण जन्म से उद्धारक हैं और अंतिम समय तक उद्धार ही करते हैं .....उन्होंने वचन में बंधे हुए ही कारागृह में जन्म लिया ,अपने शरीर और समाज के बन्धनों को तोड़ने की शिक्षा दी .......प्रेम के प्रतीक बने और मोह के फंदे को काटने की , निर्लिप्त रहने की शिक्षा दी ...योग में बंध कर कर्म करने और फल की चाह में न बंधने की, स्थितिप्रज्ञहोने की शिक्षा दी ,विभूति योग दिखाया ....भक्ति योग सिखाया ....और आत्मा और परमात्मा के एक होने की शिक्षा दी ......और वचन में बंधे हुए ही परमधाम सिधारे .....कृष्ण वो नाम जो सर्वत्र बंधन में है फिर भी स्वतंत्र है .. ...कृष्ण की सुन्दरता और कार्यों का वर्णन बड़े बड़े ऋषि मुनि योगी भी न कर पाए ....वाणी न सकती देख ,जाता है न आँखों से कहा ....वो गीता की ही भांति सहज ,समग्र ,विस्तृत ,अलौकिक और शांति दायक हैं ....वो मीरा की वाणी में हैं ...रसखान के दोहों में हैं ....सूर का जीवन हैं ...और अनगिनत मनीषियों के जीवन धन हैं ...............कान्हा हमें सिखाते हैं की कल्याण की उत्कट अभिलाषा रखने वाला मनुष्य हरेक परिस्थिति में परमात्मा को प्राप्त हो सकता है और युद्ध जैसी परिस्थिति में भी परमात्मा का साक्षात्कार कर कल्याण को प्राप्त हो सकता है ..........विद्वानों का कहना है की आज भी ग्रहों का वो ही संयोग बन रहा है जो पांच हजार वर्ष पहले कृष्ण जन्म में था .......ये संयोग हम सब के लिए ,.देश के लिए और विश्व के लिए कल्याणकारी हो ............सभी को कृष्ण -जन्माष्टमी की बहुत -बहुत शुभकामनायें ...........बधाई तो बनती है ................................
आज तो बधाई बाजे नन्द महर के ,
फूले फिरें गोपी ग्वाल ठहर -ठहर के ,
नृत्यत मदन फूलो ,फूली रति अंग -अंग ,
मन के मनोज फूलें हलधर वर के ....
आनन्दोत्सव है आनन्द मनाइए ,,,,,,,,,,,,,,हाथी घोड़े पालकी
जै कन्हैया लाल की .........................आभा ........
हमारी संस्कृति का श्रृंगार ।.
नमन हे कान्ह तुम्हें शत बार ,
नमन हे कृष्ण तुम्हें शत बार ।
कौन जानता था की भाद्रपद- अष्टमी की काली अंधियारी रात्रि को कारावास की कालकोठरी में अवतरित होने वाला--------दिव्य-शिशु ---युगों -युगों तक प्रेम का आह्लादक बन जाएगा। श्री वृन्दावन में वंशी -तट में वंशी बजाने वाला , ऐसी मुरली बजाएगा जिसके माधुर्य से मानवता चिरकाल तक प्रेम का साक्षात्कार करेगी। इस अलौकिक शिशु ने वृन्दावन में ,नन्द -यशोदा के लिए कान्हा बन कर पुत्र -प्रेम को अभिव्यंजित किया तो गोपियों के लिए वो निश्छल प्रेमी बने ...किसी ने उन्हें साख्य प्रेम के रूप में पाया , किसी ने राजा के रूप में अपना सर्वस्व उन्हें अर्पण किया ......तो किसीने दास भाव से इनकी भक्ति गंगा में अवगाहन किया ...कृष्ण के भिन्न -भिन्न रूपों के प्रति जीव का प्रेम सदियों से चला आ रहा है .उन्हें शिशु बनकर खिलाइये .......
यशोदा हरी पालने झुलावे ,हलरावे दुलरावे मल्हावे ,जोई सोई कछु गावे ..............
सारे जग को चलाने वाला माता से चलना सीख रहा है ...सिखति चलन यशोदा मइया .,अरबराई कर पानि गहावत ,डगमगाई धरनी धरे पइया .............
वो चाँद के लिए रूठ जाता है ....मैया मेरी मैं चन्द्र खिलौना लेहूँ ..........वो अपनी तोतली वाणी से सबको लुभाता है .....कहन लागे मोहन मैया -मैया ,नन्द महर सौं बाबा -बाबा अरु हलधर सुन भैया ...........धेनु चराने जाता हैं ....आज हरि धेनु चराये आवत मोर मुकुट बन माल विराजत पीताम्बर फहरावत ......वो माखन चोरी का उलाहना लेता और देता हैं ......जो तुम सुनहुँ जसोदा गोरी ,नन्द -नन्दन मेरे मन्दिर में आजु करन गये चोरी .....और मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो .......शिशु रूप में ये एक अलौकिक बालक है .... पूतना वध से लेकर कालिया नाथने तक असंख्यों करतब करते हुए भी साधारण बालक के रूप में वृन्दावन की गलियों में खेलता है ... और राधारानीके संग अपने प्रेम की एक नई और अलौकिक परिभाषा गढ़ता है ,,,गोपियों संग रास रचता हुआ मथुरा,वृन्दावन को सदिओं के लिए प्रेम ,करुणा और आनन्द का प्रतीक बना देता है ............
