[ जीवन फिर भी जीवन ]
*************************
बसंती बयार में सुबह की सैर ;
शाखों से टूटे बिखरे .सूखे----
पत्तों पे चलने का स्वर ;
चर -मर, चर -मर ,चररमरर ;
यूँ ही चरमराता जीवन !
बारिशों से भीगी गीली ,
फिसलन भरी पहाड़ी पगडंडी ;
चप्पलें हाथ में लिए ,
छाता कंधे पे टाँगे
अपने गाँव की चढाई चढना ;
सपनों की टूटन तक पहुंचना !
दरकते पहाड़ों से गिरती बालू ,
मिट्टी के साथ बरसते पत्थर ,
घाटी से चोटी तक ,
पेड़ों की याद में रोते पहाड़ों का दर्द ;
हाथों से छूटती जिन्दगी !
भूखी माँ के सीने से चिपका ,
.............. बच्चा ...............
कंकाल हो चुके शरीर से ,
सडकें खोदने को मजबूर ,
गैंती चलाता पिता ;
दुश्वारियों में जीवन संवारने की नाकाम सी कोशिश !
जीवन फिर भी जीवन ;
जीने को मचलता है ! ........................
.................आभा ........................
No comments:
Post a Comment