वंशी धरं तोत्त्र धरं नमामि ,
मनोहरं ,मोहहरं च कृष्णम ,
करोति दूरं पथि विघ्न -बाधा ,
ददाति शीघ्रं परमात्म सिद्धिं .......
कृष्ण धर्म प्रवर्तक हैं ....प्रेरणा श्रोत्र हैं .जीवन की उत्पत्ति से लेकर संध्या काल तक अनेकों रूपों में जीवन को सार्थक बनाने को उपस्थित हैं ....हमारी संस्कृति को कर्म और प्रेम का संदेश देने को प्रभु ने कालकोठरी में जन्म लिया और जन्म के साथ ही बंधन तोड़ के स्वतंत्र होने का उपदेश दिया ..कारागृह से बाहर आओ .....समाज ,शास्त्र ,शुभ -अशुभ,माया -मोह ,मान मर्यादा ,धर्म ,जांत -पांत के बंधन तोड़ो ........और हम कृष्ण -जन्म के उपलक्ष में कारागृह में ही झूला डाल के बैठ गये ..... कृष्ण की मानवता को सबसे बड़ी देन गीता ...जो कर्मण्येवाधिकारस्तेका सिद्धांत जगती को सिखाती है ....जो योग में अवस्थित रह के कर्म करना सिखाती है .......
..नात्यश्रन्तस्तुयोग:अस्तिनचैकान्तम्नश्र्न्त:, न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ....................यानी सम्यक दृष्टि रखने का उपदेश देती है ........कर्म करो और फल की इच्छा मत करो ......और हम दिन भर उपवास रखके रात्रि में परायण के लिए तरह -तरह के पकवान बना के मध्य रात्रि उसके आगे खड़े हो गए आरती का थाल ,घंटे ,घड़ियाल ले के ..प्रभु हमने उपवास -व्रत किया है दिन भर, अब हमें मनवांछित फल दो ...हमारा आरत हरो ...........कान्हा ने गीता बांची हमें जाग्रत करने को ,मूढ़ता और किंकर्तव्यविमूढ़ता ...दूर करने को और हम गीता के श्लोकों का अपने साध्य की पूर्ति के लिए अनुष्ठान करने लगे ......गीता के महात्म में उलझ के रह गए ............कान्हा को समग्र और सहज रूप में समझने की आवश्यकता आज के माहौल में अधिक है .....आज कृष्णमय होने का समय आन पड़ा है ............कृष्ण जन्म से उद्धारक हैं और अंतिम समय तक उद्धार ही करते हैं .....उन्होंने वचन में बंधे हुए ही कारागृह में जन्म लिया ,अपने शरीर और समाज के बन्धनों को तोड़ने की शिक्षा दी .......प्रेम के प्रतीक बने और मोह के फंदे को काटने की , निर्लिप्त रहने की शिक्षा दी ...योग में बंध कर कर्म करने और फल की चाह में न बंधने की, स्थितिप्रज्ञहोने की शिक्षा दी ,विभूति योग दिखाया ....भक्ति योग सिखाया ....और आत्मा और परमात्मा के एक होने की शिक्षा दी ......और वचन में बंधे हुए ही परमधाम सिधारे .....कृष्ण वो नाम जो सर्वत्र बंधन में है फिर भी स्वतंत्र है .. ...कृष्ण की सुन्दरता और कार्यों का वर्णन बड़े बड़े ऋषि मुनि योगी भी न कर पाए ....वाणी न सकती देख ,जाता है न आँखों से कहा ....वो गीता की ही भांति सहज ,समग्र ,विस्तृत ,अलौकिक और शांति दायक हैं ....वो मीरा की वाणी में हैं ...रसखान के दोहों में हैं ....सूर का जीवन हैं ...और अनगिनत मनीषियों के जीवन धन हैं ...............कान्हा हमें सिखाते हैं की कल्याण की उत्कट अभिलाषा रखने वाला मनुष्य हरेक परिस्थिति में परमात्मा को प्राप्त हो सकता है और युद्ध जैसी परिस्थिति में भी परमात्मा का साक्षात्कार कर कल्याण को प्राप्त हो सकता है ..........विद्वानों का कहना है की आज भी ग्रहों का वो ही संयोग बन रहा है जो पांच हजार वर्ष पहले कृष्ण जन्म में था .......ये संयोग हम सब के लिए ,.देश के लिए और विश्व के लिए कल्याणकारी हो ............सभी को कृष्ण -जन्माष्टमी की बहुत -बहुत शुभकामनायें ...........बधाई तो बनती है ................................
आज तो बधाई बाजे नन्द महर के ,
फूले फिरें गोपी ग्वाल ठहर -ठहर के ,
नृत्यत मदन फूलो ,फूली रति अंग -अंग ,
मन के मनोज फूलें हलधर वर के ....
आनन्दोत्सव है आनन्द मनाइए ,,,,,,,,,,,,,,हाथी घोड़े पालकी
जै कन्हैया लाल की .........................आभा ........